सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र की 15 नवंबर, 2019 की उस अधिसूचना की वैधता को बरकरार रखा है, जिसमें बैंकों को दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) के तहत ऋण वसूली के लिए व्यक्तिगत कॉपोर्रेट गारंटरों के खिलाफ कार्रवाई करने की अनुमति दी गई थी. कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला लेनदारों से बकाये की वसूली के मामले में काफी मददगार साबित होगा. फैसले के बाद डीएचएफएल के पूर्व प्रमोटर कपिल वधावन और भूषण पावर एंड स्टील के पूर्व मालिक संजय सिंघल प्रभावित लोगों में शामिल हो सकते हैं.
कॉपोर्रेट वकील सुमित बत्रा ने कहा कि यह निर्णय ऋणदाताओं के लिए कॉपोर्रेट देनदार और व्यक्तिगत गारंटरों के खिलाफ एक साथ कार्रवाई शुरू करने और आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त करता है. उन्होंने कहा कि पहले व्यक्तिगत गारंटरों के पीछे जाने के लिए ऋणदाताओं के पास कोई उपाय नहीं था, प्रमोटरों को एक आसान भागने का मार्ग मिल जाता था और इसके अलावा दिवाला समाधान प्रक्रिया में भी सही प्रकार से संचालित नहीं हो पाती थी. इस निर्णय के साथ अब यह उम्मीद की जा सकती है ऋणदाता अपनी ऋण वसूली अधिक सही ढंग से कर सकेंगे.
सिंह एंड एसोसिएट्स के सीनियर पार्टनर डेजी चावला ने भी शीर्ष अदालत के फैसला को देनदारों या ऋण प्रदान करने वालों के हित में बताया और कहा कि उन्हें अब बकाया वसूलने का मौका मिलेगा. हालांकि, उन्होंने कहा कि कुछ मामलों में, समय और पैसा खर्च करने के बाद भी कोई वसूली नहीं हो सकती है, क्योंकि व्यक्तिगत गारंटर आमतौर पर उनके नाम पर गारंटी के रूप में दी गई संपत्ति को छोड़कर अन्य कोई संपत्ति नहीं रखते हैं. केएस लीगल एंड एसोसिएट्स में मैनेजिंग पार्टनर सोनम चांदवानी ने कहा, इस फैसले का संभावित परिणाम ऋणदाताओं के लिए एक बड़ा लाभ होगा और ऋण पर व्यक्तिगत गारंटर के रूप में शामिल प्रमोटरों के लिए परेशानी होगी.
रिसर्जेंट इंडिया लिमिटेड के निदेशक सुधीर चंडी ने कहा, यह आईबीसी के तहत अधिकतम वसूली सुनिश्चित करेगा और भविष्य में सख्त क्रेडिट अनुशासन सुनिश्चित करेगा. दिसंबर 2019 में सरकार एक नया प्रावधान लेकर आई थी, जिसने उधारदाताओं को कॉपोर्रेट देनदारों के व्यक्तिगत गारंटरों के खिलाफ दिवाला शुरू करने के लिए आवेदन करने का अधिकार दिया. सरल शब्दों में कहें तो इस कानून ने बैंकों की गारंटी देने वाली कंपनियों और व्यक्तियों के खिलाफ समानांतर दिवालिया होने की अनुमति दी. बता दें कि अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिकाएं पिछले वर्ष अक्टूबर में हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला इस वर्ष मार्च में सुरक्षित रखा था. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने अब दिवालिया कंपनियों के मालिकों और उनके गारंटर बनने वालों को जबरदस्त झटका दिया है.
Source : News Nation Bureau