पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कर्ण सिंह ने शनिवार को जम्मू एवं कश्मीर में अनुच्छेद-370 और 35-ए के मुद्दे पर पिछले सप्ताह के साक्षात्कार का जिक्र करते हुए सरकार को सावधानी से कदम उठाने की सलाह दी. इस दौरान उन्होंने अमरनाथ यात्रा रोकने के फैसले को अभूतपूर्व बताया. पार्टी मुख्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कर्ण सिंह ने कहा, 'अपने 70 वर्षों के सार्वजनिक जीवन में मैंने कभी भी जम्मू एवं कश्मीर में इस तरह की स्थिति नहीं देखी, जब अमरनाथ यात्रा भी बंद करनी पड़ी. देश के विभिन्न हिस्सों से पहुंचे भगवान शिव के भक्तों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा. यह अभूतपूर्व है.'
उन्होंने कहा कि सरकार ने तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को वापस लौटने के अपने फैसले के पीछे कोई ठोस कारण नहीं बताया.
भय और आशंका से दहशत का माहौल
सिंह ने कहा, 'भय और आशंका के माहौल ने आज कश्मीर घाटी को जकड़ लिया है, क्योंकि वहां हर कोई दहशत की स्थिति में है कि कहीं कोई हमला या कुछ और न हो जाए. पिछले कुछ दिनों में 30,000 से अधिक अतिरिक्त जवान वहां भेजे गए हैं.'
कश्मीरी लोगों का जीवन अमरनाथ यात्रा से जुड़ा हुआ है
सरकार पर हमला बोलते हुए कांग्रेस नेता ने कहा, 'मैं राज्य में एक बदतर स्थिति नहीं देख सकता. हजारों कश्मीरी लोगों का जीवन अमरनाथ यात्रा से जुड़ा हुआ है. आज जम्मू एवं कश्मीर में जो स्थिति बन रही है, उससे राज्य के सभी विकास कार्यो का अंत हो जाएगा. इसके अलावा गंभीर वित्तीय नुकसान होंगे.'
उन्होंने कहा, 'मैं इसी राज्य में पैदा हुआ और यहां से पिछले 88 वर्षों से जुड़ा हुआ हूं. मुझे नहीं पता कि ऐसी स्थिति क्यों बनाई जा रही है.'
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उन्होंने कहा कि इस तरह से अमरनाथ यात्रा बंद करना ठीक नहीं है.
उनकी यह टिप्पणी गृह विभाग द्वारा अमरनाथ यात्रा के तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को तुरंत घर वापस लौटने की सलाह के एक दिन बाद आई है. यह वार्षिक हिंदू तीर्थयात्रा 15 अगस्त को समाप्त होने वाली थी.
अनुच्छेद 370 और 35-ए जैसे अन्य मुद्दों पर कर्ण सिंह ने कहा, 'मैं आईएएनएस को दिए गए बयान की एक प्रति साझा कर रहा हूं.'
अनुच्छेद 370 और 35ए पर मैं काफी सावधानी बरतने की सलाह दूंगा
पिछले हफ्ते आईएएनएस को दिए अपने साक्षात्कार में वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा था, 'विलय अंतिम और अटल है और मैं इसके वजूद पर सवाल नहीं उठा रहा हूं. जम्मू एवं कश्मीर संविधानसभा ने विलय की पुष्टि की और इसे विधिमान्य ठहराया. इसलिए इसकी सत्यता पर कोई सवाल नहीं किया जा सकता है. विधिक, नैतिक और संवैधानिक तौर पर प्रदेश भारत का अंग है. हालांकि अनुच्छेद 370 और 35ए पर मैं काफी सावधानी बरतने की सलाह दूंगा. इन पर सावधानी बरती जाए, क्योंकि इनमें कानूनी, राजनीतिक, संवैधानिक और भावनात्मक कारक शामिल हैं, जिनकी पूरी समीक्षा की जानी चाहिए। मेरा मानना है कि यही उचित चेतावनी है.'
पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर की बात कर सकते हैं, लेकिन गिलगिट, बाल्टिस्तान की नहीं
इन पर दोबारा सवाल करने पर उन्होंने कहा, 'कृपया समझिए, इस समस्या के चार अहम पहलू हैं. सबसे पहले अंतर्राष्ट्रीय पहलू जुड़ा है, क्योंकि प्रदेश का 45 फीसदी क्षेत्र और 30 फीसदी आबादी (26 अक्टूबर, 1947 से) विगत वर्षों में निकल चुकी है. याद कीजिए, पाकिस्तान और चीन ने हमारे क्षेत्र को हथिया लिया है। हम इनकार की मुद्रा में रह सकते हैं और हर बार पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर की बात कर सकते हैं, लेकिन गिलगिट, बाल्टिस्तान और उत्तरी क्षेत्रों, मुख्य रूप से अक्साई चिन और काराकोरम के पार के क्षेत्र से सटी शाक्सगम और यरकंद नदी घाटी को छोड़ दिया जाता है.'
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उन्होंने कहा, 'दरअसल, 1963 तक अंतिम हिस्से को पाकिस्तानी कब्जे वाले जम्मू एवं कश्मीर का हिस्सा माना जाता था. यह कहना आसान है कि कश्मीर हमारा है, लेकिन 50 साल से मैं दिल्ली में हूं और मैंने इस बदनसीब प्रदेश के दर्द को दिल्ली और भारत के भीतर नहीं देखा है. सिर्फ दिखावटी प्रेम प्रदर्शित किया गया है.'