देश की राजधानी दिल्ली में एक अविवाहित गर्भवती युवती पहले दिल्ली हाई कोर्ट पहुंची, फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंची. मांग एक ही थी कि उसका रिश्ता टूट चुका है, वो बच्चा नहीं चाहती. ऐसे में उसे गर्भपात की अनुमति दी जाए. इस मामले में 18 तारीख को दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई हुई थी, लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने युवती को कोई राहत देने से साफ इनकार कर दिया था. जिसके बाद युवती ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और फिर सुप्रीम कोर्ट ने वो फैसला दिया, जो ऐसे किसी भी मामले में महिलाओं, युवतियों को राहत देने वाला है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेफ अबॉर्शन उक्त युवती का हक है, इससे रोकने का मतलब व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन है.
एम्स मेडिकल बोर्ड से सुझाव के आधार पर फैसला
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली एम्स की कमेटी से सुझाव मांगे थे. जिसमें बताया गया कि युवती के जीवन पर खतरा नहीं है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड के फैसले के आधार माना और ये फैसला दिया. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, सूर्यकांत और एएस बोपन्ना की पीठ ने आदेश देते हुए कहा है कि एक अविवाहित महिला को सेफ अबॉर्शन के अधिकार से वंचित करना उसकी व्यक्तिगत स्वायत्तता और स्वतंत्रता का उल्लंघन है. लिव-इन रिलेशनशिप को इस कोर्ट ने मान्यता दी है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता को केवल इस आधार पर लाभ से वंचित नहीं किया जाना चाहिए कि वह एक अविवाहित महिला है. पीठ ने कहा कि संसद का इरादा वैवाहिक संबंधों से उत्पन्न स्थितियों को सीमित करने का नहीं है. बेंच में शामिल जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि याचिकाकर्ता को अनचाहा गर्भधारण की अनुमति देना कानून के उद्देश्य और भावना के विपरीत होगा.
युवती ने क्या की थी अपील?
युवती ने अपनी याचिका में कहा है कि वह बच्चे को जन्म नहीं दे सकती, क्योंकि वह एक अविवाहित है और उसके साथी ने उससे शादी करने से इनकार कर दिया है. याचिका में आगे कहा गया है कि विवाह न होने पर बच्चे को जन्म देने से उसका सामाजिक बहिष्कार होगा और उसे मानसिक पीड़ा झेलनी होगी. चूंकि वह महज बी.ए. पास है और गैर-कामकाजी है, वह बच्चे को संभालने में सक्षम नहीं होगी. युवती ने अपनी याचिका में कहा कि वह मानसिक रूप से मां बनने के लिए तैयार नहीं है और गर्भावस्था को जारी रखने से उसे गंभीर शारीरिक और मानसिक चोट पहुंचेगी.
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दिल्ली हाईकोर्ट ने नहीं दी थी राहत
इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने 25 वर्षीय अविवाहित युवती को 23 सप्ताह और 5 दिनों की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग को लेकर राहत देने से इनकार कर दिया था. हाईकोर्ट ने कहा था कि सहमति से गर्भवती होने वाली अविवाहित महिला स्पष्ट रूप से मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2003 के तहत इस तरह की श्रेणी में नहीं आती है. वो युवती लिव-इन में रह रही थी और उसने सहमति से गर्भधारण किया था. (इनपुट-एजेंसी)
HIGHLIGHTS
- अविवाहित युवती को भी अबॉर्शन का हक
- हाई कोर्ट के फैसले को SC ने पलटा
- रिश्ता टूट जाने के बाद युवती ने मांगी थी अबॉर्शन की परमिशन