अयोध्या मामले का 35वां दिन: मंदिर साबित करने के लिए मूर्ति नहीं, आस्था ज़रूरीः हिंदू पक्ष

अयोध्या मामले की सुनवाई के 35वें दिन मंगलवार को पूरे दिन हिंदू पक्ष ने मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश जिरह के जवाब में दलीलें रखीं.

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Deepak Pandey
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अयोध्या मामले का 35वां दिन: मंदिर साबित करने के लिए मूर्ति नहीं, आस्था ज़रूरीः हिंदू पक्ष

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

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अयोध्या मामले की सुनवाई के 35वें दिन मंगलवार को पूरे दिन हिंदू पक्ष ने मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश जिरह के जवाब में दलीलें रखीं. रामलला की ओर से पेश 92 साल के वकील के परासरन ने श्रीरामजन्मस्थान को न्यायिक व्यक्ति का दर्जा होने के समर्थन में दलीलें रखीं. परासरन ने कहा कि किसी जगह को मंदिर साबित करने के लिए मूर्ति की मौजूदगी ज़रूरी नहीं है, बल्कि लोगों की आस्था, विश्वास ही किसी जगह को मन्दिर बनाते हैं और श्रीरामजन्मस्थान को लेकर तो लोगों की आस्था सदियों से अटूट रही है.

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न्यायिक व्यक्ति को लेकर मुस्लिम पक्ष और कोर्ट के सवाल

के परासरन की दलीलों के बीच मुस्लिम पक्ष के वकील धवन ने टोकते हुए कहा कि हिंदू पक्ष ने श्रीरामजन्मस्थान को न्यायिक व्यक्ति का दर्ज़ा देने की दलील के समर्थन में जितने केस का हवाला दिया है, वहां पहले से मन्दिर था. अयोध्या केस में तो मन्दिर की मौजूदगी को लेकर ही विवाद है. इसके जवाब में परासरन ने कहा कि श्रीरामजन्म भूमि भी हिंदुओं के लिए देवता की तरह पूजनीय है. हिंदू धर्म में ईश्वर की विविध रूपों में पूजा होती है. जिस जगह पर लोग सामूहिक रूप से पूजा करते है, वो जगह मन्दिर ही है. लोगों की आस्था, पूजा ही किसी जगह को मन्दिर बनाते हैं.

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इस पर जस्टिस चन्दचूड़ ने पूछा कि किसी सामूहिक पूजा के स्थान पर भक्त अलग-अलग मूर्तियों की पूजा कर सकते हैं, लेकिन अंततः एक मुख्य देवता होगा, जो इस केस में श्रीराम है तो ऐसी सूरत में क्या सभी मूर्तियां न्यायिक व्यक्ति कहलायेंगे?. परासरन ने जवाब दिया कि एक ही संस्थान में कई न्यायिक व्यक्ति हो सकते हैं. एक ही मन्दिर में कई देवताओं की मूर्तियां होती हैं.

इस पर जस्टिस अशोक भूषण ने पूछा कि इस मामले में क्या रामलला विराजमान और श्रीरामजन्मस्थान दोनों अलग-अलग न्यायिक व्यक्ति होंगे या एक ही कहलायेंगे. जस्टिस बोबड़े ने भी जोड़ा कि हर मंदिर में एक मुख्य देवता होता है, जिसके नाम से मन्दिर को जाना जाता है. परासरन ने जवाब दिया कि एक ही देवता, एक ही मन्दिर के अंदर अनेक रूप में प्रकट हो सकते हैं, उनके अलग-अलग रूप हो सकते हैं पर वो आपस में जुडे हुए ही हैं. ठीक ऐसे जैसे सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग जज/बेंच होते हैं, पर उनके फैसले को सुप्रीम कोर्ट का ही फैसला कहलाएगा.

