आजादी के 70 सालः एक ऐसा क्रांतिवीर जिससे थर थर कांपते थे अंग्रेज, जानिए जतिन्द्रनाथ मुखर्जी के बारे में

जतिन्द्रनाथ मुखर्जी का जन्म 7 दिसंबर,1879 को बंगाल के नदिया जिले के कुश्तिया उपखंड के कायाग्राम गांव में हुआ था।

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आजादी के 70 सालः एक ऐसा क्रांतिवीर जिससे थर थर कांपते थे अंग्रेज, जानिए जतिन्द्रनाथ मुखर्जी के बारे में

क्रांतिवीर जतिन्द्रनाथ मुखर्जी

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जतिन्द्रनाथ मुखर्जी का जन्म 7 दिसंबर,1879 को बंगाल के नदिया जिले के कुश्तिया उपखंड के कायाग्राम गांव में हुआ था। कायाग्राम गांव वर्तमान में बांग्लादेश में स्थित है। पाँच वर्ष की अल्पायु में ही उनके पिता का देहावसान हो गया। माँ ने बड़ी कठिनाई से उनका लालन-पालन किया।

एक बच्चे के रूप में जतिन्द्रनाथ मुखर्जी व्यापक रूप से अपनी शारीरिक शक्ति और साहस के लिए जाने जाते थे। जतिन्द्रनाथ मुखर्जी के चरित्र के लिए यह एक और पक्ष है जो कम देखा गया है। जतिन बहुत ही सज्जन और दयालु थे।

आइए जानते है उनके बारे 10 मुख्य बातें:

1. वर्ष 1895 में, जतिन्द्रनाथ मुखर्जी कलकत्ता सेन्ट्रल कॉलेज में ललित कला के एक छात्र के रूप में शामिल हो गए। उन्होंने स्टेनो टाइपिंग सीखा, जो अपने समय के दौरान एक प्रतिष्ठित कोर्स था।

2. अपने कॉलेज के वर्षों के दौरान जतिन्द्रनाथ मुखर्जी स्वामी विवेकानंद के संपर्क में आये। स्वामी विवेकानंद ने जतिन्द्रनाथ मुखर्जी की क्षमता का एहसास एक भविष्य के क्रांतिकारी के रूप में किया और उन्हें कुश्ती कला सीखने के लिए अम्बुगुहा के जिमनैजियम भेजा था।

3. जतिन्द्रनाथ मुखर्जी ने श्री अरविंद, जो पहले से ही उस समय के स्थापित क्रांतिकारी थे, के साथ हाथ मिलाया और वर्ष 1903 में समूह ने ब्रिटिश रेजिमेंट में भारतीय सैनिकों पर क्रांति के द्वारा जीत की योजना तैयार की।

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4. एक तेंदुआ कायाग्राम गांव के आसपास के क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए बहुत परेशानी का कारण बना हुआ था। अपने जीवन के बारे में चिंता नहीं करते हुए, जतिन्द्रनाथ मुखर्जी ने तेंदुए को मारने का निर्णय लिया। केवल एक खुखरी (गोरखा कटार) से उन्होंने तेंदुए के गर्दन पर वार करके मार डाला। बहादुरी के इस कार्य के लिए मुखर्जी को बंगाल सरकार ने पुरस्कार प्रदान किया और उन्हें 'बाघा जतिन' के नाम से प्रसिद्धि मिली।

5. अप्रैल 1908 में बाघा जतिन सिलीगुड़ी रेलवे स्टेशन पर तीन अंग्रेजी सैन्य अधिकारियों के साथ एक लड़ाई में उन सभी को अकेले पीट दिया। तब से अंग्रेज उनसे थर थर कांपने लगे थे।

6. 1910 में हावड़ा-सिबपुर षड्यंत्र केस की विफलता के बाद जतिन को गिरफ्तार किया गया और फरवरी 1911 में रिहा हुए। जेल से अपनी रिहाई के बाद, बाघा जतिन ने राजनीतिक विचारों और विचारधाराओं के एक नए युग की शुरूआत की।

7. 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के बाद, जतिन मुखर्जी की युगांतर पार्टी ने बर्लिन समिति और जर्मनी में भारतीय स्वतंत्रता पार्टी के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जबकि भारतीयों की अंग्रेजो के खिलाफ क्रांति योजनाओं को जर्मनी का समर्थन प्राप्त था, यह बाघा जतिन थे जिन्होंने इस पूरी प्रक्रिया में समन्वय और नेतृत्व प्रदान किया था।

8. जर्मनी के साथ जतिन मुखर्जी की भागीदारी के बारे में ब्रिटिश अधिकारियों को पता चला, उन्होंने तत्काल कार्रवाई से गंगा के डेल्टा क्षेत्रों, उड़ीसा के चटगांव और नोआखली तटीय क्षेत्रों को सील कर दिया।

9. ब्रिटिश सरकार और ग्रामीण बाघा जतिन की खोज में थे क्योंकि ब्रिटिश सरकार ने उनकी जानकारी देने वाले को इनाम देने की घोषणा की थी। पांच क्रांतिकारियों जिनके पास माउजर,पिस्टल थी और आधुनिक राइफल से लैस पुलिस और सशस्त्र सेना के बीच 75 मिनट चली मुठभेड़ में अनगिनत ब्रिटिश लोग घायल हो गए और क्रांतिकारियों में चित्ताप्रिया रे चौधरी की मृत्यु हो गई। जतिन गंभीर रूप से घायल हो गए थे।

10.बाघा जतिन को बालासोर अस्पताल ले जाया गया जहां उन्होंने 10 सितंबर, 1915 को अपनी अंतिम सांस ली।

एक अमेरिकी प्रचारक ने मशहूर टिप्पणी की थी कि 'बाघा जतिन कुछ और अधिक वर्षों के लिए जीवित रहते तो कोई भी महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के रूप में नहीं जानता।'

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Source : News Nation Bureau

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