अमरोहा में साल 2008 में हुए हत्याकांड पर दायर पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. इस मामले में कोर्ट ने कहा कि फांसी की सजा के फैसले का सम्मान होना जरूरी है. ऐसा फैसला होने पर उस पर अमल सुनिश्चित होना जरूरी है और इसे हमेशा अन्तहीन मुकदमेबाजी में फंसाया नहीं जा सकता है. दोषी को ये भ्रम नहीं हो जाना चाहिए कि फांसी की सजा को हमेशा कभी भी चुनौती दी जा सकती है.
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सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी 2008 में यूपी के अमरोहा में सात लोगों की हत्या करने वाले सलीम और शबनम की पुनर्विचार अर्जी पर सुनवाई के दौरान की. दोनों आरोपियों के वकील ने सलीम की गरीबी, जेल में शबनम के अच्छे बर्ताव के चलते फांसी न देने की दलील दी तो चीफ जस्टिस ने कहा कि हमारे फैसले में कमी बताइए. आप लोगों को लगता है कि केस हमेशा खुला रहेगा. हर बात की एक सीमा होती है.
बता दें कि उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के बावनखेड़ी गांव में 15 अप्रैल 2008 को शबनम और उसके प्रेमी सलीम ने मिलकर शबनम के घर में उसके परिवार के सात लोगों की कुल्हाड़ी से काटकर हत्या कर दी थी. मरने वालों में शबनम के माता-पिता, शबनम के दो भाई, शबनम की एक भाभी, शबनम की एक मौसी की बेटी और शबनम का एक भतीजा यानी एक बच्चा भी शामिल था.
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इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के अमरोहा में सात लोगों की हत्या करने वाले सलीम और शबनम की पुनर्विचार अर्जी पर फैसला सुरक्षित रखा है. दोनों आरोपियों की ओर से दायर अर्जी में फांसी की सजा बरकरार रखे जाने के फैसले पर पुर्नविचार की मांग की गई है.