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131 साल की हुई कांग्रेस: इतिहास के पन्नों से भविष्य की नई चुनौतियों तक!

131 साल की हुई कांग्रेस: इतिहास के पन्नों से भविष्य की नई चुनौतियों तक!

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Shivani Bansal
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131 साल की हुई कांग्रेस: इतिहास के पन्नों से भविष्य की नई चुनौतियों तक!

फाइल फोटो

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सन् 1885 में जन्मी कांग्रेस के आज 131 साल पूरे हो चुके है। कांग्रेस की स्थापना अंग्रेज़ी राज वाले ब्रिटिश इंडिया में हुई थी। आज के दौर में कांग्रेस पार्टी बीजेपी के बाद देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है और अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों में इसकी बराबरी इंग्लैंड की लेबर पार्टी, जर्मनी की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी और अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी से की जाती है।

बुधवार देश के दूसरे नंबर की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस कुछ समय पहले तक देश की नंबर वन पार्टी थी। लेकिन भारतीय जनता दल के लगातार मज़बूत होने की वजह से यह पहले नंबर से खिसक कर दूसरे नंबर पर आ गई है। आइए डालते हैं एक नज़र कांग्रेस के इतिहास पर। 1885 में मुंबई के गोकुल दास संस्कृत कॉलेज में इसकी स्थापना एक अंग्रेज अफसर एलेन ऑक्टेव्यम ह्यूम ने की थी। अंग्रेज अफसर की मदद से गठित कांग्रेस के पहले अध्यक्ष बने थे व्योमेश चंद्र बनर्जी। 

गुलाम भारत में अंग्रेजों की मदद से बनी इस पार्टी को जब महात्मा गांधी का साथ मिला तो फिर इस पार्टी ने स्वतंत्र भारत के संघर्ष में अहम योगदान दिया। आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री कांग्रेस पार्टी के जवाहर लाल नेहरु बने। कांग्रेस पार्टी के गठन के बाद जब पार्टी आज़ाद भारत में पहली बार चुनावी मैदान में उतरी तब इसका चुनावी चिन्ह बना दौ बैलों की जोड़ी। पहले लोकसभा चुनाब में कांग्रेस को संसद की 364 सीटों पर विजय प्राप्त हुई।

नेहरु युग में खूब फली फूली कांग्रेस को सबसे बड़ी चोट लगी पंडित जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद, जब पार्टी के सामने सबसे बड़ा प्रश्न यह था कि नेहरु के बाद कौन बनेगा देश का प्रधानमंत्री। 1964 में नेहरु के निधन के बाद यह जिम्मेदारी मिली लाल बहादुर शास्त्री को। लेकिन 1966 में ताशकंद में हुए उनके अचानक निधन के बाद यह सवाल फिर कांग्रेस पार्टी के सामने आ खड़ा हुआ।

लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद पार्टी में नए प्रधानमंत्री के लिए इंदिरा गांधी और मोरारजी देसाई के बीच प्रतिद्वंदिता रही, और आखिरकार नेहरु की बेटी इंदिरा गांधी को देश की कमान मिली। इंदिरा गांधी देश की ही नहीं बल्कि दुनिया की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी।

बहुत कम बोलने वाली महिला इंदिरा गांधी को समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने गूंगी गुड़िया का तमगा तक दे दिया। 1967 में कांग्रेस पहली बार लोकसभा चुनाव हारी। संसद में कांग्रेस को मात्र 153 सीटें मिली। और लोग इंदिरा गांधी की क्षमता पर सवाल उठाने लगे। 1969 में कांग्रेस दो घड़ों में बट गई। के कामराज की अगुवाई में कांग्रेस ओ बनी और इंदिरा गांधी के समर्थकों के साथ से बनी कांग्रेस आई।

कांग्रेस ओ और आई के बीच कई मुद्दों के साथ ही चुनाव चिंह पर भी तकरार हुआ और कांग्रेस ओ को नया चुनाव चिंह चरखा मिला। कांग्रेस आई को चुनाव आयोग से गाय बछड़े का चिंह मिला। जैसे जैसे इंदिरा गांधी का व्यक्तित्व बढ़ता गया उनकी देश पर पकड़ उतनी ही मज़बूत होती चली गई। 1971 में इंदिरा के नेतृत्व में भारत ने पाकिस्तान को युद्ध क्षेत्र में करारा जवाब दिया। इसके बाद उन्हें लोग आयरन लेडी के नाम से जानने लगे।

