भारत में अगले दो वर्षों तक नए इंजीनियरिंग कॉलेज नहीं खुलेंगे। यह जानकारी ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) के चैयरमेन अनिल दत्तात्रेय सहस्त्रबुद्धी ने दी। टीचर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए एआईसीटीई का नाम गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में शामिल किया गया है। एआईसीटीई शिक्षा से जुड़ा देश का पहला ऐसा संस्थान है जिसका नाम लगातार 2 वर्षों तक इस प्रोग्राम के लिए गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया जा रहा है। डॉ अनिल सहस्त्रबुद्धे ने इस इंटरव्यू के दौरान इस प्रकार की कई अहम जानकारियां साझा की।
प्रश्न- देश में नए इंजीनियरिंग कॉलेज कब खुलेंगे ?
उत्तर - फिलहाल नए इंजीनियरिंग कॉलेजों की कोई आवश्यकता नहीं है इसलिए देश में अगले 2 वर्ष यानी 2024 तक नए इंजीनियरिंग कॉलेज नहीं खोले जाएंगे। एक्सपर्ट कमेटी ने अपनी अंतरिम सिफारिश में कहा है कि फिलहाल अगले 2 वर्षों तक नए इंजीनियरिंग कॉलेज नहीं खोले जाने चाहिए। दरअसल कॉलेज खोलने की आवश्यकता ही नहीं है। कमेटी ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में यह सिफारिश दी है।
प्रशन- नए इंजीनियरिंग कॉलेजों की आवश्यकता क्यों नहीं है, मौजूदा इंजीनियरिंग कॉलेजों का क्या हाल है।
उत्तर- इंजीनियरिंग कॉलेजों में आज भी 50 प्रतिशत से अधिक सीटें खाली हैं। यानी संसाधनों का पूरा उपयोग नहीं हो रहा है। इसलिए नए इंजीनियरिंग कॉलेजों पर निवेश करना सही नहीं है। मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि फिलहाल जितने कॉलेज मौजूद हैं उनके मुकाबले केवल आधे कॉलेजों की ही आवश्यकता है। मौजूदा इंजीनियरिंग कॉलेजों की संख्या यदि आधी भी कर दिए जाएं तो छात्रों को दाखिला मिल जाएगा।
प्रशन- आवश्यकता से अधिक सीटें उपलब्ध होने का क्या दुष्प्रभाव है।
उत्तर- जरूरत से अधिक सीट होने का अर्थ यह है छात्रों की फीस से आने वाले रेवेन्यू में कमी होगी। इससे कॉलेजों के संसाधन में कमी आती है। संसाधनों में कमी होने से फैकेल्टी की नियुक्ति एवं अन्य संसाधनों पर फर्क पड़ता है। ऐसे फैकल्टी की नियुक्ति की जाएगी जो कम योग्यता रखते हैं और कम वेतन में काम कर सकें। इससे अंतत छात्रों की पढ़ाई पर ही फर्क पड़ता है और इसी स्थिति को देखते हुए एक्सपर्ट कमेटी ने अपनी अंतिम रिपोर्ट में कहा है कि अगले 2 वर्ष यानी 2024 तक नए इंजरिंग कॉलेज नहीं खोले जाने चाहिए। हालांकि इसमें कुछ अपवाद हो सकते हैं जिन्हें अभी देखा जाना बाकी है।
प्रशन- नई शिक्षा नीति में स्कूल स्तर से ही छात्रों को तकनीकी शिक्षा प्रदान करने का प्रावधान किया गया है इसके लिए एआईसीटीई क्या कर रहा है।
उत्तर- हम कक्षा 6 से ही छात्रों को वोकेशनल ट्रेनिंग प्रदान कर रहे हैं। इसको व्यापक स्तर पर लागू किया जाएगा। कई स्तर पर शुरू हो चुका है इसका करिकुलम बनाया जा चुका है और टीचर्स को ट्रेनिंग दी जा रही है। इसके तहत अभी स्कूल में ही कंप्यूटर के साथ-साथ छात्रों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे महत्वाकांक्षी पाठ्यक्रमों की ट्रेनिंग दी जा सकेगी। इसके साथ ही एग्रीकल्चर, फॉरेस्ट, वाटर और हाथ से काम करने वाले स्किल की ट्रेनिंग दी जा रही है।
प्रशन- एआईसीटीई को उसके किन प्रयासों के लिए गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में एआईसीटीई का नाम दर्ज किया गया है
उत्तर- एआईसीटीई का नाम अटल एकेडमी प्रोग्राम के लिए गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है। यह हमारा टीचर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम है। यह ट्रेनिंग और लनिर्ंग अकैडमी है। यहां नियुक्त किए गए फैकेल्टी मेंबर अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं जो लगातार शिक्षकों का स्किल बेहतर कर रहे हैं। इस ट्रेनिंग प्रोग्राम के दौरान शिक्षकों को पढाई करनी होती है, असाइनमेंट तैयार करना होता है और अच्छे नंबरों के साथ यह परीक्षा पास करनी होती है। जिसके बाद उन्हें सर्टिफिकेट प्रदान किया जाता है। कोरोना के दौरान भी हमने देशभर के डेढ़ लाख से अधिक शिक्षकों को 1 साल के अंदर ट्रेनिंग दी है जिसके लिए हमारा नाम गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है।
प्रशन- नई शिक्षा नीति को देशभर में मजबूती से लागू करने के लिए क्या किया जा रहा है।
उत्तर- कई स्तर पर नई शिक्षा नीति को लागू करना शुरू कर दिया गया है। लगातार और मजबूती से नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की मॉनिटरिंग की जा रही है। जैसे की चॉइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम को लागू करने के लिए विभिन्न विश्वविद्यालयों से कहा गया है। विश्वविद्यालय से कहा गया है कि वह अपने एकेडमिक काउंसिल की बैठकों में इसे पारित करें। जल्द ही पूरे देश में यह सभी विश्वविद्यालय में दिखाई पड़ेगा। इसके तहत छात्रों को उनकी चॉइस के विषय पढ़ने की आजादी होगी। जैसे यदि इंजीनियरिंग के छात्र म्यूजिक में दिलचस्पी लेते हैं तो इंजीनियरिंग कॉलेज इन छात्रों के लिए म्यूजिक टीचर की नियुक्त करेगा है अथवा किसी और कॉलेज से म्यूजिक टीचर को अपने संस्थान में बुलाकर छात्रों को म्यूजिक की ट्रेनिंग प्रदान कर सकता है। इसी को चॉइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम कहा गया है।
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Source : IANS