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मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, मुस्लिम पक्ष ने दायर की 1600 पन्नों की याचिका

शाही ईदगाह मस्जिद की जमीन के स्वामित्व के बारे में हिंदू पक्ष के दावे सुनवाई योग्य हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट के इसी फैसले को मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिस पर आज सुनवाई होगी.

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Jalaj Kumar Mishra
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Shree Krishna Janambhumi file Shahi Idgah Mosque File

Shree Krishna Janambhumi and Shahi Idgah Mosque

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श्रीकृष्ण जन्मभूमि ईदगाह मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. मुस्लिम पक्ष की याचिका पर आज सुनवाई होनी है. मुस्लिम पक्ष ने 1600 पन्नों की याचिका दायर की है. अपील दायर करते हुए मुस्लिम पक्ष ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू पक्ष के दावों को सुनवाई योग्य माना है, वह गलत है.

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यह है पूरा मामला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अगस्त को मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शादी ईदगाह मस्जिद विवाद को सुनावई योग्य माना था. हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद की जमीन के स्वामित्व को लेकर हिंदू पक्षकारों की ओर से दाखिल सभी 16 वादों को सुनने योग्य माना और मुस्लिम पक्ष की पांच आपत्तियों को खारिज कर दिया था. ईदगाह कमेटी ने हाईकोर्ट के इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट ने उपासना अधिनियम, परिसीमा अधिनियम, वक्फ एक्ट के प्रावधानों को नजरअंदाज किया है.

क्या बोले दोनों पक्षों के वकील

श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष एडवोकेट महेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि मुस्लिम पक्ष की याचिका पर हिंदू पक्ष की ओर से कैविएट लगाई गई है. सर्वोच्च अदालत में हम भी अपना पक्ष रखेंगे. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार इस मामले की सुनवाई करेंगे. वहीं, शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी के सचिव एडवोकेट तनवीर अहमद का कहना है कि हम सर्वोच्च अदालत में मजबूती से अपना पक्ष रखेंगे. 

हिंदू पक्षकारों की यह दलीलें

  1. ईदगाह का पूरा क्षेत्र (ढाई एकड़) श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर का गर्भगृह है. शादी ईदगाह मस्जिद का हिस्सा भी इसमें शामिल हैं. 
  2. ईदगाह मस्जिद कमेटी के पास भूमि का कोई रिकॉर्ड नहीं है. 
  3. श्रीकृष्ण मंदिर तोड़कर शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण किया गया.
  4. वक्फ ने बिना किसी वैध प्रक्रिया के इसे वक्फ की संपत्ति घोषित कर दिया है. 

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मुस्लिम पक्ष की यह दलीलें

  1. जमीन को लेकर 1968 में दोनों पक्षों के बीच समझौता हुआ था. 60 साल बाद समझौते को गलत ठहराना सही नहीं. इसलिए मुकदमा नहीं चल सकता.
  2. उपासना स्थल अधिनियम 1991 के तहत मुकदमा सुनवाई के योग्य नहीं है।
  3. 15 अगस्त, 1947 से जिस धार्मिक स्थल की पहचान और प्रकृति जैसी है वैसी ही रहेगी. उसकी प्रकृति नहीं बदली जा सकती.
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