भारत की ओर से संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के वार्षिक सत्र में पाकिस्तान के नेताओं को करारा जवाब मिलने के बाद अब स्विटजरलैंड के जिनेवा में भी राजनीतिक कार्यकर्ता एकजुट हो गए हैं. पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) और गिलगित बाल्टिस्तान के राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने स्विट्जरलैंड के जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के कार्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन किए. इस दौरान वहां मौजूद कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान विरोधी नारे लगाए और आतंकवादी शिविरों को खत्म करने और प्राकृतिक शोषण को रोकने की मांग की. जिनेवा में एकत्र हुए कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान विरोधी नारे लगाए और संयुक्त राष्ट्र से आह्वान किया कि वह इस्लामाबाद के खिलाफ घोर मानवाधिकार उल्लंघन के खिलाफ कार्रवाई करे.
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विरोध प्रदर्शन करने आए कार्यकर्ताओं ने अपने हाथों में तख्तियां पकड़े हुए थे जहां पाकिस्तान विरोधी नारे लिखे हुए थे. सभी कार्यकर्ता आतंकवादी शिविरों को खत्म करने की मांग कर रहे थे. राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने पीओके में अवैध रूप से कब्जा कर चुके जमीन को लेकर पाकिस्तान सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की. इस प्रदर्शन का आयोजन यूनाइटेड कश्मीर पीपुल्स नेशनल पार्टी (यूपीएनपी), स्विस कश्मीर ह्यूमन राइट्स और जम्मू द्वारा संयुक्त रूप से किया गया गया था. निर्वासित पीओके के नेता सरदार शौकत अली कश्मीरी ने कहा, 'हम पाकिस्तान के नव-फासीवाद के शिकार हैं, हम पाकिस्तान द्वारा तैयार फैलाए आतंकवाद के शिकार हैं, हम अपनी संस्कृति से वंचित हैं. हमारे गांव और हमारे लोग खतरे में हैं और वे सभी लोग जो मानव के पक्ष में आवाज उठाते हैं उन्हें उत्पीड़ित किया जा रहा है.
भारत ने पाकिस्तान को जमकर लताड़ लगाई
गौरतलब है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा भारत के खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाए जाने के बाद भारत ने पाकिस्तान को आइना दिखाते हुए आतंकवाद का संरक्षक और अल्पसंख्यकों का दमन करने वाला बताया था. भारत के संयुक्त राष्ट्र मिशन की प्रथम सचिव स्नेहा दुबे ने कहा था कि पाकिस्तान इस उम्मीद में अपने बैकयार्ड में आतंकवादियों का पोषण करता है कि वे केवल उसके पड़ोसियों को नुकसान पहुंचाएंगे. उन्होंने कहा, आज पाकिस्तान में अल्पसंख्यक, सिख, हिंदू, ईसाई, अपने अधिकारों के लगातार हनन के भय और राज्य प्रायोजित दमन में जी रहे हैं. यह एक ऐसा शासन है जहां यहूदी-विरोधीवाद को इसके नेतृत्व द्वारा सामान्य करार दिया जाता है और यहां तक कि इसे उचित भी ठहराया जाता है.
भारत में अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार के बारे में खान के दावों का जवाब देते हुए, दुबे ने कहा, बहुलवाद एक अवधारणा है जिसे पाकिस्तान के लिए समझना बहुत मुश्किल है, जो संवैधानिक रूप से अपने अल्पसंख्यकों को राज्य के उच्च पदों की आकांक्षा से रोकता है. कम से कम वे जो बोल रहे हैं उसके बारे में पहले आत्मनिरीक्षण कर सकते हैं, जो विश्व मंच पर उनका उपहास उड़ा रहा है.
HIGHLIGHTS
- पीओके कार्यकर्ताओं ने आतंकी शिविर खत्म करने की मांग की
- गिलगित बाल्टिस्तान के राजनीतिक कार्यकर्ता भी कर रहे थे विरोध
- यूएनजीए के वार्षिक सत्र में पाक नेताओं को मिला था करारा जवाब