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Madrasa Education : मदरसों की डिग्रियां हो जाएंगी रद्दी, कहीं नहीं मिलेंगी नौकरियां, कोर्ट में पहुंचा मामला!

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने मदरसों में दी जाने वाली शिक्षा के स्तर पर गंभीर आपत्तियां जताई हैं. आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर बताया है कि मदरसों में शिक्षा की गुणवत्ता अत्यधिक निम्न स्तर की है.

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Ravi Prashant
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Madrasa Education

मदरसा की शिक्षा पर उठा सवाल (x)

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राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने मदरसों में दी जाने वाली शिक्षा के स्तर पर गंभीर आपत्तियां जताई हैं. आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर बताया है कि मदरसों में शिक्षा की गुणवत्ता अत्यधिक निम्न स्तर की है और यह बच्चों के शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के प्रावधानों के विपरीत है. आयोग ने मदरसा शिक्षा प्रणाली पर सवाल खड़े करते हुए आरोप लगाया है कि यह बच्चों की शिक्षा और समग्र विकास के लिए उपयुक्त नहीं है.

हलफनामे में क्या बताया गया?

आयोग ने अपने हलफनामे में दावा किया है कि मदरसों में न केवल शिक्षा की गुणवत्ता का अभाव है, बल्कि वहां बुनियादी सुविधाओं की भी भारी कमी है. आयोग के अनुसार, मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को आवश्यक सुविधाएं जैसे उपयुक्त भवन, शौचालय, साफ पानी, और आधुनिक शिक्षण संसाधन नहीं मिल रहे हैं. इससे बच्चों के समग्र विकास और उनके उज्ज्वल भविष्य पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है.

गैर छात्रों के साथ ये क्यों?

शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत 6 से 14 साल के सभी बच्चों को अनिवार्य और नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार है. इसके साथ ही, शिक्षा का स्तर राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होना चाहिए ताकि बच्चों को आधुनिक और समावेशी शिक्षा प्राप्त हो सके. NCPCR का आरोप है कि मदरसों में दी जा रही शिक्षा केवल धार्मिक पाठ्यक्रम तक सीमित है, जिससे बच्चों को विज्ञान, गणित, सामाजिक अध्ययन और भाषा जैसे विषयों में समुचित ज्ञान नहीं मिल पा रहा है. वहीं, गैर-मुस्लिम छात्रों को धार्मिक शिक्षा दी जा रही है. 

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नौकरी मिलना है अब मुश्किल

इसी बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मदरसा शिक्षा को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं. सरकार ने कहा कि यूपी मदरसा बोर्ड द्वारा स्नातक (कामिल) और स्नातकोत्तर (फाजिल) स्तर पर दी जाने वाली डिग्रियों के आधार पर राज्य या केंद्र सरकार में नौकरी पाना बेहद मुश्किल है. हलफनामे में कहा गया कि मदरसा बोर्ड की डिग्रियों को किसी अन्य विश्वविद्यालय की डिग्रियों के समकक्ष नहीं है, जिससे इन डिग्रियों के आधार पर नौकरी मिलना आसान नहीं है.

मदरसों में सुधार की आवश्यकता

सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि कामिल और फाजिल जैसी डिग्रियां न तो राज्य सरकार और न ही केंद्र सरकार की नौकरी के लिए मान्य हैं. सरकार का कहना है कि मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ने की आवश्यकता है ताकि वे भी अन्य छात्रों की तरह प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग ले सकें और उच्च शिक्षा के साथ रोजगार के बेहतर अवसर प्राप्त कर सकें. आयोग और राज्य सरकार की इन सिफारिशों से यह साफ है कि मदरसा शिक्षा में सुधार की तत्काल आवश्यकता है. सुधार के बाद छात्रों को मुख्यधारा की शिक्षा मिल सकेगी, जिससे वे समाज के अन्य वर्गों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकें.

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