दिल्ली हाई कोर्ट ने आम आदमी पार्टी (आप) को बड़ी राहत देते हुए चुनाव आयोग की तरफ से अगली सुनवाई तक दिल्ली में उप-चुनाव की तारीख की घोषणा किए जाने पर रोक लगा दी है।
लाभ के पद के मामले में चुनाव आयोग ने पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द किए जाने की सिफारिश की थी, जिसे राष्ट्रपति ने मंजूर कर लिया था। इसके बाद कानून मंत्रालय ने इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी थी।
आप के विधायकों ने आयोग के इसी फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी है। विधायकों ने कोर्ट से इस आदेश पर रोक लगाने की मांग की है। हालांकि आज की सुनवाई में अदालत ने इस आदेश पर कोई रोक लगाने से मना कर दिया।
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कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई तक चुनाव आयोग से दिल्ली में इन 20 विधायकों की सीट पर होने वाले उप-चुनाव की घोषणा किए जाने पर रोक लगा दी है। अगली सुनवाई 29 जनवरी को होगी।
कोर्ट से राहत नहीं मिलने की स्थिति में इन सभी सीटों पर चुनाव कराए जाने का रास्ता साफ हो जाएगा। हालांकि पार्टी के पास इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प खुला रहेगा।
इसके साथ ही दिल्ली हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को इस मामले में 6 फरवरी तक जवाब दाखिल करने को कहा है। हाई कोर्ट ने इस मामले में आयोग से वह सभी दस्तावेज मांगे है, जिसके आधार पर आप के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द की गई है।
फिलहाल दिल्ली विधानसभा में आधिकारिक तौर पर आप के 66 सदस्य हैं जबकि अन्य चार सीटें भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पास है। इसलिए इन विधायकों की सदस्यता रद्द किए जाने के बाद भी दिल्ली में आप की सरकार को कोई खतरा नहीं है।
जिन विधायकों को अयोग्य घोषित किया गया है, उनमें अलका लांबा, आदर्श शास्त्री, संजीव झा, राजेश गुप्ता, कैलाश गहलोत, विजेंदर गर्ग, प्रवीण कुमार, शरद कुमार, मदन लाल खुफिया, शिव चरण गोयल, सरिता सिंह, नरेश यादव, राजेश ऋषि, अनिल कुमार, सोम दत्त, अवतार सिंह, सुखवीर सिंह डाला, मनोज कुमार, नितिन त्यागी और जरनैल सिंह (तिलक नगर) शामिल हैं।
उल्लेखनीय है कि पिछले साल अक्टूबर में चुनाव आयोग ने आप विधायकों की वह याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ लाभ के पद का मामला खत्म करने का आग्रह किया था। आयोग ने आप विधायकों को नोटिस जारी कर इस मामले पर स्पष्टीकरण मांगा था।
आप सरकार ने मार्च 2015 में दिल्ली विधानसभा सदस्य (अयोग्यता हटाने) अधिनियम, 1997 में एक संशोधन पारित किया था, जिसमें संसदीय सचिव के पदों को लाभ के पद की परिभाषा से मुक्त करने का प्रावधान था।
लेकिन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उस संशोधन को स्वीकृति देने से इंकार कर दिया था। इसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने सितंबर 2016 में सभी नियुक्तियों को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया। न्यायालय ने कहा कि था कि संसदीय सचित नियुक्त करने के आदेश उपराज्यपाल की मंजूरी के बगैर जारी किए गए थे।
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HIGHLIGHTS
- विधायकों की अयोग्यता के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट से आम आदमी पार्टी को नहीं मिली कोई राहत
- हाई कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी करते हुए इस मामले में 6 फरवरी तक जवाब देने को कहा है
Source : News Nation Bureau