Ayodhya Verdict : देश में लंबे मुकदमे का फैसला शनिवार को आ गया. अब तक विवादित रही जमीन हिंदू पक्षकारों को दे दी है. इस तरह माना जा सकता है कि अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ हो गया है. सुबह फैसला सुनाते हुए सर्वोच्च अदालत ने यह भी माना कि इस बात के सबूत मिले हैं कि हिंदू बाहर पूजा-अर्चना करते थे, तो मुस्लिम भी अंदर नमाज अदा करते थे. इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया कि 1857 से पहले ही पूजा होती थी. सर्वोच्च अदालत ने यह भी माना कि 1949 को मूर्ति रखना और ढांचे को गिराया जाना कानूनन सही नहीं था. संभवतः इसीलिए सर्वोच्च अदालत ने मुसलमानों के लिए वैकल्पिक जमीन दिए जाने की व्यवस्था भी की है. इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से सुनाया. इसमें पांच जज शामिल रहे. ऐसे में आपको आज इन पांच जजों और उनके बारे में यह भी जानना चाहिए कि इससे पहले यह पांचों जज कौन कौन से ऐतिहासिक निर्णय सुना चुके हैं.
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चीफ जस्टिस रंजन गोगोई
जस्टिस एसए बोबड़े
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़
जस्टिस अशोक भूषण
जस्टिस एसए नजीर
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1. जस्टिस रंजन गोगोई, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई इस पीठ की अगुवाई कर रहे हैं. उन्होंने 3 अक्टूबर 2018 को बतौर मुख्य न्यायधीश पदभार ग्रहण किया था. 18 नवंबर 1954 को जन्मे जस्टिस गोगोई ने 1978 में बार काउंसिल ज्वाइन की थी. उन्होंने शुरुआत गुवाहाटी हाई कोर्ट से की, 2001 में गुवाहाटी हाई कोर्ट में जज भी बने.
इसके बाद जस्टिस रंजन गोगोई पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में बतौर जज 2010 में नियुक्त हुए. वह 2011 में पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बने. 23 अप्रैल 2012 को वह सुप्रीम कोर्ट के जज बने. बतौर चीफ जस्टिस अपने कार्यकाल में कई ऐतिहासिक मामलों को सुना है, जिसमें अयोध्या केस, NRC, जम्मू-कश्मीर पर याचिकाएं शामिल हैं.
बड़े फैसले
रंजन गोगोई ने अपने कार्यकाल के दौरान कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए हैं, जिसमें असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) जैसे मामले शामिल हैं. उन्होंने अभिनेता अमिताभ बच्चन से जुड़े पुनः कर निर्धारण मामले में भी अहम फैसला सुनाया है.
वह एनआरसी को लेकर काफ़ी मुखर भी रहे हैं. एक सेमिनार में उन्होंने इसे 'भविष्य का दस्तावेज' बताया था.
मई 2016- न्यायाधीश रंजन गोगोई और प्रफुल्ली सी. पंत की बेंच ने अमिताभ बच्चन से जुड़े बॉम्बे हाई कोर्ट के 2012 के आदेश को खारिज कर दिया था. दरअसल बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने आदेश में अमिताभ बच्चन के एक लोकप्रिय टीवी शो से हो रही आय को लेकर दोबारा आयकर के मानकों को तय करने के इनकम टैक्स कमिश्नर के अधिकार को ख़ारिज कर दिया था. इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया.
साल 2018- गोगोई ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्रसंध नेता कन्हैया कुमार पर हुए हमले में विशेष जांच टीम बनाने की याचिका को खारिज कर दिया था. ये याचिका वरिष्ठ वक़ील कामिनी जैसवाल ने दायर की थी.
कन्हैया कुमार पर यह हमला 15 और 17 फ़रवरी 2016 को हुआ था जब उन्हें देशद्रोह के मामले में अदालत में लाया जा रहा था.
2018 में इनके द्वारा दिए गए ऑर्डर ने लोकपाल एक्ट में किसी भी तरह की तकनीकी कमी के न होने की बात कही, और सरकार के लोकपाल को लेकर ढुलमुल रवैये पर नाराज़गी जाहिर की. कहा कि जब चार साल पहले लोकपाल एक्ट पास हो चुका है, तो अभी तक लोकपाल की नियुक्ति क्यों नहीं हुई है.
17 नवम्बर को रिटायर होंगे, उसके पहले सबरीमाला रीव्यू, राफेल का मुद्दा, आरटीआई के दायरे में चीफ जस्टिस को लाने जैसे मुद्दों पर फैसला सुनाने वाले हैं.
