लोकपाल की मांग को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे अन्ना हजारे ने कहा है कि वे राष्ट्रपति को अपना 'पद्म भूषण' पुरस्कार लौटा देंगे. अन्ना पिछले 6 दिनों से आमरण अनशन पर बैठे हैं लेकिन उनकी मांग को लेकर सरकार की तरफ से कोई आश्वासन नहीं दिया जा रहा है. 81 वर्षीय हजारे ने शहीद दिवस के दिन अपने गांव रालेगण-सिद्धि में अनशन शुरू किया था. 6 दिनों से अनशन पर बैठे अन्ना हजारे की सेहत लगातार बिगड़ रही है. उन्होंने कहा था कि लोकपाल नियुक्ति के वादे पर केंद्र सरकार ने धोखाधड़ी की है.
अन्ना ने कहा, 'मैं अपना पद्म भूषण सम्मान राष्ट्रपति को लौटा दूंगा. मैंने उस पुरस्कार के लिए काम नहीं किया था, आपने मुझे यह दिया था क्योंकि मैं सामाजिक कारणों और देश के लिए काम कर रहा था. अगर देश या समाज इस स्थिति में है, तो मुझे यह पुरस्कार क्यों रखना चाहिए.'
इससे पहले अन्ना ने रविवार को कहा था कि अगर अनशन के दौरान उन्हें कुछ हो जाता है तो इसके लिए लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जिम्मेदार ठहराएंगे. समाचार एजेंसी एएनआई को अन्ना ने कहा था, 'लोग मुझे परिस्थितियों से लड़ने वालों में याद करेंगे न कि आग में तेल डालने वालों में. अगर मुझे कुछ हो जाता है तो उसके लिए लोग प्रधानमंत्री को जिम्मेदार बताएंगे.'
'जन आंदोलन सत्याग्रह' के बैनर तले प्रदर्शन कर रहे अन्ना की प्रमुख मांगें हैं- केंद्र में लोकपाल, प्रत्येक राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति और किसानों का मुद्दा. भूख हड़ताल शुरू करने से 3 दिन पहले ही अन्ना ने राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति करने की मांग करते हुए महाराष्ट्र सरकार को अल्टीमेटम दिया था और ऐसा न करने पर भूख हड़ताल शुरू करने की बात कही थी.
अनशन शुरू करते हुए हजारे ने दावा किया था कि बीते 5 वर्षों में उन्होंने लोकपाल प्राधिकरण को लागू करने के लिए करीब 35 पत्र प्रधानमंत्री को लिखे लेकिन उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया गया. इस मुख्य मांग के अलावा हजारे ने किसानों के मुद्दे को भी उठाया है. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार द्वारा इन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है, जिसके कारण देश भर में आत्महत्याओं की समाप्त न होने वाली घटनाएं जारी हैं.
उन्होंने कहा था, 'लोकपाल के जरिये, अगर लोग प्रधानमंत्री के खिलाफ कोई सबूत देते हैं तो उनकी जांच भी की जा सकती है. इसी तरह लोकायुक्त में मुख्यमंत्री और सभी मंत्रियों की जांच की जा सकती है अगर कोई उनके खिलाफ सबूत देता है. इसलिए वे इसे नहीं चाहते हैं. कोई पार्टी इसे नहीं चाहती है. लोकपाल को संसद में 2013 में पारित कर दिया गया था लेकिन सरकार ने अभी तक इसकी नियुक्ति नहीं की है.'
और पढ़ें : सीबीआई की जांच में अड़ंगा डालकर ममता सरकार ने किया असंवैधानिक काम, जानें क्या कहता है कानून
बता दें कि मौजूदा बीजेपी सरकार लोकपाल की नियुक्ति के वादों के साथ सत्ता में आई थी लेकिन अब 5 साल बीत जाने के बावजूद लोकपाल का गठन नहीं कर सकी है. कुछ महीने पहले सरकार ने लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों के नामों की सिफारिश के लिए सर्च कमेटी का गठन किया था जो अभी तक रिपोर्ट नहीं सौंप सकी है.
पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए केंद्र सरकार को फरवरी अंत तक की डेडलाइन दी थी. लोकपाल सर्च कमेटी में 8 सदस्य बने हुए है और इस मामले में अब अगली सुनवाई 7 मार्च को होनी है.
Source : News Nation Bureau