एम करुणानिधि के निधन के बाद दक्षिण भारत की राजनीति में एक युग का अंत हो गया। करीब 60 सालों तक दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु की राजनीति में सक्रिय रहे करुणानिधि के जाने के बाद अब सवाल उठता है कि वो जो अपने पीछे एक बड़ी और प्रभावी राजनीतिक विरासत छोड़ गए हैं उसका वारिस कौन होगा। हालांकि करीब दो साल पहले करुणानिधि ने काफी विवादों के बाद साल 2013 में अपने बेटे एमके स्टालिन को अपना राजनीतिक वारिस घोषित कर दिया था लेकिन जब तक वो जीवित रहे द्रविड़ मुनेत्र कडगम (डीएमके) पर अपनी पकड़ बनाए रखी।
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हालांकि करुणानिधि की दूसरी पत्नी से उनके बेटे अझागिरी और स्टालिन में सत्ता संघर्ष और पार्टी पर कब्जे की लड़ाई घर से लेकर सड़कों तक पर नजर आई लेकिन डीएमके प्रमुख खुद इस संघर्ष को खत्म करने की कभी न खत्म होने वाली कोशिश करते रहे।
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करुणानिधि अपने बेटों के बीच संघर्ष को अच्छे से जानते थे इसलिए बीते साल जनवरी में उन्होंने स्टालिन को पार्टी का कार्यकारी अघ्यक्ष तो नियुक्त कर दिया लेकिन पार्टी सुप्रीमों की कमान अपने ही हाथों में रखी ताकि पार्टी में कोई फूट ने पड़े।
अझागिरी और स्टालिन लंबे समय से अपने पिता करुणानिधि से पार्टी का उत्तराधिकारी घोषित करने की मांग कर रहे थे। इसके बाद एक इंटरव्यू में करुणानिधि ने साफ कर दिया था कि स्टालिन ही उनके उत्तराधिकारी होंगे। इससे साफ हो गया कि अझागिरी पार्टी और पिता के सामने अपनी वो छवि बनाने में पिछड़ गए जो पार्टी को आगे ले जा सके।
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करुणानिधि के दूसरी पत्नी से बेटे अझागिरी को उस वक्त बड़ा झटका लगा था जब उनकी बेटी और राज्यसभा सांसद कनिमोझी ने सार्वजनिक तौर पर कह दिया था कि उनके पिता के बाद सौतेले भाई स्टालिन ही आधिकारिक तौर पर पार्टी की कमान संभालेंगे।
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हालांकि बाद में ऐसी भी खबरें आई थी कि बीमार होने से कुछ दिन पहले करुणानिधि अपनी बेटी कनिमोझी को पार्टी का दायित्व देना चाहते थे।
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हालांकि डीएमके अध्यक्ष के तौर पर पार्टी की कमान संभाल रहे एमके स्टालिन भी आए दिन बीमार रहते हैं ऐसे में सभव है कि वो खुद अपने स्वास्थ्य को देकते हुए आने वाले समय में पार्टी की जिम्मेदारी अपनी सौतेली बहन कनिमोझी को सौंप दें।
Source : News Nation Bureau