अयोध्या मामले की आखिरी सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट का माहौल तब गरम हो गया जब मुस्लिम पक्षकार ने उस नक्शे और कागजातों को फाड़ दिया दो हिंदू महासभा की ओर से कोर्ट में पेश किए गए थे. जरअसर हिंदु महासभा की तरफ से विकास सिंह की जिरह करने की बारी आई तो उन्होंने कोर्ट में विवादित जगह और मन्दिर की मौजूदगी साबित करने के लिए पूर्व IPS किशोर कुणाल की एक किताब 'ayodhya revisited' का हवाला देना चाहा. राजीव धवन ने इसे रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं बता कर विरोध किया. विकास सिंह ने इसके बाद एक नक्शा रखा और उसकी कॉपी राजीव धवन को दी. धवन ने इसका भी विरोध करते हुए अपने पास मौजूद नक्शे की कॉपी को फाड़ना शुरू कर दिया.
चीफ जस्टिस ने धवन के इस तरीके पर नाराजगी जताते हुए कहा- आप चाहे तो पूरे पेज फाड़ सकते हैं. इतना ही नहीं, उन्होंने वकीलों के रवैये पर नाराजही जाहिर करते हुए कहा, इस तरीके से सुनवाई नहीं हो सकती. कोर्ट रूम के अंदर ऐसी नोकझोक अदालत का कीमती वक़्त बर्बाद कर रही है. हम अभी सुनवाई बन्द कर देंगे और आप सब से लिखित जवाब मांग कर फैसला सुरक्षित लेंगे.
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हिंदू पक्षकार ने क्या कहा?
इससे पहले हिंदू पक्ष के वकील सीएस वैद्यनाथन अपनी दलीलों के जरिये बताया कि हिन्दू 1885 में रामचबूतरे पर तो पूजा कर ही रहे थे. वो केंद्रीय गुम्बन्द को श्रीराम का जन्मस्थान मानते हुए गुम्बद और चबुतरे को अलग करने रेलिंग पर भी पूजा करते थे लेकिन बाद में मुगलों ने जबरन मस्जिद बना दी थी. इसपर जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा कि रेलिंग को लेकर आपकी क्या स्थिति है.
हिंदू पक्षकार ने कहा, 16 दिसंबर 1949 के बाद से विवादित जगह पर कोई नमाज नहीं पढ़ी गई और इस बात के सबूत भी हैं. 22-23 दिसंबर की रात रामलला वहां विराजमान थे. 23 दिसबंर शुक्रवार था लेकिन रामलला की प्रतिमा होने की वजह से नमाज अदा नहीं की जा सकी. उन्होंने कहा, ऐसा कोई सबूत नहीं, जिससे साफ हो कि 1934 के बाद वहां नमाज पढ़ी गई. जबकि हिंदू हमेशा उस जगह को श्रीराम का जन्मस्थान मानकर पूजा करते रहे हैं. इसी के साथ सीएस वैद्यनाथन ने मंगलवार की दलील को दोहराया. उन्होंने कहा, मुसलमान अयोध्या की दूसरी मस्जिदों में नमाज पढ़ सकते है पर हिन्दुओं के पास श्री रामजन्मस्थान का कोई दूसरा विकल्प नहीं है. वो अपने आराध्य का जन्मस्थान नहीं बदल सकते
Source : न्यूज स्टेट ब्यूरो