अयोध्या केस: बाबर के कामों को इस्लामिक कानून की कसौटी पर नहीं परख सकतेः मुस्लिम पक्ष

अयोध्या मामले की सुनवाई के 34वें दिन मुस्लिम पक्ष के वकील निज़ाम पाशा ने एक मस्जिद के तौर पर बाबरी मस्जिद की वैधता पर उठाए गए हिंदू पक्ष के सवालों का जवाब दिया.

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Deepak Pandey
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अयोध्या केस: बाबर के कामों को इस्लामिक कानून की कसौटी पर नहीं परख सकतेः मुस्लिम पक्ष

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

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अयोध्या मामले की सुनवाई के 34वें दिन मुस्लिम पक्ष के वकील निज़ाम पाशा ने एक मस्जिद के तौर पर बाबरी मस्जिद की वैधता पर उठाए गए हिंदू पक्ष के सवालों का जवाब दिया. हिन्दू पक्ष का कहना था कि इस्लामिक क़ानून के लिहाज से बाबरी मस्ज़िद एक वैध मस्जिद नहीं कही जा सकती है. किसी की ज़मीन पर जबरन कब्ज़ा करके या धार्मिक स्थान को तोड़कर बनाई मस्जिद वैध नहीं हो सकती है.

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निजाम पाशा ने इस पर जवाब देते हुए शनिवार को कहा कि बाबर बादशाह था, वो सर्वेसर्वा था. वो वक़्त था, जब देश में कोई संविधान लागू नहीं था. बादशाह ख़ुद में क़ानून था. वो किसी इस्लामिक क़ानून से भी नहीं बंधा था. उसे जो सही लगा, उस लिहाज से उसने मस्जिद का निर्माण कराया. उसके काम को आज के क़ानून या इस्लामिक क़ानून की कसौटी पर नहीं आंक सकते हैं. बाबर के वक़्त शरिया क़ानून लागू नहीं या था. कुरान के सिद्धांत के तौर ये तो तय हो सकता है कि उसने पाप किया या नहीं, लेकिन क़ानूनी वैधता पर सवाल नहीं उठा सकते हैं.

'मस्जिद का कोई तय डिजाइन ज़रूरी नहीं'

निजाम पाशा ने भी कहा कि बाबरी मस्ज़िद की वैधता पर सवाल उठाने वाली हिंदू पक्ष की दलीलें ग़लत हैं. बिना किसी मीनार के या बिना वजूखाने के भी मस्जिद हो सकती है. मस्जिद के डिजाइन का शरिया से सीधा कोई वास्ता नहीं है. क्षेत्र विशेष के वास्तु शिल्प के आधार पर मस्जिद बनाई जाती रही है. ये देखना होगा कि लोग क्या मानते हैं. क्या बाबरी मस्जिद में वजू करने की व्यवस्था थी या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इस्लाम में घर से भी वजू करके मस्जिद आने की परम्परा रही है.

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'निर्मोही होकर भी सम्पति से मोह'

विवादित ज़मीन पर निर्मोही अखाड़े के दावों को लेकर निज़ाम पाशा ने दिलचस्प दलील दी. पाशा ने कहा- निर्मोही का मतलब है कि जो मोह से परे हो, जिसे सम्पतियों से लगाव न हो, वो निर्मोही कहलाता है. लेकिन अखाड़ा उसी (सम्पति) के लिए क़ानूनी लड़ाई लड़ रहा है.

शेखर नाफड़े की दलील

निज़ाम पाशा से पहल मुस्लिम पक्ष के वकील शेखर नाफड़े ने दलीलें रखीं. शेखर नाफड़े की दलील कानून के ‘रेस ज्यूडिकाटा’ सिद्धांत पर आधारित थी. इस सिद्धांत के मुताबिक, अगर किसी मामले का कोर्ट में निपटारा हो जाए तो उसे बार-बार नहीं उठाया जा सकता है. शेखर नाफड़े का कहना था कि 1885 में फैज़ाबाद कोर्ट से मन्दिर निर्माण की रघुवर दास की याचिका खारिज हो गई थी. लिहाजा अब इन याचिकाओं पर सुनवाई नहीं होनी चाहिए. वैसे इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट 'रेसज्युडिकाटा' को लेकर मुस्लिम पक्ष की दलील को खारिज कर चुका है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी माना था कि रघुवर दास ने याचिका व्यक्तिगत रूप से की थी. उनकी याचिका को पूरे हिंदू समाज की याचिका नहीं कहा जा सकता है.

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क्या रघुवर दास हिंदू समाज के प्रतिनिधि?

नाफड़े ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस निष्कर्ष को ग़लत बताया और ये साबित करने की कोशिश की कि मंहत रघुवरदास को मठ और हिंदुओं का क़ानूनी प्रतिनिधि माना जा सकता है. उन्होंने कहा कि रघुवर दास के नाम के आगे महंत लगा था. महंत का मतलब होता है किसी अखाड़े का प्रतिनिधि या पूरे समाज का प्रतिनिधि. इस पर जस्टिस बोबडे ने नाफड़े को टोका और कहा- अखाड़े और हिंदुओं ने ऐसा कोई दावा नहीं किया कि रघुवर दास उनके प्रतिनिधि है. खुद महंत रघुवर दास ने ऐसा दावा नहीं किया कि उन्होंने मठ या पूरे हिन्दू समाज की ओर से अर्जी दायर की है.

हिंदू पक्ष की ओर के परासरन की दलील

मुस्लिम पक्ष की ओर से दलीलें रखे जाने के बाद रामलला की ओर से वकील के परासरन ने श्रीरामजन्म स्थान को न्यायिक व्यक्ति का दर्ज़ा देकर उनकी ओर से केस दायर करने पर अपनी दलीलें रखीं. उन्होंने कहा- यहां न्यायिक व्यक्ति की परिभाषा को हिंदू क़ानून के लिहाज से देखने की ज़रूरत है, न कि किसी रोमन या अंग्रेजी क़ानूज की नज़र से. हिंदू धर्म में ईश्वर एक ही है, लेकिन उनकी विभिन्न मन्दिरों में विभिन्न तरीकों से, विभिन्न स्वरूपों में उनकी पूजा होती रही है. आम भक्तों ईश्वर की आराधना के लिए सगुण रूप में उनकी आराधना करते हैं. इसी मकसद से मन्दिर के मूर्ति स्थापित की जाती है, उनकी प्राण प्रतिष्ठा की जाती है और न्यायिक व्यक्ति का दर्जा देना उनके अधिकारों की रक्षा के लिए है. भक्तों की ये आस्था रहती है कि ख़ुद ईश्वर उस मूर्ति के जरिये प्रकट हुए हैं और इस लिहाज से वो सम्पति के मालिक हैं.

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हिंदू पक्ष के पास जवाब देने के लिए शुक्रवार तक का वक़्त

सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दू पक्षकारों से कहा कि मुस्लिम पक्ष की दलीलों पर गुरुवार तक अपना जवाब दे. शुक्रवार को राजीव धवन सुन्नी वक्फ़ बोर्ड की तरफ से दलील देंगे. हालांकि, रामजन्मभूमि पुनरोद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा ने कोर्ट से और समय की मांग की, लेकिन चीफ जस्टिस ने इससे इनकार कर दिया. चीफ जस्टिस ने कहा- हमारे पास समय नहीं है, आप वो चीज मांग रहे हैं जो हमारे पास है ही नहीं.

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