हालांकि यह खुशी ज़्यादा दिन नहीं चली और इंदिरा के दामन पर भ्रष्टाचार की छिंटे लगनी शुरू हुई। 1975 में उन पर भ्रष्टाचार के आरोप साबित हुए। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ने उन्हें इस्तीफा देने और 6 साल तक चुनाव न लड़ने का फैसला सुनाया। इसका जवाब इंदिरा गांधी ने आपातकाल से दिया। 25 जून 1975 में इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा दी और देश को 19 महीनों के लिए सुलगने के लिए छोड़ दिया। 

18 जनवरी 1977 में इंदिरा गांधी ने अचानक इंमरजेंसी वापस लेने और देश में चुनाव कराने का ऐलान कर दिया। ऑल इंडिया रेडियो पर इसका ऐलान हुआ। लेकिन इसके बाद जब चुनाव हुए तो चुनाव आयोग ने कांग्रेस आई का चुनाव चिंह गाय बछड़ा ज़ब्त कर लिया और इंदिरा गांधी कांग्रेस को नया चुनाव चिंह मिला हाथ यानि पंजा।

1977 चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई। लेकिन फिर कांग्रेस ने 1980 में वापसी की। साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हो गई और उनकी कुर्सी की कमान संभाली राजीव गांधी ने। 1987 में कांग्रेस पर एक बड़े घोटाले का आरोप लगा। यह घोटाला था बोफोर्स कांड जिसका खुलासा स्वीडन के रेडियो ने किया। इसमें आरोप लगा कि बोफोर्स ने ठेका हासिल करने में कांग्रेस ने भारी घूस दी है।

इस घोटाले की चपेट में राजीव गांधी का नाम आ चुका था। जिसका असर देश की राजनीति पर पड़ा। लेकिन इससे पहले कि तस्वीर कुछ साफ हो पाती 21 मई 1991 में एक चुनावी रैली में राजीव गांधी की हत्या कर दी गई। इसके बाद पार्टी की कमान आई पीवी नरसिंहा राव के हाथ। 1991 से 1996 तक वो देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे। वहीं राजीव गांधी की मौत के बाद उनका परिवार पूरी तरह टूट गया और सोनिया ने बच्चों समेत राजनीति से किनारा कर लिया। लेकिन नियति को शायद कुछ और ही मंज़ूर था।

पार्टी में बगावत और टूट-फूट का दौर शुरू हो गया था। एन डी तिवारी ने अपने समर्थकों के साथ तिवारी कांग्रेस बना ली वहीं ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस बना ली। और 1998 में कांग्रेस को बचाने के लिए सोनिया गांधी को राजनीति के मैदान में आना पड़ा। बावजूद इसके रुकावटें थमीं नहीं, सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे ने हवा पकड़नी शुरु की। शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर को विदेशी महिला के नेतृत्व में काम करना रास नहीं आया और उन्होंने पार्टी छोड़ दी।

लेकिन सोनिया गांधी की वापसी से पार्टी में नई जान आई और 2004 के आम चुनावों में सोनिया गांधी के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनी। सोनिया गांधी ने तमाम दबावों के बावजूद, जनमत हासिल होने के बावजूद और गठबंधन दलों की सहमति के बावजूद प्रधानमंत्री पद नहीं स्वीकारा। इसकी जगह उन्होंने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के अध्यक्ष पद की कमान संभाली और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठाया गया मनमोहन सिंह को।

यूपीए ने 10 साल तक देश की कुर्सी पर राज किया। लेकिन इस दौरान सरकार पर लगे घोटालों की आंच ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया और 2014 लोकसभा चुनाव में बाजी मार ली देश की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी ने। आगे की राह कांग्रेस के लिए आसान नहीं है। सोनिया गांधी के अलावा अब पार्टी की कमान उनके बेटे राहुल गांधी संभाल रहा है। जिनके नेतृत्व में पार्टी भविष्य के सपने बुन रही है। हालांकि पार्टी में अभी तक पहले जैसी जान वापस नहीं लौट पाई है।

HIGHLIGHTS

  • इंडियन नेशनल कांग्रेस का 132वां स्थापना दिवस आज 
  • जानें कांग्रेस का स्थापना दिवस से आज तक का सफर 
  • देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस का इतिहास 

Source : News Nation Bureau

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