Air Pollution: वर्ष 1952 में 4 दिसंबर को इंग्लैंड में स्मॉग की घनी परत छा जाने की वजह से हजारों लोगों की मौत हो गई थी. उस दिन इंग्लैंड के लंदन शहर में भारी स्मॉग या धुंध छाने लगी थी. ऐसा 4 दिन तक चलता रहा, जिसके कारण कम से कम 4,000 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. उच्च दबाव वाली वायु के घनत्व को टेम्स नदी की घाटी में जमता देखा गया. जैसे ही पश्चिम से आने वाली ठंडी हवा इससे टकराई. लंदन शहर के ऊपर इकट्ठी हुई हवा वहीं की वहीं फंस गई. आज दिल्ली में कमोबेस वही स्थिति पैदा हो गई है.
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दिल्ली सरकार, पंजाब और हरियाणा एक दूसरे पर मढ़ रहे हैं दोष
ऑड ईवन फॉर्मूला नाकाफी साबित हो रहा है तो दिल्ली सरकार, पंजाब और हरियाणा की पराली पर सारा दोष मढ़कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रही हैं. केंद्र सरकार की ओर से भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है. इंग्लैंड की तरह दुनिया के कई देशों में वायु प्रदूषण से लड़ाई लड़ी और जीती भी हैं, लेकिन भारत में सरकार के पास अभी इस तरह की कोई इच्छाशक्ति नहीं दिख रही है. हालात यह है कि दिल्ली में पब्लिक हेल्थ इमर्जेंसी घोषित कर दी गई है.
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स्कूलों में बच्चों की छुट्टी भी कर दी गई है. हालात नहीं सुधरे तो हमें भी लंदन जैसी स्थिति के लिए तैयार रहना होगा. दिल्ली और एनसीआर (NCR) में वायु प्रदूषण ने सारा रिकॉर्ड तोड़ दिया है. जानकारों का कहना है कि वातावरण में हवा इतनी जहरीली हो चुकी है कि सांस लेना भी मुश्किल हो गया है. जानकार कहते हैं कि दिल्ली और NCR में हवा की क्वॉलिटी बेहद निचले स्तर पर पहुंच गई है.
वाय प्रदूषण से लड़ने वाले प्रमुख देश
2014 से चीन लड़ रहा है वायु प्रदूषण से
2014 से चीन वायु प्रदूषण से लड़ाई लड़ रहा है. चीन ने पर्यावरण संरक्षण के लिए संसद में कानून भी पारित किया है. चीन ने भारी उद्योग पर पर्यावरण टैक्स लगाने का फैसला किया. इसके अलावा बीजिंग में मौजूद फैक्टरियों को पास के हबेई प्रांत शिफ्ट किया गया. चीन की सरकार ने कोयले से चलने वाले कई प्लांट को बंद करा दिया. चीन में ऑड-ईवन फॉर्मूला को सख्ती से लागू किया गया. वहीं चीन की सरकार ने पुराने वाहनों को सड़कों से हटाने का अभियान भी चलाया. चीन में कुछ साल पहले बीजिंग और शंघाई में नई कारों की खरीद के लिए लॉटरी सिस्टम लागू किया गया. बीजिंग में हर महीने सिर्फ 17,600 नई कार ही खरीदा जा सकता है. कार खरीदारों को इसके लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है. चीन में एयर क्वॉलिटी का स्तर चेक करने के बाद ही लोग चेहरे पर मास्क लगाकर घर से बाहर निकलते हैं. घर और स्कूल में एयर प्यूरीफायर लगाए गए हैं.
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70 साल पहले स्मॉग से लड़ चुका है अमेरिका
बात 26 जुलाई 1943 की है अमेरिका उस समय दूसरे विश्व युद्ध में उलझा हुआ था. आसमान में घना कोहरा होने की वजह से लोगों की आंखों में जलन पैदा होने लगी थी. शहर पूरी तरह से धुंध में लिपट चुका था. करीब की चीजें भी दिखाई नहीं दे रही थीं. लोगों को शक था कि जापान ने शायद केमिकल अटैक कर दिया है. हालांकि बाद में पता चला कि यह मुसीबत किसी केमिकल अटैक की वजह से नहीं बल्कि शहर के लोगों की वजह से ही आई थी. वहीं वैज्ञानिकों को लॉस एंजिल्स में अचानक बढ़े स्मॉग की वजह को पता करने में करीब 4 साल का समय लग गया.
