देश सेवा में अपने जीवन के 30 साल देने के बाद, एक रिटायर्ड आर्मी अफसर को अपनी नागरिकता साबित करनी पड़ रही है। असम के रहने वाले मोहम्मद अजमल हक के खिलाफ पुलिस ने केस दर्ज किया है।
गुवाहाटी में रह रहे हक को विदेशी मामलों की ट्राइब्यूनल से एक नोटिस मिला है। इसमें उन्हें 'संदिग्ध वोटर' श्रेणी में रखते हुए ट्राइब्यूनल के सामने पेश होने को कहा गया है।
इन पर अवैध रूप से भारत में रहने का आरोप लगाया गया है और इन्हें बंग्लादेश का अवैध प्रवासी बताया गया है। अब इस मामले की सुनवाई विदेशी मामलों की ट्राइब्यूनल में 13 अक्टूबर को होनी है।
इस नोटिस में हक से ट्राइब्यूनल के समक्ष दस्तावेज जमा कर अपनी नागरिकता साबित करने को कहा गया है। हक बताते हैं कि यह नोटिस उन्हें देर से मिला और इस वजह से पेशी की पहली तारीख 11 सितंबर को ट्राइब्यूनल के सामने हाजिर नहीं हो सके। उन्होंने बताया कि अब वह 13 अक्टूबर को पेश होंगे।
हैरान करने वाली बात ये है कि तीन साल पहले इनकी पत्नी पर भी ऐसा ही आरोप लगाकर नोटिस भेजा गया था, लेकिन जांच के बाद आरोपों को सही नहीं पाया गया।
इस पूरे मामले में हक का कहना है, 'अगर मैं अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हूं तो फिर मैंने भारतीय सेना में कैसे अपनी सेवा दी। मैं बहुत दुखी हूं। 30 साल देश की सेवा करने का मुझे ये इनाम मिला है। मेरी पत्नी को भी इसी तरीके से प्रताड़ित किया गया था।'
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अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए हक़ कहते है, 'छह महीने की सैन्य प्रशिक्षण के बाद मैंने सेना के टेक्नीकल विभाग में जुड़ा। मैंने पंजाब के खेमकरन सेक्टर और कलियागांव में LoC पर, भारत-चीन सीमा पर त्वांग में, लखनऊ में, कोटा में सेवाएं दीं। मैंने कुछ वक्त सिकंदराबाद स्थित रक्षा प्रबंधन कॉलेज में भी काम किया। '
हक का बेटा इस समय देहरादून के राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री कॉलेज में पढ़ रहे है और उनकी बेटी गुवाहटी के आर्मी पब्लिक स्कूल की छात्रा है। हक़ का कहना है, 'इस बात में मुझे बिलकुल संदेह नहीं है कि मुझे न्याय मिलेगा। लेकिन मुझे दुख होता है जब मेरी बेटी मुझसे पूछती है कि क्या ये देश देश सेवा में अपना जीवन कुर्बान करने वाले लोगों के साथ ऐसा ही व्यवहार करता है? '
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Source : News Nation Bureau