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के परासरन ने आगे अपनी दलीलों में ये साफ किया कि एक ही जगह पर दो न्यायिक व्यक्ति साथ-साथ हो सकते हैं- एक मूर्ति के रूप में, एक रामजन्मभूमि के रूप में. सुप्रीम कोर्ट ने एसजीपीसी बनाम सोमनाथ दास के मामले में ये साफ किया है.

सुनवाई में जिक्र राहु- केतु का भी आया

जस्टिस बोबड़े ने रामलला के वकील के परासरन से पूछा कि क्या ज्योतिष में श्रीराम के जन्म के वक़्त को लेकर कुछ कहा गया है. परासरन ने कुछ इतिहासकारों का हवाला दिया जिन्होंने श्रीराम के जन्म के वक़्त को लेकर टिप्पणी की थी.

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राजीव धवन ने कहा कि मेरा समय अभी राहु केतु के बीच फंसा है, इसलिए मेरा बुरा वक़्त चल रहा है. शनि भी मुझ पर भारी है. भारत में ज्योतिष विज्ञान सूर्य और चंद्र, और जन्म के सही वक्त पर आधारित है. हम ग्रहों की गति के मुताबिक हर रोज की घटनाओं को लेकर भविष्यवाणी करते हैं, लेकिन क्या भगवान राम के केस में ऐसा है?. क्या हमें उनके जन्मस्थान/जन्म की तारीख के बारे में पुख्ता तौर पर कुछ पता है. नहीं ना?

रामलला के वकील परासरन ने राजीव धवन की दलील का जवाब देते हुए कहा कि रामनवमी का त्यौहार श्रीराम के जन्मदिन के तौर पर देश भर में मनाया जाता है, लेकिन ये त्यौहार अयोध्या यानि भगवान राम के जन्म स्थान उतनी भव्यता नहीं मनाया जाता. लिहाज़ा राम जन्मस्थान पर मंदिर बनना ज़रूरी है, ताकि वहां जन्मदिन मनाया जाना जा सके.

विवादित ढांचे के नीचे ईदगाह कैसे?

रामलला की ओर से पेश वकील सी एस वैद्यनाथन ने कहा कि मुस्लिम पक्ष अब एएसआई रिपोर्ट के हवाले से कह रहा है कि विवादित ढांचे के नीचे ईदगाह था तो क्या उनके कहने का मतलब यह है कि मुगल काल में ईदगाह को ध्वस्त करके बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था. वैद्यनाथन ने कहा कि एक बार अगर ये साबित हो जाए कि भगवान राम उसी जगह पर पैदा हुए थे तब इस बात का कोई महत्व नहीं रह जाता कि वहां पर कोई मंदिर की मूर्ति स्थापित थी या नहीं.

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वैद्यनाथन ने ASI की खुदाई का चार्ट दिखाते हुए साबित करने की कोशिश की कि विवादित जगह से खम्भे और उनके आधार मिले हैं, जिसे मुस्लिम पक्ष ईदगाह की दीवार बता रहा है, उसके ऊपर छत होने के भी सबूत मिले हैं. ईदगाह पर छत नहीं होती. वहां सिर्फ एक दीवार नहीं, बल्कि हॉलनुमा ढांचा था.

धवन के बार-बार टोकने से कोर्ट नाराज

जिरह के बीच मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन के बार-बार टोकने पर रामलला विराजमान की ओर से के परासरन ने नाराजगी जाहिर की. परासरन ने कहा कि धवन जिस तरह टोक रहे हैं, वो ग़लत है. मुझे अपनी बात पूरी रखने दीजिए. धवन ने जवाब दिया कि मुझे भी जिरह के बीच कई बार टोका गया, पर मैंने तो हर सवाल का जवाब दिया. इस पर रामलला की ओर से दूसरे वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि धवन की ये टिप्पणी दुर्भाग्यपूर्ण है. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने राजीव धवन के रवैये पर नाराजगी जाहिर की. इस पर राजीव धवन ने खेद जताया है.

Source : अरविंद सिंह

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