अयोध्या मामले को लेकर जनवरी महीने में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होगी हालांकि तारीख़ को लेकर कोई जानकारी नहीं दी गई है. बता दें कि यह सुनवाई 2010 में इलहाबाद कोर्ट द्वारा सुनाए गए फ़ैसले के ख़िलाफ़ दायर याचिका पर होगी. इस बीच राम मंदिर को लेकर लगातार सियासी पारा गरमाता जा रहा है. शनिवार को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे दो दिवसीय दौरे पर अयोध्या पहुंचने वाले हैं. वहीं रविवार को विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने रविवार को 'धर्मसभा' का आयोजन भी किया है.
गौरतलब है कि 6 दिसंबर, 1992 के दिन अयोध्या में बाबरी ढांचा ढहा दिया गया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नवंबर 1989 में बाबरी ढांचे के पास शिलान्यास की मंजूरी देकर इस विवाद को और हवा दे दी थी.
आइए जानते हैं अयोध्या विवाद कब और कहां से शुरु हुआ था-
-अयोध्या विवाद (ayodhya dispute) का इतिहास बेहद ही लंबा है जो 1853 से शुरु होता है. 1853 में इस जगह के आसपास पहली बार दंगे हुए थे. जिसके बाद 1859 में अंग्रेजों ने विवादित जगह के आसपास बड़ लगा दी. मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की इजाजत दी गई.
-1885 में महंत रघुबर दास ने फैजाबाद के उप-जज के सामने याचिका दायर की कि यहां मंदिर बनाने की इजाजत दी जाए. लेकिन जज ने इसे खारिज कर दिया. यह चबूतरा मस्जिद के बेहद करीब था जिसकी वजह से मंदिर बनाने की इजाजत नहीं दी गई.
-23 दिसंबर 1949 में असली विवाद शुरु हुआ. मस्जिद के अंदर राम की मूर्तियां मिलने पर हिंदुओं में मंदिर (ram temple) बनाने की इच्छा प्रबल हुई. हिंदुओं का कहना था कि भगवान राम वहां प्रकट हुए हैं. जबकि मुस्लिमों का कहना था कि चुपके से मूर्ति वहां रख दी गई.
-तब तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू ने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री जीबी पंत से इस मामले में फौरन कार्रवाई करने को कहा. लेकिन जिला मजिस्ट्रेट केके नायर ने हिंदुओं की भावनाओं को भड़कने और दंगे फैलने के डर से राम की मूर्तियां हटाने से मना कर दिया. जिसके बाद इसे विवादित ढांचा मानकर ताला लगवा दिया गया.
-16 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद नामक शख्स ने फैजाबाद के सिविल जज के सामने अर्जी दाखिल कर यहां पूजा की इजाजत मांगी. जिसे जज एनएन चंदा ने इजाजत दे दी.
-मुसलमानों ने इस फैसले के खिलाफ अर्जी दायर की. विवादित ढांचे की जगह मंदिर बनाने के लिए 1984 में विश्व हिंदू परिषद ने एक कमिटी गठित की.
-लेकिन 1 फरवरी 1986 को यूसी पांडे की याचिका पर फैजाबाद के जिला जज केएम पांड ने पूजा करने की इजाजत देते हुए विवादित ढांचे से ताला हटाने का आदेश दिया.जिसके विरोध में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया गया.
-6 दिसंबर 1992 को बीजेपी, वीएचपी और शिवसेना समेत दूसरे हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे को गिरा दिया. जिसके बाद पूरे देश में दंगे भड़क गए जिसमें करीब 2 हजार लोगों की जानें गई.
-इसके 10 दिन बाद 16 दिसंबर 1992 को लिब्रहान आयोग गठित किया गया. लिब्रहान आयोग को 16 मार्च 1993 को यानी तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया था. लेकिन आयोग ने रिपोर्ट देने में 17 साल लगा दिए.
-30 जून 2009 को लिब्रहान आयोग ने चार भागों में 700 पन्नों की रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदंबरम को सौंपा जांच आयोग का कार्यकाल 48 बार बढ़ाया गया.
-31 मार्च 2007 को समाप्त हुए लिब्रहान आयोग का कार्यकाल को अंतिम बार तीन महीने 30 जून तक के लिए बढ़ा दिया गया.
-2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने निर्णय सुनाया जिसमें विवादित भूमि को रामजन्मभूमि घोषित किया गया. कोर्ट ने बहुमत से निर्णय दिया कि विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि माना जाता है उसे हिंदू गुटो को दे दिया जाए. इसके साथ ही यह भी कोर्ट ने आदेश दिया की रामलला की प्रतिमा वहां से नहीं हटाया जाएगा.
-इसके साथ ही सीता रसोई और राम चबूतरा आदि के कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्ज़ा रहा है इसलिए यह हिस्सा निर्माही अखाड़े के पास ही रहेगा.
-दो न्यायधीधों ने यह निर्णय भी दिया कि इस भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान प्रार्थना करते रहे हैं इसलिए विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान गुटों दे दिया जाए.
कोर्ट के इस फैसले को हिंदू और मुस्लिम पक्ष मानने से इंकार कर दिया और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
-2010 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे दोनों पक्षों की सुनवाई होती रही, लेकिन 7 साल बाद यानी 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने यह तय किया कि हर रोज राम मंदिर मामले को लेकर सुनवाई होगी.
-11 अगस्त 2017 से 3 न्यायधीशों की पीठ इस विवाद की सुनवाई प्रतिदिन करेगी. सुनवाई से ठीक पहले शिया वक्फ बोर्ड ने न्यायालय में याचिका लगाकर विवाद में पक्षकार होने का दावा किया और 70 वर्ष बाद 30 मार्च 1946 के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी जिसमें मस्जिद को सुन्नी वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति घोषित कर दिया गया था.
-सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 5 दिसंबर 2017 से इस मामले की अंतिम सुनवाई शुरू की जाएगी. लेकिन विवाद इतना लंबा था कि एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा कि 5 फरवरी 2018 से इस मामले की अंतिम सुनवाई शुरू की जाएगी.
-इसकी के तहत आज यानी 27 सितंबर 2018 को कोर्ट ये तय करेगा कि क्या इस्लाम में मस्ज़िद की अनिवार्यता के सवाल पर फिर से विचार हो या नहीं. साल 1994 में आए इस्माइल फारुखी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि मस्ज़िद इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है.
Source : News Nation Bureau