अयोध्या विवाद मामले में चार प्रमुख वकील उभरकर सामने आए हैं, जिन्होंने करीब दो महीने की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत के सामने अपने पक्षों को मजबूती के साथ रखकर उसकी वैधता स्थापित करने की कोशिश की. हिंदू पक्षकारों की ओर से मामले को अदालत के सामने प्रस्तुत करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता के. पारासरन और सी. एस. वैद्यनाथन और मुस्लिम पक्षकारों की ओर से अधिवक्ता राजीव धवन और मीनाक्षी अरोड़ा ने अप्रतिम कुशलता के साथ अपना पक्ष पेश किया.
अतिशय राजनीति महत्व वाला यह मामला अब अंतिम चरण में है. मुस्लिम पक्षकार अपने पक्ष को स्थापित करने के आखिरी दौर में हैं, जिस पर हिंदू पक्षकारों ने अपना जवाब दाखिल किया और इनकी दलील 18 अक्टूबर को पूरी होगी. मामले में रोजाना सुनवाई छह अगस्त से शुरू हुई थी, जो विभिन्न चरणों से गुजरी है. सुनवाई के दौरान हिंदू आस्था और कानून के संदर्भ का उल्लेख किया गया, जिसे मुस्लिम पक्षकारों ने खारिज किया.
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ मामले की सुनवाई कर रही है. इस विवाद की शुरुआत 19वीं सदी में ही हुई, लेकिन अभी इस पर कानूनी फैसला आना बाकी है. मामले को तत्परता से पेश करने और राम लला विराजमान के साथ जुड़ी हिंदू आस्था के पक्ष को व्यापक तरीके से प्रमाणित करने के लिए पारासरन (92) ने लंबे समय से मामले की तैयारी कर रखी थी और वैद्यनाथन ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट की प्रासंगिकता और वैधता के आधार पर पक्ष को सबल बनाया.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एएसआई की रिपोर्ट को मान्य प्रदान की. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदू मंदिर जैसी संरचना बाबरी मस्जिद के नीचे विद्यमान है. सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से धवन (73) ने जोरदार तरीके से अपना पक्ष रखा. उन्होंने धारदार और तफसीली तरीके से दलीलें पेश कीं, जिससे अदालत में कई सवाल पैदा हुए.
धवन ने विवादित स्थल के प्रबंधन के सिलसिले में हिंदू पक्षकारों के बीच पैदा हुए विवाद की ओर अदालत का ध्यान आकृष्ट किया. अरोड़ा की दलीलों से पीठ की ओर से कई सवाल उठे और एएसआई की रिपोर्ट की वैधता पर उन्होंने सभी न्यायाधीशों को बहस में शामिल कर दिया.
Source : आईएएनएस