Political News: जब किसी राजनीतिक दल में विभाजन होता है, तो उस दल के चुनाव चिन्ह को लेकर दोनों गुटों के बीच अक्सर विवाद पैदा हो जाता है. ऐसे मामलों में चुनाव आयोग यह तय करता है कि किस गुट को मूल पार्टी का चुनाव चिन्ह मिलेगा और किसे एक नया चिन्ह आवंटित किया जाएगा. महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों में इस मुद्दे पर हालिया घटनाओं ने इसे और भी प्रमुखता से उजागर किया है. आइए जानते हैं चुनाव आयोग के नियम और हाल की घोषणाओं के बारे में...
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चुनाव चिन्ह विवाद का समाधान, क्या कहता है कानून?
आपको बता दें कि भारतीय कानून के तहत, चुनाव चिन्ह (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के नियमों के तहत चुनाव आयोग यह तय करता है कि किसे पार्टी का मूल चिन्ह मिलेगा. जब किसी पार्टी में फूट होती है, तो दोनों गुट खुद को असली पार्टी बताकर चुनाव चिन्ह पर दावा करते हैं. इस स्थिति में चुनाव आयोग एक विस्तृत प्रक्रिया का पालन करता है. जैसे-
- दस्तावेजों और सबूतों की समीक्षा: चुनाव आयोग सबसे पहले दोनों पक्षों से उनके दावे के समर्थन में सबूत मांगता है, जैसे कि पार्टी संविधान, पार्टी के अंदर चुनावी प्रक्रिया के दस्तावेज, सदस्यों की सूची और अन्य कानूनी दस्तावेज.
- बहुमत का निर्धारण: आयोग यह भी देखता है कि किस गुट के पास अधिक विधायकों, सांसदों, या पार्टी के प्रमुख पदाधिकारियों का समर्थन है. जिसके पास बहुमत होता है, उसे आमतौर पर पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह सौंपा जाता है.
- अस्थायी समाधान: अगर मामले का तुरंत निपटारा नहीं हो पाता, तो चुनाव आयोग दोनों गुटों को अस्थायी रूप से नए चुनाव चिन्ह आवंटित कर देता है, जब तक कि अंतिम निर्णय नहीं आ जाता.
महाराष्ट्र और झारखंड का मामला
वहीं आपको बता दें कि चुनाव चिन्ह विवाद हाल ही में महाराष्ट्र और झारखंड में प्रमुखता से उभरा है. महाराष्ट्र में शिवसेना के विभाजन के बाद यह मुद्दा गर्म हो गया था, जब पार्टी के दो गुटों-एक उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में और दूसरा एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में पार्टी के पारंपरिक 'धनुष-बाण' चिन्ह पर दावा किया. चुनाव आयोग ने इस मामले में गहन जांच के बाद फैसला किया. वहीं बता दें कि झारखंड में भी एक प्रमुख पार्टी में फूट होने के बाद चुनाव चिन्ह पर विवाद खड़ा हुआ था. यहां भी चुनाव आयोग को दोनों पक्षों के दावों की जांच करनी पड़ी और फिर पार्टी के अंदर के बहुमत के आधार पर फैसला करना पड़ा.
चुनाव आयोग की घोषणाएं
इसके अलावा आपको बता दें कि महाराष्ट्र और झारखंड में हुए हालिया उपचुनावों के दौरान, मुख्य चुनाव आयुक्त ने स्पष्ट किया कि चुनाव चिन्हों को लेकर किसी भी विवाद को कानून के तहत सुलझाया जाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया का पालन करता है और यह सुनिश्चित करता है कि चुनाव चिन्ह का आवंटन सही तरीके से हो. बता दें कि आयोग ने कहा कि दोनों राज्यों में चुनाव चिन्ह विवाद का समाधान संविधान और चुनावी प्रक्रियाओं के अनुसार किया जाएगा. किसी भी राजनीतिक दल को असंतोष की स्थिति में आयोग के निर्णय का सम्मान करना चाहिए और चुनावी प्रक्रिया का पालन करना चाहिए. साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि चुनाव चिन्ह विवाद के समाधान के लिए आयोग समयबद्ध तरीके से कार्य करेगा ताकि चुनावों में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनी रहे.