जम्मू कश्मीर प्रशासन ने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त किए जाने के बाद वहां इंटरनेट पर लगाई गई पाबंदी को मंगलवार को सही ठहराया. आतंकवादी और पाकिस्तान सेना सोशल मीडिया पर लोगों को जेहाद के लिए भड़का रही थी. प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि लोगों की हिफाजत और उनके जीवन की सुरक्षा के लिए बंदिशें लगाई गईं. कुछ लोगों ने भड़काऊ बयानों से लोगों को भड़काने की कोशिश की.
जम्मू कशअमीर प्रशासन की तरफ से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ को बताया कि देश के भीतर ही दुष्मनों के साथ लड़ाई नहीं है बल्कि सीमा पार के दुश्मनों से भी लड़ना पड़ रहा है.
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मेहता ने अनुच्छेद 35 A और उनुच्छेद 370 को हटाए जाने के खिलाफ नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेताओं, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के सार्वजनिक भाषणों और सोशल मीडिया के पोस्ट का हवाला दिया. सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि यह एक अपरिहार्य परिस्थिति है, जहां असाधारण उपाय की जरूरत होती है. क्योंकि देश का हित न चाहने वाले लोग मनोवैज्ञानिक साइबर युद्ध छेड़ रहे हैं.
मेहता ने जब पुलिस अधिकारियों की एक सीलबंद रिपोर्ट कोर्ट को सौंपने की कोशिश की तो कश्मीर टाइम्स की संपादक अनुराधा भसीन की ओर से मौजूद वकील वृंदा ग्रोवर ने इस पर आपत्ति जताई. उन्होंने कहा कि अगर कोई भी नई सामग्री दाखिल होती है तो उन्हें इस पर जवाब देने का मौका मिलना चाहिए.
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इस पर पीठ ने कहा कि सॉलिसीटर जनरल के मुताबिक ये दस्तावेज राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित हैं. इसे किसी और के साथ साझा नहीं किया जा सकता. वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि वे मान लेंगे की सीलबंद लिफाफे में जो सामग्री है वह राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित है, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता, लेकिन अदालत को सीलबंद लिफाफे में दी गई सामग्री पर विचार नहीं करना चाहिए.
Source : न्यूज स्टेट ब्यूरो