कैशलेस इकोनॉमी को बढ़ावा देने के लिए सरकार का फरमान, कंपनिया बनाएं 2000 रुपये से कम का स्मार्टफोन: रिपोर्ट

नोटबंदी के बाद सरकार ने एक मीटिंग में कंपनियों को 2 से ढाई करोड़ हैंडसेट बाजार में उतारने को कहा है। चीनी कंपनियों को इस प्रोजेक्ट के लिए नहीं बुलाया गया।

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vineet kumar
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कैशलेस इकोनॉमी को बढ़ावा देने के लिए सरकार का फरमान, कंपनिया बनाएं 2000 रुपये से कम का स्मार्टफोन: रिपोर्ट

फाइल फोटो

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सरकार ने स्थानीय मोबाइल फोन निर्माताओं को 2000 रुपये से कम दाम वाले स्मार्टफोन पर काम करने को कहा है ताकि कैशलेश इकॉनोमी को और बढ़ावा दिया जा सके।

सरकार को लगता है कि नोटबंदी के बाद से कैशलेस इकोनॉमी का सपना तब तक पूरी तरह सफल नहीं हो सकता जब तक कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी वैसे डिवाइस न पहुंच जाएं, जो सस्ते हो और लोगों की पहुंच में हों।

रिपोर्ट्स के मुताबिक हाल में नीति आयोग की ओर से आयोजित एक बैठक में सरकार ने घरेलू मोबाइल कंपनियों जैसे- माइक्रोमैक्स, इंटेक्स, लावा और कार्बन से सस्ते समार्टफोन बनाने को कहा है, जिससे डिजिटल ट्रांजेक्शन को ज्यादा आसान बनाया जा सके।

इस प्रोजेक्ट के लिए चीनी कंपनियों से बात नहीं की गई और जबकि एप्पल और सैमसंग जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों ने इस बैठक में हिस्सा नहीं लिया।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सरकार ने कंपनियों को 2 से ढाई करोड़ हैंडसेट बाजार में उतारने को कहा है हालांकि इसके लिए सरकार कोई सब्सिडी नहीं देगी।

इसके बदले में कंपनियों को ही ऐसा हल निकालने को कहा गया है जिससे वैसे फोन के दाम कम हों, जिसके जरिए डिजिटल ट्राजेक्शन संभव है।

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दरअसल, सरकार ऐसे हैंडसेट्स बाजार में चाहती है जिससे आम ट्रांजेक्शन के अलावा भविष्य में आधार कार्ड की स्कैनिंग के जरिए ट्रांजेक्शन का काम भी हो सके। हालांकि जानकार बताते हैं कि ऐसे प्रोजेक्ट को साकार करना बड़ी चुनौती है। सबसे पहले तो फिंगर प्रिंट स्कैनर, अच्छा प्रोसेसर और बेहतरीन क्वालिटी के साथ-साथ कम दाम में ऐसे फोन बनाना ही एक बड़ी मुश्किल है।

फिलहाल एक आम 3G स्मार्टफोन की कीमत ही 2,500 रुपये के आसपास शुरू होती है। जबकि 4G फोन के शुरुआती दाम इससे भी ज्यादा हैं।

आंकड़ो के अनुसार भारत में मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वाले एक अरब लोगों में 30 करोड़ लोग ही ऐसे जो स्मार्टफोन इस्तेमाल करते हैं। साथ ही भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति किलोमीटर फोन की संख्या 50 फीसदी के आसपास हैं तो वहीं दिल्ली जैसे शहरों में यह बढ़कर 200 फीसदी से भी ज्यादा हो जाता है। फोन के इस्तेमाल में ऐसा अंतर भी एक बड़ी समस्या है।

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Source : News Nation Bureau

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