भारत में आज मोदी सरकार के 4 साल पूरे हो गए हैं। 26 मई 2014 के दिन ही नरेंद्र मोदी ने भारत के 15वें प्रधानमंत्री को रूप में शपथ ली थी।
जहां आज बीजेपी के 4 साल पूरे होने पर पार्टी के कार्यकर्ता सरकार का बखान करने में जुटे हैं वहीं विपक्ष इसे विश्वासघात के रूप में मना रहा है और जगह-जगह विरोध प्रदर्शन कर रहा है।
साल 2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई उसके बाद से अब तक सरकार ने नेबर फर्स्ट (पड़ोसी प्रथम) का नारा दिया पर जमीनी हकीकत क्या है इसे देखने की जरूरत है।
शपथ लेने के पहले साल में पीएम मोदी की 'नेबर डिप्लोमेसी' काफी चर्चा का विषय रही, लेकिन आज की तारीख में पाकिस्तान के साथ नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार, बांग्लादेश और भूटान के साथ भी भारत के संबंधों में खटास आ गई है।
शपथ ग्रहण समारोह में पीएम ने सभी सार्क देशों को शामिल होने का न्योता दिया था जिसमें बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना को छोड़कर लगभग सभी देश शामिल भी हुए थे।
चीन ने अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना 'वन बेल्ट, वन रोड' के जरिए भारत को उसके पड़ोसी देशों से दूर करने की कूटनीतिक चाल चली है तो भारत ने चीन और श्रीलंका के बीच हम्बनटोटा को लेकर हुए समझौते के चलते श्रीलंका से दूरी बना ली है।
हालांकि, श्रीलंका में चीन का प्रभुत्व कम करने के लिए सेना प्रमुख ने कोलंबो का दौरा किया था, लेकिन श्रीलंका में चीन के लगातार निवेश के कारण यह दूरी कम नहीं हो पाई।
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वहीं इन 4 सालों के दौरान नेपाल ने भारत पर आर्थिक नाकेबंदी का आरोप लगाया। इस आर्थिक नाकेबंदी के दौरान नेपाल और चीन के बीच नजदीकियां काफी बढ़ गई हैं। भारत और नेपाल के बीच 2016 में संबंध उस समय निचले स्तरों तक पहुंच गए थे, जब नेपाली की राष्ट्रपति बिद्यादेवी भंडारी ने भारत दौरा रद्द कर अपने राजदूत को वापस बुला लिया था।
रोहिंग्या शरणार्थियों के मामले पर तीन सूत्रीय सुलह का फॉर्मूला सुझाकर चीन म्यांमार के करीब पहुंच गया है। म्यांमार और बांग्लादेश के बीच रोहिंग्या शरणार्थियों को लेकर काफी समय से विवाद चल रहा है।
2014 में हुए कुछ समझौतों के कारण बांग्लादेश और भारत के बीच संबंधों में स्थिरता नजर आ रही थी लेकिन तीस्ता जल समझौते और बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे के बाद एक बार फिर खटास देखने को मिल रही है।
वहीं मालदीव की संसद में चीन का विवादित 'फ्री ट्रेड समझौता' पारित होने से मालदीव चीन के करीब पहुंच गया है।
पाकिस्तान और चीन के साथ भारत के संबंध किसी से छुपे हुए नहीं है। 2017 में हुए डोकलाम विवाद और भारतीय सीमा पर लगातार चल रहा संघर्ष विराम यह साफ दर्शाता है कि हमारे रिश्ते इन देशों के साथ किस स्तर तक खराब हो चुके हैं।
सरकार भले ही विश्व में भारत की विदेश नीति को लेकर कुछ भी दावा करे पर यह भी सच है कि इन 4 सालों में भारत ने अपने पड़ोसियों से काफी दूरियां बना ली है, इस मुद्दे पर उसे पुनर्विचार करने की जरूरत है।
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Source : News Nation Bureau