विशेषज्ञों का कहना है कि दुनियाभर में समुदायों के बीच कोविड-19 के तेजी से प्रसार और उभार (दूसरी लहर) से, बिना लक्षण वाले लोगों की, संक्रमण को फैलाने में संभावित भूमिका का संकेत मिलता है. टीका के कारगर सिद्ध होने के लिए शरीर में प्रतिरक्षा तंत्र के लंबे समय तक बने रहने को लेकर भी अनिश्चितता की स्थिति है.
आईसीएमआर के ‘इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च’ में एक संपादकीय के मुताबिक, बिना लक्षण वाले संक्रमितों की, कोराना वायरस संक्रमण को फैलाने में संभावित भूमिका को लेकर ठोस प्रमाण मिलने के बाद मास्क के इस्तेमाल को जारी रखने और अन्य उपायों को जारी रखने की पैरवी की जा सकती है.डब्ल्यूएचओ के ईस्ट एशिया क्षेत्रीय कार्यालय के लिए संचारी रोग के पूर्व निदेशक राजेश भाटिया और आईसीएमआर- राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान की निदेशक प्रिया अब्राहम ने कोविड-19 महामारी पर एक संपादकीय लिखा है .
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इसमें कहा गया है कि महामारी के आरंभिक चरण में माना गया था कि कोविड-19 संक्रमण किसी को दोबारा नहीं होगा . इसमें कहा गया, ‘‘नए अध्ययन से पता चलता है कि दोबारा संक्रमण हो सकता है . वायरस के फिर से सक्रिय होने या दोबारा संक्रमण और महामारी के संदर्भ में उसके महत्व को लेकर पुष्टि की प्रतीक्षा है. ’’
सीरो की मौजूदगी के जरिए संक्रमण और प्रतिरक्षा के बारे में पता लगाया जाता है. सीरो सर्वेक्षण आंकडों को लेकर कुछ ही अध्ययन हुए हैं लेकिन इससे ठोस निष्कर्ष सामने नहीं आ पाया. संपादकीय में हाल में एक सीरो सर्वेक्षण के अध्ययन का जिक्र किया गया है कि जेनेवा, स्विट्जरलैंड की अधिकतर आबादी महामारी की इस लहर के दौरान संक्रमित नहीं हुई जबकि वह क्षेत्र कोविड-19 संक्रमण से बहुत ज्यादा प्रभावित है . इसमें कहा गया कि लंबे समय तक प्रतिरक्षा तंत्र के मौजूद नहीं रहने से टीका के कारगर सिद्ध होने पर भी असर पड़ेगा.
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टीका का असली असर तब पता चलेगा जब आगामी महीनों में अलग-अलग आबादी पर इसका इस्तेमाल होगा . वर्तमान में महामारी की रोकथाम में टीका को आखिरी उपाय माना जा रहा है . वैश्विक स्तर पर इसको लेकर प्रयास भी तेज हो गए हैं.
Source : Bhasha