मोदी सरकार ने शुक्रवार को दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ के आंकड़े पेश किए तो उसमें अच्छी खबर निकलकर नहीं आई. दूसरी तिमाही में विकास की रफ्तार 6 से 6.5 रहने की आस लगा रहे थे लेकिन रह गई 5.4 फीसद. पिछली साल इसी तिमाही में विकास की रफ्तार 8.1 फीसद थी. आखिर इसकी वजह क्या रही, इसके बारे में भी एक्सपर्ट अपनी-अपनी राय जता रहे हैं.
इतना ही नहीं, ग्रॉस वैल्यू एडेड (GVA) में भी कमी आई है. यह देश में आर्थिक गतिविधियों को नापने वाला अहम पैमाना है. इस साल दूसरी तिमाही में ये 5.6 फीसद रहा जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह आंकड़ा 7.7 फीसद था.
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उम्मीद से कम ग्रोथ रहने की क्या है वजह?
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, देश में उम्मीद से कम ग्रोथ रहने की कई वजह हैं. एक्सपर्ट्स के अनुसार, देश में बढ़ती महंगाई और ब्याज दर की अधिक रेट की वजह से इस तरह के आंकड़े सामने आए हैं. इसके साथ ही लोगों की सैलरी में भी इजाफा नहीं हुआ तो लोगों बाजार में खरीदने के लिए निकले ही नहीं. इसके साथ ही कॉरपोरेट वर्ल्ड ने भी इस तिमाही में कमजोर प्रर्दशन किया. पिछले चार सालों में देश की प्रमुख कंपनियों की हालत भी सबसे खराब रही जिससे शेयर बाजार में काफी अनिश्चता बनी रही. इस तरह की हालत अर्थव्यवस्था के लिए खतरे के तौर भी देखा जा रहा है.
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क्या बरकरार रह पाएगी पूरे साल हाई ग्रोथ रेट?
इन सब चुनौतियों के बावजूद आरबीआई ने 2024-25 फाइनेंशियल ईयर के लिए जीडीपी ग्रोथ 7.2 फीसद रहने का अनुमान बरकरार रखा है. हालांकि यह पिछले साल के फाइनेंशियल ईयर में 8.2 फीसद ग्रोथ से काफी कम है. अगर केंद्रीय बैंक आरबीआई इन आंकड़ों को देखकर कुछ करता है और ब्याज दरों में कोई कटौती करता है तो इससे इकोनॉमी को बढ़ावा मिलेगा जिससे कुछ सुधार होने की उम्मीद जगेगी.
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