प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय चयन समिति की बैठक के बाद गुरुवार शाम को आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक पद से हटाए जाने के बाद देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई उनके खिलाफ शुरुआती जांच कर सकती है. सूत्रों के मुताबिक सीबीआई मीट कारोबारी मोईऩ कुरैशी मामले में आलोक वर्मा के बौतर सीबीआई निदेशक रहते ही संदिग्ध भूमिका की जांच कर सकती है. वर्मा को लेकर जो सीवीसी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को दी थी उसमें उनपर कई गंभीर आरोप लगे थे. CVC रिपोर्ट में रिसर्च और एनालिसिस विंग (रॉ Research and Analysis Wing) ने एक फोन कॉल इंटरसेप्ट किया था, जिसमें ‘सीबीआई के नंबर वन अफसर को पैसे सौंपे जाने’ की चर्चा हुई थी.
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति ने केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC सीवीसी) की इस रिपोर्ट पर गौर किया कि मीट कारोबारी मोइन कुरैशी के खिलाफ सीबीआई के नंबर-2 अफसर राकेश अस्थाना हैदराबाद के कारोबारी सतीश बाबू सना को आरोपी बनाना चाहते थे पर आलोक वर्मा ने मंजूरी ही नहीं दी. मोइन कुरैशी के खिलाफ जांच को प्रभावित करने की कोशिश की गई थी. दो करोड़ रुपए की रिश्वत लिए जाने के भी सबूत थे. इस मामले में वर्मा की भूमिका संदेहास्पद थी. प्रथम दृष्टया उनके खिलाफ मामला बन रहा था. वहीं सना ने एक शिकायत दर्ज कराकर आरोप लगाया था कि कैसे उसने बिचौलियों के जरिए अस्थाना को रिश्वत दी थी.
इस मामले में सीबीआई ने 18 सितंबर को राकेश अस्थाना के संबंध में कमीशन को लिखी चिट्ठी में कहा था कि संबंधित अधिकारी पर केस में लगे आरोप सच प्रतीत होते हैं. अधिकारी को सीबीआई के पास अपने खिलाफ सबूत होने की भी जानकारी थी. सीबीआई ने कहा था कि राकेश अस्थाना की शिकायत को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए, क्योंकि यह एक दागी अधिकारी की सीबीआई के दूसरे अधिकारियों को धमकाने की कोशिश है. सीबीआई ने कहा था कि वह कमीशन को जरूरी फाइल उपलब्ध कराने को भी तैयार हैं. साथ ही सीबीआई ने शिकायतकर्ता की पहचान भी पूछी थी.
सीबीआई की 18 सितंबर की चिट्ठी के संदर्भ में कमीशन ने शिकायतकर्ता की पहचान बताने से इनकार कर दिया था. इसके बाद कमीशन ने सीबीआई डायरेक्टर को अपने तीन पुराने नोटिस को दोहराया और सभी दस्तावेज और फाइल 20 सितंबर तक पेश करने को कहा.
सीबीआई ने 24 सितंबर को लिखा कि रिकॉर्ड हजारों पन्नों में हैं, फाइलें मालखाना, कोर्ट आदि जगहों पर हैं. इन्हें पेश करने के लिए तीन हफ्ते चाहिए. कमीशन ने कहा कि इन्हें यथाशीघ्र पेश किया जाए. हालांकि, सीबीआई हेडक्वॉर्टर में मौजूद नोटशीट फाइल को 28 सितंबर तक पेश करने को कहा.
कमीशन ने 9 अक्टूबर को सीबीआई की चिट्ठी के आधार पर कहा कि सीबीआई से शिकायत के संबंध में फाइलें मांगे हुए एक महीने का समय हो गया है. कमीशन ने माना कि सीबीआई की फाइल सार्वजनिक संपत्ति नहीं है, लेकिन इसे सक्षम अधिकारी देख सकता है. कमीशन ने फिर से सीबीआई निदेशक को जरूरी जांच में मदद देने की सलाह दी और 22 अक्टूबर तक दस्तावेज दिखाने को कहा, लेकिन 23 अक्टूबर तक न तो दस्तावेज दिए गए और न ही समय सीमा बढ़ाने का अनुरोध किया गया.
सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने कई बार आलोक वर्मा पर मौखिक और लिखित आरोप लगाए और कहा कि उनके द्वारा लगाए गए 6 आरोपों की जांच से आलोक वर्मा और एके शर्मा को अलग किया जाए. इसके बाद कमीशन ने 25 सितंबर को कहा कि कमीशन को सीबीआई के किसी अधिकारी के खिलाफ सबूत नहीं मिले हैं, लेकिन जांच में निष्पक्षता बरतनी चाहिए.
15 अक्टूबर को एक और चिट्ठी सीबीआई निदेशक को भेजी गई. इसमें सीबीआई के किसी भी अधिकारी के खिलाफ जांच से पहले आवश्यक अनुमति लेने को कहा गया. सीबीआई निदेशक से फिर से जरूरी दस्तावेज मुहैया कराने को कहा गया.
पता चला कि 15 अक्टूबर को सीबीआई ने हैदराबाद के सतीश बाबू सना की शिकायत पर केस दर्ज किया है, जो सीबीआई के विशेष निदेशक द्वारा जांच किए जा रहे मामले में आरोपी है. इस बारे में विशेष निदेशक का दावा है कि उन्होंने इसकी गिरफ्तारी की इजाजत मांगी थी, जो सीबीआई निदेशक से नहीं मिली. राकेश अस्थाना कमीशन के सामने 12, 18, 19 और 20 अक्टूबर को पेश हुए. 20 अक्टूबर को निदेशक को सीबीआई के डीएसपी देविंदर कुमार ने चिट्ठी लिखी कि सतीश बाबू से उनके संपर्क के झूठे आरोपों में उनके घर की तलाशी ली जा रही है, जबकि उन्होंने पहले ही सतीश की गिरफ्तारी और पूछताछ करने की अपील की थी, जिसे आज तक मंजूरी नहीं मिली. उन्होंने कहा कि उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है. कमीशन को यह चिट्ठी 22 अक्टूबर को मिली.
Source : News Nation Bureau