भारतीय समाज में लड़की को शादी के समय एक बात गांठ बांध दी जाती है कि पति का घर ही उसका संसार है और अब हर हालात में उसके साथ ही रहना है. इसके अलावा हमारे समाज में शादी को सात जन्मों का बंधन बताया जाता है, जिसे सच मानते हुए कई शादीशुदा महिलाएं जबरदस्ती उसे ढोती रहती है. क्या महिला को पति के साथ दांपत्य जीवन में रहने को मजबूर किया जा सकता है? इस सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से राय मांगी है.
इस मामले में पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में लॉ स्टूडेंट ने अर्जी दाखिल कर हिंदू मैरिज एक्ट और स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधानों को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया कि ये मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. याचिका में कहा गया है कि किसी को भी किसी के साथ रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने मामले में दाखिल याचिका पर केंद्र सरकार को पिछले साल नोटिस जारी किया था और मामले को बड़ी बेंच को रेफर कर दिया था.
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बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के निजता के अधिकार, एडल्टरी कानून को खत्म करने और दो बालिगों के बीच मर्जी से बनाए जाने वाले शारीरिक संबंध को अपराध के दायरे से बाहर करने के फैसलों के आलोक में ये अर्जी दाखिल की गई थी. एससी में मंगलवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस रोहिंटन नरीमन की अगुवाई वाली तीन जजों की बड़ी बेंच ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से राय मांगी है.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने निजता को जीवन के अधिकार का हिस्सा माना था फिर बाद में एडल्टरी मामले में महत्वपूर्ण फैसला दिया. कोर्ट ने कहा था कि महिला की निजी पसंद उसके गरिमा का अधिकार है. इन फैसलों के बाद सुप्रीम कोर्ट में दांपत्य जीवन बहाल रखने के प्रावधान को चुनौती दी गई थी.
क्या है आईपीसी की धारा 497 ( एडल्टरी कानून) (What is IPC section 497 (Adultery law) )
आईपीसी (IPC) की धारा 497 (Section 497) के तहत अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी शादीशुदा महिला के साथ रजामंदी से संबंध बनाता है तो उस महिला का पति एडल्टरी के नाम पर इस पुरुष के खिलाफ केस दर्ज कर सकता है लेकिन वो अपनी पत्नि के खिलाफ किसी भी तरह की कोई कार्रवाई नहीं कर सकता है. साथ ही इस मामले में शामिल पुरुष की पत्नी भी महिला के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं करवा सकती है. इसमें ये भी प्रावधान है कि विवाहेत्तर संबंध में शामिल पुरुष के खिलाफ केवल उसकी साथी महिला का पति ही शिकायत दर्ज कर कार्रवाई करा सकता है.