केंद्र सरकार ने मंगलवार को बड़ा कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दाखिल की है. अर्जी में सरकार ने अयोध्या में जमीन का कुछ राम जन्मभूमि न्यास को देने की बात कही है. सरकार का कहना है कि 67 एकड़ जमीन अधिग्रहण किया गया था, जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया है. जमीन का विवाद सिर्फ 2.77 एक़ड़ का है, बाकी जमीन पर कोई विवाद नहीं है. इसलिए उस पर यथास्थित बरकरार रखने की जरूरत नहीं है. सरकार चाहती है कि जमीन का कुछ हिस्सा राम जन्भूमि न्यास को दिया जाए और सुप्रीम इसकी इज़ाजत दे.
- 1993 में 67 एकड़ ज़मीन का सरकार ने अधिग्रहण किया
- विवादित जमीन के आसपास की जमीन का अधिग्रहण इसलिए किया गया था, ताकि विवाद के निपटारे के बाद उस विवादित जमीन पर कब्जे/ उपयोग में कोई बाधा न हो.
- इसमे करीब 42 एकड़ की ज़मीन रामजन्म भूमि न्यास की है
- 1994 में इस्माइल फ़ारूक़ी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा था कि विवादित ज़मीन पर कोर्ट का फैसला आने के बाद गैर विवादित ज़मीन को उनके मूल मालिको को वापिस लौटाने पर विचार कर सकती है
- 2003 में असलम भूरे फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- विवादित और ग़ैरविवादित ज़मीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता. अधिग्रहित ज़मीन को उनके मालिकों को लौटाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए ज़मीन मालिकों को कोर्ट में अर्ज़ी दायर करनी होगी. इसके बाद राम जन्मभूमि न्यास ने अपनी ग़ैरविवादित ज़मीन 42 एकड़ पर अपना मालिकाना हक हासिल करने के लिए सरकार से गुहार लगाई.
- 1996 में सरकार रामजन्म भूमि न्यास की मांग ठुकरा दी थी.इसके बाद न्यास ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसे कोर्ट ने 1997 में ख़ारिज कर दिया था.
- 2002 में जब गैर विवादित जमीन पर पूजा शुरू हो गयी तो असलम भूरे ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. इस याचिका पर सुनवाई के बाद 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने 67 एकड़ पूरी जमीन पर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया.
- अब केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अर्जी में कहा है कि राम मन्दिर न्यास ने अपने हिस्से की गैर विवादित ज़मीन की मांग की है.
Source : Arvind Singh