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काशी का 'भारत छोड़ो आंदोलन' से है गहरा नाता, स्वतंत्रता दिवस पर जानें ये खास इतिहास

देश की सांस्कृतिक धरोहर काशी ने स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई. 1942 में महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन से वाराणसी के लोगों में स्वतंत्रता के प्रति जोश और साहस का नया संचार हुआ.

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Ritu Sharma
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Independence Day History

Independence Day History

Independence Day History: स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पूरा देश स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों को नमन कर रहा है. इस दिन पर देशभर के लोग उन संघर्षों को याद कर रहे हैं जिन्होंने भारत को स्वतंत्रता दिलाई. भारत की सांस्कृतिक राजधानी काशी भी स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण केंद्र रही है. काशी की गलियों और गांवों में स्वतंत्रता आंदोलन की आवाज गूंजी, जिसने न केवल स्थानीय जनमानस को बल्कि पूरे देश को प्रेरित किया. विशेष रूप से 1942 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुए भारत छोड़ो आंदोलन ने काशी के लोगों में स्वतंत्रता की चिंगारी को पूरी तरह से भड़का दिया था.

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भारत छोड़ो आंदोलन और काशी की भूमिका

आपको बता दें कि काशी के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारियों पर शोध कर रहे नित्यानंद राय बताते हैं कि महात्मा गांधी द्वारा अगस्त 1942 में शुरू किए गए भारत छोड़ो आंदोलन का वाराणसी और उसके आसपास के क्षेत्रों पर गहरा प्रभाव पड़ा. गांधी जी के आह्वान पर काशी के लोग अंग्रेजी शासन के खिलाफ सीना तानकर खड़े हो गए. इस आंदोलन में काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के छात्रों ने अग्रणी भूमिका निभाई. छात्रों ने जन-जागृति फैलाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया और आंदोलन को गति दी.

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काशी में भी गूंजा चौरी चौरा जैसा विद्रोह

वहीं काशी में भी 1942 में एक ऐसी घटना घटी जिसने चौरी चौरा कांड की याद ताजा कर दी. 16 अगस्त 1942 को वाराणसी जिले के धानापुर क्षेत्र (जो अब चंदौली जनपद में आता है) में स्वतंत्रता सेनानी कांता प्रसाद विद्यार्थी के नेतृत्व में लोगों ने विद्रोह का बिगुल फूंका. गुस्साई भीड़ ने पुलिस थाने को आग के हवाले कर दिया, जिसमें अंग्रेजी हुकूमत के तीन सिपाही और दरोगा को भी जला दिया गया. इस विद्रोह ने अंग्रेजी शासन की जड़ें हिला दीं. इसके बाद 18 अगस्त को ब्रिटिश हुकूमत ने अपनी सेना भेजकर सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया और उन्हें जेल में डाल दिया. इस घटना में शामिल कई लोगों को आजीवन कारावास और फांसी की सजा दी गई थी.

तिरंगा फहराने का साहसिक कदम

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इसके अलावा आपको बता दें कि भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान काशी के लोगों में इतना जोश था कि उन्होंने सरकारी दफ्तरों, थानों, और ब्रिटिश अधिकारियों के ठिकानों पर तिरंगा फहराना शुरू कर दिया था. अगस्त के दूसरे सप्ताह में ही इस तरह की घटनाएं होने लगीं. लोगों का विश्वास था कि आजादी अब बिल्कुल करीब है और अंग्रेज जल्द ही भारत छोड़ने वाले हैं. यह आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ.

बहरहाल, काशी का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान ऐतिहासिक है. चाहे वह छात्रों की भागीदारी हो या धानापुर की क्रांति, काशी ने हर कदम पर स्वतंत्रता के संघर्ष को नया आयाम दिया. 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन काशी के स्वतंत्रता संग्राम में टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. काशी की क्रांतिकारी गतिविधियों ने अंग्रेजों के खिलाफ जनता के जोश को और बढ़ावा दिया, जो अंततः भारत की स्वतंत्रता की नींव बनी.

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