एडल्टरी पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा, अगर शादीशुदा पुरुष दोषी तो महिलाएं क्यों नहीं?

सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को व्यभिचार (Adultery) के लिए सिर्फ पुरुष को सजा देने वाली आईपीसी की धारा 497 (Section 497) पर सुनवाई हुई।

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Sonam Kanojia
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एडल्टरी पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा, अगर शादीशुदा पुरुष दोषी तो महिलाएं क्यों नहीं?

फाइल फोटो

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में गुरुवार को व्यभिचार (Adultery) के लिए सिर्फ पुरुष को सजा देने वाली आईपीसी की धारा 497 (Section 497) पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि शादी और उसकी पवित्रता को बनाए रखने के लिए दोनों पार्टनर बराबर जिम्मेदार होने चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि अगर एक शादीशुदा महिला अपने पति के अलावा किसी दूसरे पुरुष के साथ संबंध बनाती है तो ऐसे में सिर्फ पुरुष को कैसे दंडित किया जा सकता है? जबकि इस अपराध में महिला बराबर की जिम्मेदार है।

कोर्ट ने हैरानी जताते हुए कहा कि कैसे संसद ने कानून में प्रावधान कर दिया कि अगर कोई विवाहित पुरुष किसी शादीशुदा महिला के साथ उसके पति की मर्जी के बिना संबंध बनाता है तो यह अपराध की श्रेणी में आएगा! वहीं, पति की इजाजत से महिला को दूसरे विवाहित पुरुष के साथ संबंध बनाना व्यभिचार को बढ़ावा देता है।

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सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि कई महिलाएं शादीशुदा होने के बावजूद पति से अलग रहती हैं। ऐसे में उनका किसी दूसरे पुरुष के साथ संबंध बनाना अपराध के दायरे में कैसे आ सकता है!

जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने कहा कि धारा 497 के तहत पत्नी को पति की मर्जी से किसी दूसरे पुरुष के साथ संबंध बनाने को अपराध नहीं मानने का कानून ही बकवास है। क्या पत्नी के साथ एक संपत्ति की तरह बर्ताव किया जाना चाहिए?

जस्टिस नरीमन ने कहा IPC की धारा 497 और शादी को बनाए रखने के बीच कोई सीधा संबंध नहीं दिखता। इस कानून में महिला को सिर्फ संपत्ति के तौर पर देखा जाता है। यह इस बात से साफ है कि कोई भी पत्नी अपने पति के खिलाफ व्यभिचार को लेकर आपराधिक शिकायत नहीं कर सकती है।

अगर कोई पुरुष किसी शादीशुदा महिला के साथ गैरकानूनी संबंध बनाता है तो उस महिला का पति ही शिकायत दर्ज करा सकता है, जबकि संबंध बनाने वाले आदमी की पत्नी को इस तरह की शिकायत दर्ज कराने का कोई अधिकार नहीं है।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा अगर किसी महिला के गैर पुरुष से संबंध बनाने पर महिला का पति शिकायत दर्ज नहीं कराता है तो ऐसी स्थिति में एडल्टरी का मुकदमा नहीं चलता। कानून का प्रावधान दर्शाता है कि पत्नी पति की गुलाम है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा एडल्टरी को अपराध के दायरे से बाहर करना, इसे लाइसेंस देने जैसा नहीं है। उनकी राय में शादी से आर्टिकल 21 के तहत मिली यौन संबंध बनाने की आजादी खत्म नहीं हो जाती, लेकिन हम यह नहीं कह रहे कि पति और पत्नी शादी से बाहर इस तरह के संबंध बनाए। हम यह कहना चाहते हैं कि शादी से बाहर संबंध तभी बनते हैं, जब शादी नाकाम हो जाए।

हालांकि जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने कहा कि पति-पत्नी के बीच वफादारी उनके सेक्सुअल पार्टनर चुनने की आजादी से कहीं ज्यादा अहमियत रखती है।

बता दें कि इस मामले पर सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी

क्या है धारा 497?

धारा 497 के मुताबिक, अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी शादीशुदा महिला से शारीरिक संबंध बनाता है, तो इसमें सिर्फ उस मर्द को ही सजा होगी। इस मामले में शादीशुदा महिला पर किसी तरह के आरोप नहीं लगेंगे। पुरुष के लिए पांच साल की सजा का प्रावधान है।

इटली में रहने वाले केरल मूल के एक सामाजिक कार्यकर्ता जोसेफ साइन ने धारा 497 को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है।

इसमें कहा गया है कि अगर शादीशुदा पुरुष और शादीशुदा महिला की आपसी सहमति से संबंध बने, तो सिर्फ पुरुष आरोपी कैसे हुआ? याचिका में कहा गया है कि 150 साल पुराना यह कानून मौजूदा दौर में बेमानी है।

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Source : News Nation Bureau

Supreme Court Adultery Law Section 497
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