अनुसूचित जाति/जनजाति एक्ट (SC/ST ACT) में केंद्र द्वारा संविधान संशोधन किए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है. हालांकि कोर्ट ने साफ किया है कि SC/ST एक्ट के प्रावधानों को हल्का नहीं किया जाएगा और पिछले साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच के फैसले से पहले के क़ानून के सख़्त प्रावधानों को ही बरकरार रखा जाएगा.
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सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा है कि SC/ST ACT में झूठी शिकायत होने का संदेह होने पर पुलिस को शुरुआती जांच करने या फिर कोर्ट से अग्रिम ज़मानत दिए जाने पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई जा सकती. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान पीठ का यह फैसला है कि अगर कोर्ट को प्रथम दृष्टया यह लगता है कि इस एक्ट के तहत झूठी शिकायत दर्ज हुई है तो ज़मानत दी जानी चाहिए.
तीन जजों की पीठ के अध्यक्ष जस्टिस अरुण मिश्रा ने साफ कहा कि हम कानून के प्रावधानों को हटाने वाले नहीं हैं और न ही बदलाव करने की जरूरत है. बेंच ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार किए गए संशोधन को रद्द नहीं किया जाएगा. बस कुछ पहुलओं पर फैसला देंगे.
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SC का कहना है कि यह भी स्पष्ट किया जाएगा कि पुलिस अत्याचार अधिनियम के तहत शिकायत पर कोई कार्रवाई करने से पहले प्राथमिक जांच कर सकती है कि प्रथम दृष्टया ये पता चले कि शिकायत झूठी या नहीं. अग्रिम जमानत के मुद्दे पर भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस पर पहले से ही संविधान पीठ का फैसला है कि कोर्ट को लगे कि शिकायत झूठी है तो अग्रिम जमानत दी जा सकती है.
Source : अरविंद सिंह