India-Canada relations: भारत और कनाडा के बीच लंबे समय से चल रहे तनावपूर्ण संबंध एक नए मोड़ पर पहुंच गए हैं. भारत ने अपने हाई कमिश्नर संजय वर्मा को कनाडा से वापस बुला लिया है, इस आरोप के साथ कि कनाडा की सरकार भारतीय राजनयिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में विफल रही है. यह फैसला तब आया जब कनाडा ने संकेत दिया कि भारतीय राजनयिकों की जांच की जा रही है, जिसका संबंध अलगाववादी समर्थक हरदीप सिंह निज्जर हत्याकांड के साथ जुड़ा है.
इसके बाद भारत ने कनाडा के आरोपों को सिरे से खारिज किया और अपने राजनयिकों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए. बढ़ते तनाव के बीच भारत ने दिल्ली स्थित कनाडा के सीडीए को सम्मन किया और अपना रोष जाहिर किया. सीडीए ने विदेश मंत्रालय से निकलकर कनाडा के आरोपों को दोहराया, जिसके बाद भारत ने कार्यवाहक हाइ कमिश्नर स्टीवर्ट व्हीलर और डिप्टी हाइ कमिश्नर सहित कनाडा के 6 राजनयिकों को भारत छोड़ने का आदेश जारी कर दिया.
ये भी पढ़ें: Breaking News: महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव की तारीखों का इंतजार खत्म, चुनाव आयोग आज करेगा ऐलान
कनाडा ने भी भारत के 6 राजनयिकों की अपने वतन से विदाई का फरमान जारी किया. इस तरह दोनों देशों के राजनयिक और कूटनीतिक संबंध ताश के पत्तों की तरह बिखर गए. भारत और कनाडा के बिगड़ते संबंधों के बारे में कुछ प्रमुख घटनाक्रमों के जरिए समझा जा सकता है. जिसमें कनाडाई पीएम ट्रुडो के अलगाववादी प्रेम और वोट बैंक पॉलिटिक्स के कारण भारत कनाडा संबंधों को गर्त में धकेलने के संकेत मिलते हैं.
2015 से दोनों देशों के बीच बढ़ता तनाव
बता दें कि साल 2015 में जस्टिन ट्रूडो के प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों की शुरुआत एक सकारात्मक नोट से हुई थी. उनसे पहले स्टीफन हार्पर ने भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया था. 2010 में दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर वार्ता शुरू हुई, और 2015 में कनाडा ने भारत को यूरेनियम बेचने का समझौता भी किया था.
ट्रूडो की लिबरल पार्टी ने चुनाव अभियान के दौरान भारत के साथ व्यापार संबंधों को बढ़ाने की बात कही थी, लेकिन उनके कार्यकाल के पहले साल में भारत के साथ संबंध धीमे पड़ गए. 2018 में ट्रूडो की भारत यात्रा विवादों से घिरी रही, जब एक अलगाववादी जसपाल अटवाल को कनाडाई हाई कमीशन ने एक डिनर के लिए आमंत्रित किया. यह घटना भारत में नाराजगी का कारण बनी और यात्रा की सकारात्मक उपलब्धियों पर ग्रहण लग गया.
ये भी पढ़ें: UP News: दिन निकलते ही योगी सरकार बड़ा फैसला, पलभर में खत्म कर दी बड़ी समस्या, सरकार ला रही है नया अध्यादेश
अलगाववाद का भारत कनाडा संबंधों पर प्रभाव
कनाडा में अलगाववादी समर्थक समूहों का प्रभाव ट्रूडो सरकार के लिए एक बड़ा मुद्दा रहा है. साल 2018 में कनाडा ने एक रिपोर्ट में अलगाववादी उग्रवाद को सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा बताया था, लेकिन राजनीतिक दबाव के कारण इस रिपोर्ट से इस शब्द को हटा दिया गया. इससे भारत के अधिकारियों में गहरी निराशा उत्पन्न हो गई. 2020 में ट्रूडो ने भारत में चल रहे किसान आंदोलन पर टिप्पणी की, जिसे भारत ने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के रूप में देखा गया. इसके बाद से दोनों देशों के बीच राजनीतिक तनाव और बढ़ गया. 2021 में ट्रूडो की सरकार ने जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ गठबंधन किया, जो भारत विरोधी रुख के लिए जानी जाती है.
हाल के घटनाक्रम और रिश्तों में खटास
2023 में अलगाववादी समर्थक अमृतपाल सिंह के खिलाफ भारत की कार्रवाई के बाद कनाडा में विरोध प्रदर्शन हुए. भारतीय उच्चायोग पर हमले की खबरें भी आईं. इसी दौरान अलगाववादी समर्थक समूहों ने भारत के राजनयिकों पर व्यक्तिगत हमले शुरू कर दिए. इसी बीच हरीदीप निज्जर की मौत हो गई, जिसे लेकर भारत पर आरोप लगाए गए.
ये भी पढ़ें: कनाडा के प्रधानमंत्री ने भारत पर फिर लगाए बेबुनियादी आरोप, जानें अब क्या बोल गए जस्टिन ट्रुडो?
सितंबर 2023 में, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने सार्वजनिक रूप से भारत पर हरीदीप निज्जर की हत्या में संलिप्तता का आरोप लगाया. हालांकि, कनाडा ने अपने आरोपों के समर्थन में कोई ठोस सबूत नहीं दिया. इसके बाद बढ़ते तनाव और आरोप प्रत्यारोप के बीच दोनों देशों ने अपने-अपने राजनयिकों को वापस बुलाना शुरू कर दिया. भारत ने भी अपने हाई कमिश्नर संजय वर्मा को कनाडा से वापस बुला लिया है साथ हीं कनाडा के 6 राजनयिकों को भारत ने विदा कर दिया.
इस तनावपूर्ण माहौल ने दोनों देशों के कूटनीतिक, राजनीतिक, राजनयिक और व्यापारिक संबंधों को लगभग ठप कर दिया है. भारत ने कनाडा पर अलगाववादी समूहों के प्रभाव में आने का आरोप लगाया है, जबकि कनाडा निज्जर मामले में भारत से कार्रवाई की मांग कर रहा है. तेजी से बदलते इस घटनाक्रम ने पहले से ही अस्थिर संबंधों को एक और जोर का झटका दिया है और आने वाले समय में इन दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों में सुधार की संभावना धूमिल होती दिख रही है.