अयोध्या मामले में गुरुवार को सुनवाई के 36वें दिन हिन्दू पक्ष की ओर से कई वकीलों ने मुस्लिम पक्ष की दलीलों का जवाब दिया. आज रामलला की ओर से वकील सीएस वैद्यनाथन, गोपाल सिंह विशारद की ओर से रंजीत कुमार, रामलला की ओर पी नरसिम्हा, निर्मोही अखाड़े की ओर से सुशील जैन, रामजन्मभूमि पुनरुद्धार समिति की ओर से पीएन मिश्रा ने दलीलें रखीं. बता दें कि शुक्रवार को इस मामले में सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से राजीव धवन दलीलें रखेंगे.
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रामलला विराजमान की ओर से पी नरसिम्हा ने आठवीं सदी के ग्रंथ स्कंद पुराण का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद के 1528 में वजूद में आने से बहुत पहले स्कंद पुराण लिखा गया था. इस पुराण में भी अयोध्या का श्रीरामजन्मस्थान के रूप में जिक्र है और हिंदुओं का ये अगाध विश्वास रहा है कि यहां दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति होती है. पुरातत्व विभाग के सबूत भी हमारे विश्वास की ही पुष्टि करते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू पक्ष से ठोस सबूत मांगे
रामलला की ओर से सीएस वैद्यनाथन की दलीलों के बीच जस्टिस चन्दचूड़ ने कहा कि आस्था और विश्वास अपने आप में एकदम अलग तर्क है, लेकिन हम यहां पुख्ता सबूतों की बात कर रहे हैं. क्या मन्दिर की मौजूदगी को साबित करने के लिए पुख्ता सबूत हैं?. सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि पुरातत्व विभाग की खुदाई से साफ है कि विवादित ढांचे के नीचे एक मंदिरनुमा विशालकाय ढांचा था. उन्होंने ढांचे के नीचे ईदगाह होने की मुस्लिम पक्ष की दलील को खारिज किया.
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वैसे मुस्लिम पक्ष का कहना था कि विवादित जगहों पर मिले खम्भे की गहराई अलग-अलग है. अलग-अलग समय के खम्भे किसी विशालकाय इमारत (मंदिर) का हिस्सा नहीं हो सकते हैं. आज जस्टिस डी वाई चन्दचूड़ ने भी ये सवाल सी एस वैद्यनाथन से पूछा कि ये कैसे साबित होगा कि नीचे जो खंभों के आधार मिले थे, वो एक ही समय के है और एक ही बड़ी इमारत का हिस्सा थे. सीएस वैद्यनाथन ने जवाब दिया कि एएसआई रिपोर्ट में बक़ायदा इसका जिक्र है कि 46 खम्भे एक ही समय के है मन्दिर की क्यों, बौद्ध विहार क्यों नहीं?.
रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि खुदाई में मिली कमल की आकृति, गोलाकार आकृति, परनाला सब वहां मन्दिर को मौजूदगी को साबित करते हैं, क्योंकि ये सब संरचना उत्तर भारतीय मंदिरों की विशेषताएं हैं. इस पर जस्टिस चन्दचूड़ ने सवाल किया कि आपने जिन सरंचनाओं का जिक्र किया है, वो बौद्ध विहार में भी तो हो सकती है. आप कैसे ये साबित कर सकते हैं कि वो बौद्ध विहार न होकर मन्दिर ही होगा. सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि ये जगह हमेशा हिंदुओं के लिए हमेशा पवित्र रही है. बौद्ध धर्म को मानने वालों के लिए ये जगह कभी अहम नहीं रही. ये अपने आप में साबित करता है कि यहां मन्दिर ही था.
'वेद, स्मृति, श्रुति में दर्ज इतिहास भी अहम'
सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि भारत में इतिहास प्राचीन परम्पराओं/ रीतिरिवाजों पर आधारित रहा है. हालांकि, इसका दर्ज करने का तरीका पश्चिम से अलग है, पर इसके चलते हमारी प्राचीन सभ्यता पर आधारित इतिहास को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. उन्होंने वेद, स्मृति, श्रुति का हवाला दिया. धवन ने उन्हें इस पर उन्हें टोकते हुए कहा कि हम वेद, स्मृति, श्रुति इन सब पर सवाल नहीं उठा रहे. हमारा ये कहना है कि हिंदू पक्ष के गवाहों की गवाहियां ये साबित नहीं कर पाई है कि 1934 से पहले वहां नियमित पूजा होती रही है.
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सुनवाई को ट्वेंटी- ट्वेंटी मैच करार देने से चीफ जस्टिस नाराज
बीस मिनट के अंदर दो हिन्दू पक्ष के वकील रंजीत कुमार और पी नरसिम्हा की दलील समेटने के बाद जब चीफ जस्टिस ने निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील जैन से कहा कि उनके पास अपनी बात पूरी करने के लिए महज डेढ़ घंटे का समय है तो सुशील जैन ने हल्के अंदाज़ में टिप्पणी की कि ऐसे लगता है कि सुनवाई 20-20 मैच की तरह चल रही है. इस पर चीफ जस्टिस ने नाराजगी जताते हुए कहा कि आप कैसी बात कर रहे हैं. हमने आपको 4-5 दिन विस्तार से सुना है फिर भी आप इस तरह की बात कर रहे हैं. आप इसकी तुलना 20-20 मैच से कर रहे हैं. सुशील जैन ने अपने बयान के लिए खेद जताया.
निर्मोही अखाड़े की दलील
जस्टिस चन्दचूड़ ने निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील जैन से कहा कि वो विवादित जगह पर सेवादार के हक़ को साबित करे. सुशील जैन ने मुस्लिम पक्ष के धवन की दलीलों का जवाब देते हुए कहा कि हम विवादित ज़मीन के बाहरी और भीतरी हिस्से को अलग-अलग करके नहीं देख रहे. चूंकि, विवाद अंदरूनी हिस्से में श्रीरामजन्मस्थान को लेकर है, इसलिए हमने इसको लेकर मुकदमा दायर किया लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हम बाहरी हिस्से को छोड़ रहे हैं. सुशील जैन ने कहा कि ये दावा कि हिंदुओं ने दिसंबर 1949 में विवादित जगह पर मूर्ति रखी ग़लत है. मुस्लिम पक्ष ने समस्या गढ़ने के लिए ये कहानी बनाई है.