मणिपुर की 60 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के पास 37 सीटें हैं, और यह राज्य की राजनीति का मुख्य केंद्र बन चुकी है. हालांकि, सत्ता की स्थिति में अब कुछ अस्थिरता आई है, खासकर एनपीपी (नेशनल पीपुल्स पार्टी) के समर्थन वापस लेने के बाद. एनपीपी के सात विधायक पहले बीरेन सिंह सरकार का बाहरी समर्थन कर रहे थे, क्योंकि पार्टी एनडीए (नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस) का हिस्सा है. हालांकि, अब एनपीपी के समर्थन वापस लेने से भी बीरेन सिंह की सरकार को फिलहाल कोई खतरा नहीं महसूस हो रहा है, लेकिन राजनीतिक दलों के बीच बदलते समीकरणों से मणिपुर की राजनीति में हर पल कुछ नया हो सकता है.
एनपीपी ने अपना समर्थन वापस लिया
मणिपुर विधानसभा में भाजपा के लिए सात सीटें एनपीपी से मिली हुई थीं, लेकिन अब जब एनपीपी ने अपना समर्थन वापस लिया है, तो सरकार की स्थिरता पर सवाल उठने लगे हैं. हालांकि, बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार फिलहाल मजबूत दिख रही है, क्योंकि भाजपा के पास सबसे ज्यादा सीटें हैं और वे बहुमत में बने हुए हैं. इस परिस्थिति में, एनपीपी के समर्थन के बिना भी सरकार का अस्तित्व बना रह सकता है, लेकिन इस घटनाक्रम ने मणिपुर की राजनीति को एक बार फिर से गरमा दिया है.
इंफाल में कर्फ्यू और स्कूल-कॉलेज बंद
इंफाल में पिछले कुछ दिनों से स्थिति बहुत गंभीर बनी हुई है. हिंसक घटनाओं और बढ़ते तनाव को देखते हुए, मणिपुर सरकार ने इंफाल पश्चिम और इंफाल पूर्व जिलों में कर्फ्यू लगा दिया है. साथ ही, राज्य की सुरक्षा स्थिति को ध्यान में रखते हुए, मणिपुर सरकार ने 19 नवंबर तक सभी स्कूलों और कॉलेजों को बंद करने का फैसला लिया है. इस निर्णय के तहत, राज्य के विश्वविद्यालयों और अन्य शिक्षा संस्थानों को भी बंद रखा जाएगा.
कर्फ्यू और शैक्षिक संस्थानों की बंदी, मणिपुर की स्थिति को स्थिर करने की कोशिशों का हिस्सा हैं. हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति में राज्य सरकार ने सुरक्षा के दृष्टिकोण से यह कदम उठाया है.
मणिपुर का भविष्य
मणिपुर की विधानसभा और उसके आसपास की घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि राज्य में राजनीतिक अस्थिरता और सांप्रदायिक तनाव गहरा है. एक ओर जहां भाजपा सत्ता में है, वहीं दूसरी ओर स्थानीय दलों और नेताओं के समर्थन में बदलाव और कर्फ्यू जैसे फैसले राज्य की स्थिति को और जटिल बना रहे हैं. मणिपुर के राजनीतिक और सामाजिक माहौल पर गहरी नजर रखना जरूरी है, क्योंकि यह न केवल मणिपुर के लिए, बल्कि देश की राजनीतिक व्यवस्था पर भी असर डाल सकता है.