भारत को आजादी दिलाने में यूं तो कई लोगों ने अपने प्राण न्यौछावर किए हैं, इन बलितंदानों में सबसे पहला बलिदान देश के पहले क्रांतिकारी मंगल पांडे था। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सबसे पहली आवाज उठाने वाले मंगल पांडे ने ऐसी आग फैलाई जो कि स्वतंत्रता के बाद ही शांत हुई।
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम आपको देश के सबसे पहले क्रांतिवीर के बारे में बताने जा रहे हैं।
मंगल पांडे का जन्म 30 जनवरी 1831 को संयुक्त प्रांत के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था। पिता दिवाकर पांडे और मां अभयरानी थीं। सामान्य घर में जन्मे मंगल पांडे को घर चलाने के लिए अंग्रेजी फौज में भर्ती होना पड़ा।
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वो 1849 में 22 साल की उम्र में ही ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हुए थे। इन्होंने बैरकपुर की सैनिक छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री की पैदल सेना में थे।
अंग्रेजी हुकूमत की फूट डालो राज करो नीति से पहले ही लोगों में काफी रोष था। इसके बाद जब नए कारतूसों के इस्तेमाल की बारी आई तो सैनिक भड़क गए। इन कारतूसों को बंदूक में डालने से पहले मुंह से खोलना पड़ता था।
सैनिकों के बीच ऐसी खबर फैल गई कि इस कारतूस को बनाने में गाय और सुअर की चर्बी का इस्तेमाल होता था। भारतीय सैनिकों के साथ होने वाले भेदभाव से पहले ही सैनिकों में रोष था, इसके बाद कारतूस वाली अफवाह ने आग में घी का काम किया।
9 फरवरी 18757 को जब नया कारतूस सैनिकों में बांटा गया तो उसने मंगल पांडे ने लेने से मना कर दिया। इसके बाद उनके हथियार छीन लेने और वर्दी उतारने का आदेश अंग्रेजी हुकूमत ने दिया।
मंगल पांडे ने इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया और 29 मार्च 1857 को उनकी राइफल छीनने आगे बढ़े अंग्रेज अफसर पर ही हमला कर दिया। इस तरह से नए कारतूस का उपयोग अंग्रेजी हुकूमत को भारी पड़ा और यहां से शुरू हुआ भारत का स्वतंत्रता संग्राम।
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मंगल पांडे ने अपने साथियों से मदद मांगी थी, लेकिन डर की वहज से कोई उनके साथ नहीं आया। ये देखकर उन्होंने वर्दी उतारने आ रहे अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन को मौत के घाट उतार दिया। पांडे ने एक और अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट बॉब को मौत के घाट उतार दिया।
इसके बाद मंगल पांडे को गिरफ्तार कर लिया गया, उन पर कोर्ट में मुकदमा चलाया गया और फांसी की सजा सुनाई गई। अंग्रजी शासन ने मंगल पांडे को तय तिथि से 10 दिन पहले ही यानी 8 अप्रैल 1857 को फांसी पर लटका दिया था।
Source : Narendra Hazari