दलाई लामा 81 साल के तिब्बती आध्यात्मिक नेता है. चीन तिब्बत पर अपना दावा पेश करता है. आख़िर 81 साल के इस बुज़ुर्ग से चीन इतना चिढ़ा क्यों रहता है? जिस देश में भी दलाई लामा जाते हैं वहां की सरकारों से चीन आधिकारिक तौर पर आपत्ति जताता है. आख़िर ऐसा क्यों है?
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दरअसल चीन दलाई लामा को अलगाववादी मानता है. वह सोचता है कि दलाई लामा उसके लिए समस्या हैं. दलाई लामा के कई देशों से अच्छे रिश्ते हैं. दलाई लामा अमरीका भी जाते हैं तो चीन के कान खड़े हो जाते हैं. हालांकि 2010 में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चीन के विरोध के बावजूद दलाई लामा से मुलाक़ात की थी.
14वें दलाई लामा ल्हामो थोनडप 6 जुलाई को अपना 85वां जन्मदिन मना रहे हैं. दलाई लामा को दुनियाभर में शांति का संदेश देने के लिए नोबल पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है. वे पिछले काफी समय से भारत में रह रहे हैं. बचपन से ही उन्हें घर के बाहर निकलने की ज्यादा इजाजत नहीं थी. उनका जीवन एक साधारण बच्चे से अलग था. उन्हें बचपन से ही भगवान के बराबर की उपाधि दी गई थी.
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दलाई लामा बोह्मा को अपना साइंस गुरु भी मानते हैं. दलाई लामा ने एक हफ्ते पहले ट्विटर पर इस खास स्क्रीनिंग की जानकारी दी थी. बता दें कि चीन हमेशा ही दलाई लामा का विरोध करता रहा है. भले ही दुनिया दलाई लामा को शांतुदूत मानती है लेकिन चीन ने उनपर कई आरोप लगाए हैं. भारत समेत पूरी दुनिया में दलाई लामा का एक खास सम्मान है. तिब्बत पर चीन के कब्जे के बावजूद भारत के तिब्बत साथ एक विशेष संबंध रहे हैं.
भारत ने तिब्बत के निर्वासित लोगों को शरण दी हुई है और हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निर्वासित तिब्बतियों की संसद भी चलती है जिस पर चीन हमेशा ऐतराज करता रहा है. तिब्बत पर चीन के कब्जा करने के बाद भारत ने अप्रैल 1959 में दलाई लामा को तब शरण दी थी, जब वह 23 साल के थे. दलाई लामा अरुणाचल प्रदेश के त्वांग को पार कर भारत आए थे.
Source : News Nation Bureau