हाल ही में दिल्ली के विधानसभा चुनावों में भारी बहुमत से सत्ता में लौटने वाले अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने कन्हैया कुमार के खिलाफ देशद्रोह के खिलाफ मुकदमा चलाने का आदेश देकर कई विपक्षी दलों से नाराजगी मोल ले ली है. दिल्ली में जीत हासिल करने के बाद विपक्ष की तारीफ बटोर रहे अरविंद केजरीवाल अचानक इस कदम से बीजेपी की 'बी' टीम कहे जाने लगे हैं. कांग्रेस, राजद, सीपीआई के नेताओं ने अरविंद केजरीवाल के कदम की आलोचना की है. दरअसल पूर्व में अरविंद केजरीवाल खुद भी कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) की तारीफ कर चुके हैं और दिल्ली हिंसा के बीच में मुकदमा चलाने की अनुमति देकर उन्होंने राजनीतिक पंडितों को हैरान कर दिया है. कुछ लोगों का कहना है कि अरविंद केजरीवाल ने यह कदम इसलिए उठाया, क्योंकि दिल्ली हिंसा में उनकी पार्टी के ताहिर हुसैन का नाम आ गया और इसका दाग धुलने के लिए उन्होंने तत्काल बिना देरी किए कन्हैया कुमार के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी. जानकार तो यह भी बता रहे हैं कि गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) के साथ मीटिंग में ही कन्हैया कुमार के खिलाफ आदेश देने की रणनीति बन गई थी.
यह भी पढ़ें : संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण आज से शुरू, कांग्रेस उठा सकती है दिल्ली हिंसा का मुद्दा
दरअसल, राजनीति में कई बार जो दिखता है, वो नहीं होता है. अरविंद केजरीवाल राजनीति में बाकी नेताओं की अपेक्षा नए जरूर हैं, लेकिन किसी भी मंझे हुए राजनेता से वे कहीं आगे सोचते हैं. अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली चुनाव जीतने के बाद यह कहा था कि वे पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं. अमित शाह ने भी दरियादिली दिखाई और दिल्ली हिंसा शांत करने के लिए सर्वदलीय बैठक की. बैठक में हालांकि कांग्रेस के प्रतिनिधि भी शामिल हुए थे और शायद ही इस दौरान कन्हैया कुमार को लेकर कोई बातचीत हुई होगी, लेकिन इतना तो कहा जा सकता है कि इस मसले पर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच कोई आपसी समझ जरूर कायम हुई.
राजनीतिक पंडितों का यह भी कहना है कि आम आदमी पार्टी दिल्ली में धमाकेदार जीत दर्ज करने के बाद अब विस्तार की योजना पर काम कर रही है. इस साल बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं. कन्हैया कुमार विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए पूरे बिहार में यात्रा निकाल रहे हैं. 38 जिलों में उनकी यात्रा हो चुकी है और मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उनकी इस यात्रा को रिस्पांस भी मिल रहा है. कन्हैया कुमार की इस सक्रियता को आम आदमी पार्टी अपने विस्तार में बाधा मान रही है. यदि कन्हैया कुमार ऐसे ही सक्रिय रहे तो आम आदमी पार्टी को अपना विस्तार करने में काफी कठिनाई हो सकती है. लिहाजा राजनीतिक पंडितों का कहना है कि कन्हैया की सक्रियता को कम करने के लिए अरविंद केजरीवाल ने यह बड़ा दांव खेला.
यह भी पढ़ें : राज्यसभा की 55 सीटों के लिए 26 मार्च को चुनाव, BJP जीत सकती है इतनी सीटें
कन्हैया कुमार को लेकर लिए गए फैसले को समझने के लिए बिहार के राजनीतिक हालात को समझना जरूरी है. बिहार में इस समय नीतीश कुमार विपक्ष के अलावा अपने नेताओं के निशाने पर भी हैं. नागरिकता कानून पर नीतीश कुमार का मुखर विरोध करके प्रशांत किशोर और पवन वर्मा पार्टी से बाहर किए जा चुके हैं. नागरिकता कानून पर राजद के तेजस्वी यादव नीतीश कुमार को लगातार घेर रहे हैं. उधर, बीजेपी के अंदर एक मत है कि नीतीश कुमार से नाता तोड़कर बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा जाए, हालांकि गृह मंत्री अमित शाह इससे इनकार कर चुके हैं. मतलब साफ है. छटपटाहट बीजेपी में भी है और जनता दल यूनाइटेड में भी. केंद्र की बीजेपी सरकार अपने एजेंडे पर काम कर रही है और इससे नीतीश कुमार को सीधा नुकसान है, क्योंकि वे लालू प्रसाद यादव के बदले खुद को मुसलमानों का नुमाइंदा साबित करने में लगे हैं. कुछ हद तक वे सफल भी हुए हैं, लेकिन बीजेपी सरकार के फैसले उनकी राह में रोड़े अटका रहे हैं.
यह भी पढ़ें : जम्मू: ऐतिहासिक सिटी चौक का नाम बदलकर ‘भारत माता चौक’ किया गया
ऐसे में अगर आम आदमी पार्टी बिहार में अपना विस्तार करती है तो यह बीजेपी के लिए भी फायदेमंद रहेगा. बिहार में नीतीश कुमार पार्टी के खिलाफ लोगों को भी एक विकल्प मिलेगा और नीतीश के कमजोर होने से बीजेपी को भी फायदा होगा. कन्हैया कुमार के उभार को ऐसे में आम आदमी पार्टी कैसे पचाती. हालांकि बिहार में अपना विस्तार करने के लिए आम आदमी पार्टी को अभी बहुत मेहनत करनी होगी. वहां अभी पार्टी को आधारभूत संगठन बनाना होगा, अभी वहां पार्टी के पास कोई बड़ा नेता भी नहीं है और न ही कोई नेता उभर रहा है. बिहार में आम आदमी पार्टी का उभार अभी दूर की कौड़ी नजर आ रही है, लेकिन शुरुआत कहीं से तो करनी ही होगी. शायद अरविंद केजरीवाल ने वो शुरुआत कर दी है.
Source : Sunil Mishra