लोकपाल और लोकायुक्तों की मांग लेकर मोदी सरकार के खिलाफ अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने कहा कि अगर उन्हें कुछ हो जाता है तो उसके लिए लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जिम्मेदार ठहराएंगे. 81 वर्षीय हजारे ने शहीद दिवस के दिन अपने गांव रालेगण-सिद्धि में अनशन शुरू किया था और रविवार को इस अनशन का 5वां दिन है. उन्होंने कहा था कि लोकपाल नियुक्ति के वादे पर केंद्र सरकार ने धोखाधड़ी की है. 5 दिनों से अनशन पर बैठे अन्ना हजारे की सेहत लगातार बिगड़ रही है.
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक अन्ना ने कहा, 'लोग मुझे परिस्थितियों से लड़ने वालों में याद करेंगे न कि आग में तेल डालने वालों में. अगर मुझे कुछ हो जाता है तो उसके लिए लोग प्रधानमंत्री को जिम्मेदार बताएंगे.'
बीजेपी की सहयोगी शिवसेना ने भी अन्ना के आमरण अनशन को लेकर मोदी सरकार पर हमला बोला है और कहा कि उनके आंदोलन को शुभेच्छाएं देने वाला पीएम मोदी का पत्र खेदजनक है और हास्यास्पद भी. सरकार को उन पर ध्यान देना चाहिए, वे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे हैं और यही देश की समस्या है.
शिवसेना ने पत्र जारी करते हुए लिखा है, 'अन्ना को अपने प्राण त्यागने की बजाय सड़कों पर अपनी लड़ाई लड़नी जरूरी है ताकि देश जागे. इस समय देश में बेहोशी की दवा पिला दी गई है. ऐसे में जनता को बेहोशी से बाहर लाने की जरूरत है. नई क्रांति लाने के लिए अन्ना को जयप्रकाश नारायण की भूमिका में आना होगा.'
'जन आंदोलन सत्याग्रह' के बैनर तले प्रदर्शन कर रहे अन्ना की प्रमुख मांगें हैं- केंद्र में लोकपाल, प्रत्येक राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति और किसानों का मुद्दा. भूख हड़ताल शुरू करने से 3 दिन पहले ही अन्ना ने राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति करने की मांग करते हुए महाराष्ट्र सरकार को अल्टीमेटम दिया था और ऐसा न करने पर भूख हड़ताल शुरू करने की बात कही थी.
और पढ़ें : भारत को उकसाने का काम जारी, पाक विदेश मंत्री ने अब अलगाववादी नेता गिलानी से की बात
अनशन शुरू करते हुए हजारे ने दावा किया था कि बीते 5 वर्षों में उन्होंने लोकपाल प्राधिकरण को लागू करने के लिए करीब 35 पत्र प्रधानमंत्री को लिखे लेकिन उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया गया. इस मुख्य मांग के अलावा हजारे ने किसानों के मुद्दे को भी उठाया है. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार द्वारा इन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है, जिसके कारण देश भर में आत्महत्याओं की समाप्त न होने वाली घटनाएं जारी हैं.
उन्होंने कहा था, 'लोकपाल के जरिये, अगर लोग प्रधानमंत्री के खिलाफ कोई सबूत देते हैं तो उनकी जांच भी की जा सकती है. इसी तरह लोकायुक्त में मुख्यमंत्री और सभी मंत्रियों की जांच की जा सकती है अगर कोई उनके खिलाफ सबूत देता है. इसलिए वे इसे नहीं चाहते हैं. कोई पार्टी इसे नहीं चाहती है. लोकपाल को संसद में 2013 में पारित कर दिया गया था लेकिन सरकार ने अभी तक इसकी नियुक्ति नहीं की है.'
और पढ़ें : हादसों की भारतीय रेल, आखिर कब तक बेपटरी होती रहेंगी ट्रेनें
बता दें कि मौजूदा बीजेपी सरकार लोकपाल की नियुक्ति के वादों के साथ सत्ता में आई थी लेकिन अब 5 साल बीत जाने के बावजूद लोकपाल का गठन नहीं कर सकी है. कुछ महीने पहले सरकार ने लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों के नामों की सिफारिश के लिए सर्च कमेटी का गठन किया था जो अभी तक रिपोर्ट नहीं सौंप सकी है.
पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए केंद्र सरकार को फरवरी अंत तक की डेडलाइन दी थी. लोकपाल सर्च कमेटी में 8 सदस्य बने हुए है और इस मामले में अब अगली सुनवाई 7 मार्च को होनी है.
Source : News Nation Bureau