अफगानिस्तान छोड़ने की तैयारी 6 महीने पहले शुरू कर दी थी मोदी सरकार ने

मोदी सरकार ने लगभग छह महीने पहले ही अफगानिस्तान से भारतीयों की वापसी की किसी भी आकस्मिक कार्ययोजना पर काम करना शुरू कर दिया था.

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Nihar Saxena
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भारतीय दूतावास के लोगों को लेकर आया था सी-17 विमान.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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बीते मंगलवार को भारतीय दूतावास के अधिकारियों कर्मचारियों समेत आईटीबीपी के जवानों को काबुल (Kabul) से सुरक्षित भारत लाने के बाद अब मोदी सरकार (Modi Government) को पूरा फोकस अफगानिस्तान (Afghanistan) में फंसे भारतीयों की घर-वापसी पर है. हालांकि सत्ता प्रतिष्ठान में तैरती चर्चाओं से यह संकेत मिल रहे हैं कि मोदी सरकार ने लगभग छह महीने पहले ही अफगानिस्तान से भारतीयों की वापसी की किसी भी आकस्मिक कार्ययोजना पर काम करना शुरू कर दिया था. दोहा समझौते खासकर इस साल की शुरुआत में अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते प्रभाव को देखकर दिल्ली प्रतिष्ठान समझ गया था कि भारतीयों की वापसी का समय कभी भी जल्द ही आ सकता है. 

इन दो बिंदुओं पर टिकी थी भारत वापसी
इस पूरे घटनाक्रम से वाकिफ एक सूत्र के मुताबिक सरकार ने भारतीय अधिकारियों और नागरिकों की सुरक्षा को हमेशा से सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा है. हालांकि भारतीय दूतावास के अधिकारियों को वापस भारत बुलाने या उनकी संख्या में कटौती करने का फैसला इस बात पर भी निर्भर था कि आखिर मोदी सरकार अफगानी सरकार को क्या संदेश देना चाहती है. खासकर यह देखते हुए कि बीते दो दशकों में भारत सरकार ने अफगान सत्ता प्रतिष्ठान के साथ बेहद गहरे संबंध विकसित किए हैं. इन्हीं संबंधों की वजह से अफगानिस्तान में भारत की अलग अहमियत है. इसे ऐसे समझा जा सकता है कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यूएनएससी को बताया था कि तालिबान राज से पहले 34 अफगान प्रांतों में भारत विकास परियोजनाओं पर काम कर रहा था. ऐसे में शेष विश्व की तुलना में अफगानिस्तान को लेकर भारत की संवेदनशीलता बहुत अलग है. वह द्विपक्षीय संबंधों के आधार पर अफगानिस्तान को लेकर कोई मानक तय करेगा. 

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तीन महीने से डोभाल और जयशंकर हर रोज ले रहे थे अपडेट
भारत के अफगानिस्तान छोड़ने की तैयारियों से वाकिफ सूत्र के मुताबिक सरकार के लिए दो बातें ज्यादा महत्वपूर्ण थी. पहला यह था कि भारत की अफगानिस्तान से कोई मिली हुई सीमा नहीं है. ऐसे में भारतीयों की घर वापसी को लेकर जो भी योजना बनाई जाती वह सरकार के सभी विभागों के समन्वय से तैयार करनी होती. दूसरे भारत की अफगानिस्तान में कोई सेना तैनात नहीं है. ऐसे में सरकार नहीं चाहती थी कि भारत अफगानिस्तान को सबसे पहले छोड़ने वाला देश बने. भारत अपने संबंधों की खातिर सबसे आखिर में अफगानिस्तान छोड़ना चाहता था. इन बातों को ध्यान में रखते हुए बीते तीन माह से एनएसए अजित डोभाल और विदेश मंत्री एस जयशंकर अफगानिस्तान में भारतीय अधिकारियों औऱ आम नागरिकों की सुरक्षा पर गहन नजर रखे हुए थे. दोनों ही इस सिलसिले हर रोज अपडेट ले रहे थे.  

कांधार औऱ मजार-ए-शरीफ सबसे अंत में छोड़ा भारत ने
तालिबान जिस तरह एक के बाद एक जिले पर कब्जा करता जा रहा था, वैसे-वैसे भारत अपने अधिकारियों औऱ नागरिकों की घर वापसी की योजना को तेजी से बनाता जा रहा था. उत्तरी प्रांतों पर तालिबान के कब्जे के बाद जब तालिबान ने दक्षिण के महत्वपूर्ण प्रांतों की ओर रुख किया, तब भारत ने अपनी योजनाओं को और तेज कर दिया. कांधार पर तालिबान के नियंत्रण के बाद मोदी सरकार ने कांधार स्थित दूतावास को बंद कर अपने अधिकारियों को बाहर निकाल लिया था. यही फैसला मजार-ए-शरीफ के लिए लिया गया. हालांकि दोनों ही जगहों से भारत ने सबसे आखिर में खुद को हटाया.

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शुक्रवार को एक और विमान ला रहा भारतीयों को
हालांकि काबुल की बारी-बारी आते-आते स्थितियां बहुत तेजी से बदली. अशरफ गनी तालिबान लड़ाकों के काबुल में प्रवेश करते ही देश छोड़ कर भाग खड़े हुए. अफगान सुरक्षा बलों ने भी बगैर विरोध किए हथियार डाल दिए. यह देख भारतीयों को तुरत-फुरत निकालने का काम शुरू किया गया. जिस वक्त तालिबान काबुल में घुस रहा था एयर इंडिया का एक विमान काफी भारतीयों को लेकर दिल्ली को निकल चुका था. हालांकि तालिबान के नियंत्रण के बाद एयर इंडिया का विमान काबुल एयरपोर्ट पर नहीं उतर सका. इसकी एक बड़ी वजह यही थी कि वहां मौजूद बदहवास तालिबानी अमेरिकी विमानों पर भेड़-बकरी की तरह चढ़ने की कोशिश कर रहे थे. भारत को कांधार विमान अपहरण कांड याद था इसलिए सरकार ने ऐसा कोई प्रयास नहीं भी किया. हालांकि अगले कुछ दिनों में भारत ने एयरलिफ्ट कर सैकड़ों भारतीयों को अफगानिस्तान से बाहर निकाला है. शुक्रवार को भी एयर इंडिया का एक विमान हिंडन एय़रबेस पर भारतीयों को लेकर उतरने वाला है. 

HIGHLIGHTS

  • दोहा समझौते के बाद भारत सरकार ने काम कर दिया था तेज
  • तालिबान के बढ़ते प्रभाव पर रखी जा रही थी गहरी नजर
  • डोभाल और जयशंकर ले रहे थे अफगानिस्तान का हर रोज अपडेट
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