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1950 में वैज्ञानिकों ने बताया कि स्मॉग की वजह के लिए फैक्ट्री या आयल प्लांट ज़िम्मेदार नहीं है. उनका कहना था कि स्मॉग के पीछे गाड़ियों से निकलने वाला धुआं जिम्मेदार है. वैज्ञानिकों ने ओजोन को स्मॉग की एक बड़ी वजह बताई. बता दें कि ओजोन का निर्माण तब होता है जब गाड़ियों से निकलने वाला धुंआ और आयल रिफायनरी से निकलने वाले हाइड्रोकार्बन सूरज की रौशनी के संपर्क में आता है. इस खुलासे के बाद कार कंपनियों पर भी सवाल उठे. सरकारों ने स्मॉग पर काबू पाने की काफी कोशिश जारी रखी. अगले 20 साल बाद अमेरिका में स्मॉग पल्यूशन से निपटने के लिए काफी सख्त कानून बनाए गए.
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अमेरिका ने कैसे स्मॉग पर काबू पाया
- 1947 में अमेरिका में पहला एयर पॉल्यूशन कंट्रोल डिस्ट्रिक्ट की स्थापना की गई
- 1963 में कैलिफोर्निया में पहला क्लीन एयर ऐक्ट लागू किया गया
- 1965 में गाड़ियों के लिए नेशनल एमिशन स्टैंडर्ड लागू कर दिया गया
- अमेरिका में कार में एंटी स्मॉग डिवाइस लगाना जरूरी कर दिया गया
- 1970 में पूरे अमेरिका में क्लीन एयर ऐक्ट को कानूनी तौर पर लागू कर दिया गया
लंदन में प्रदूषण से निपटने के लिए हैं सख्त कानून
1952 में 4 दिसंबर को इंग्लैंड के लंदन में स्मॉग की घनी परत छाने की वजह से हजारों लोगों की जान चली गई थी. उस समय लंदन में एसओटू हाई लेवल पर था और पीएम लेवल 500 माइक्रोग्राम/क्यूबिक मीटर दर्ज किया गया था. प्रदूषण से निपटने के लिए लंदन समेत कई शहरों में Congestion Charge लगाया जाता है. इसके तहत गाड़ियों से निकलने वाले धुएं के बदले चार्ज वसूला जाता है. साथ ही पुरानी कारों पर चार्ज देना पड़ता है. बता दें कि लंदन दुनियाभर में सातों दिन प्रदूषण पर शुल्क लगाने वाला पहला देश बन चुका है.
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पेरिस, जर्मनी, ब्राजील और डेनमार्क ने भी प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई लड़ी
पेरिस में हवा की लगातार मॉनिटरिंग की जाती है. हवा में प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर वहां मेट्रो को यात्रा के लिए मुफ्त कर दिया जाता है. इससे प्रदूषण पर नियंत्रण पाने में काफी मदद मिलती है. पेरिस में साइकिलों का प्रचलन आम है. यहां 2 यूरो खर्च करके 2 घंटे तक साइकिल अपने पास रख सकते हैं. जर्मनी के फ्रेइबर्ग में सस्ते पब्लिक ट्रांसपोर्ट के साथ करीब 500 किमी बाइक रूट को बनाया गया है. ब्राजील में 70 फीसदी शहरी लोग सार्वजनिक वाहन प्रणाली का उपयोग करते हैं. वहीं डेनमार्क के कोपेनहेगन शहर में भी कार की जगह बाइक के इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.
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क्या होता है हेल्थ इमरजेंसी
- एक्यूआई 0-50 होने पर इसे अच्छी श्रेणी का माना जाता है
- 51-100 को संतोषजनक, 101-200 को मध्यम, 201-300 को खराब माना जाता है
- एक्यूआई 301-400 को अत्यंत खराब, 401-500 को गंभीर माना जाता है500 से ऊपर एक्यूआई को बेहद गंभीर और आपात श्रेणी का माना जाता है
- एयर पॉल्यूशन तय मात्रा से ज़्यादा होने पर घोषित की जाती है इमरजेंसी
- कहीं भी खुलेआम आग जलाने और कूड़ा जलाने पर रोक लगा दी जाती है
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दिल्ली में एयर पॉल्यूशन की बड़ी वजह
- दिल्ली में प्रदुषण के लिए पराली जलाने को जिम्मेदार माना जाता है
- पराली जलाने से दिल्ली में प्रदूषण में 35 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है
- दिल्ली में औद्योगिक प्रदूषण वजह से 30 फीसदी पीएम 2.5 बढ़ता है: Teri रिपोर्ट (2018)
- दिल्ली की पीएम 2.5 का 28 फीसदी गाड़ियों की वजह से है: Teri रिपोर्ट (2018)