गोगोई छोटे-छोटे मसलों पर दायर होने वाली जनहित याचिकाओं को स्वीकार न करने के लिए भी जाने जाते हैं. कई मौकों पर उन्होंने याचिकाकर्ताओं पर ऐसी याचिकाएं दायर करने और अदालत का समय बर्बाद करने के लिए भारी जुर्माना भी लगाया है.
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2. जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े (एसए बोबड़े)
इस पीठ में दूसरे जज जस्टिस एसए बोबड़े हैं. उन्होंने 1978 में बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र को ज्वाइन किया था. इसके बाद बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में लॉ की प्रैक्टिस की, 1998 में वरिष्ठ वकील भी बने. साल 2000 में उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट में बतौर एडिशनल जज पदभार ग्रहण किया. इसके बाद वह मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बने और 2013 में सुप्रीम कोर्ट में बतौर जज कमान संभाली. जस्टिस एसए बोबड़े 23 अप्रैल, 2021 को रिटायर होंगे.
महत्वपूर्ण फैसले
उनके कुछ महत्वपूर्ण फैसलों में जोगेंदर सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामला शामिल है जिसमें तीन जजों की बेंच ने मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील करने का फ़ैसला सुनाया था. इस मामले में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अपराधी को एक महिला की हत्या के मामले में मौत की सजा का फैसला सुनाया था. अपराधी ने उस दौरान हत्या की थी जब वह एक अन्य मामले में जमानत पर बाहर था. न्यायाधीश बोबड़े ने कहा था कि इस मामले की परिस्थितियों को देखते हुए इसे 'दुर्लभतम' मामला नहीं माना जा सकता.
मई, 2018- जब कर्नाटक में चुनाव हुए और किसी को बहुमत नहीं मिला, तो राज्यपाल ने बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए बुलाया. कांग्रेस इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची. रात 2 बजे से सुनवाई शुरू हुई और फैसला येदियुरप्पा के पक्ष में आया. येदियुरप्पा के पक्ष में फैसला देने वाली बेंच में शामिल थे जस्टिस बोबड़े.
वह निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करने वाली नौ सदस्यीय संवैधानिक बेंच का भी हिस्सा थे. यह मसला साल 2017 में केएस पुट्टास्वामी बनाम केंद्र सरकार मामले में उठा था. न्यायाधीश बोबड़े ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताते हुए अपनी अलग राय रखी थी. उनका मानना था आधार कार्ड व्यक्ति की निजता को सीमित करता है. साथ ही यह भी माना कि आधार न होने के चलते किसी भी नागरिक को सरकारी सब्सिडी से वंचित नहीं किया जा सकता.
उन्होंने मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर और न्यायाधीश अर्जन कुमार सीकरी के साथ पटाखों की बिक्री और भंडारण से जुड़ा फैसला भी सुनाया था.
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3. जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने 13 मई 2016 को उच्चतम न्यायालय के जज का पदभार संभाला था. उनके पिता जस्टिस यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके हैं. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट में आने से पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके हैं. वहीं, बॉम्बे हाई कोर्ट में भी वह बतौर जज रह चुके हैं. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ दुनिया की कई बड़ी यूनिवर्सिटियों में लेक्चर दे चुके हैं. बतौर जज नियुक्त होने से पहले वह देश के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल रह चुके हैं. वह सबरीमाला, भीमा कोरेगांव, समलैंगिकता समेत कई बड़े मामलों में पीठ का हिस्सा रह चुके हैं.
बड़े फैसले
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सबरीमाला, समलैंगिकता समेत कई बड़े मामलों की सुनवाई की है.
न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ के ऐतिहासिक फ़ैसलों में से एक वो है जिसमें उन्होंने अपने पिता के 1985 के आदेश को बदल दिया था.
2018 में नवतेज जौहर वर्सेज यूनियन ऑफ इंडिया केस में जिस बेंच ने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था, उस बेंच में जस्टिस चंद्रचूड़ भी मौजूद थे. उन्होंने धारा 377 को समय के हिसाब से भ्रमित और गुलामी वाला बताया था जो बराबरी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जीवन, और निजता के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन करता है.
2018 में ही केरल के हदिया विवाह मामले में सुनवाई करते हुए उसके धर्म और जीवनसाथी के चुनाव को सही बताते हुए फैसला दिया था. हदिया ने अपना धर्म बदलकर मुस्लिम शफीन जहान से शादी की थी. इसके बाद उसके घरवालों ने आरोप लगाया था कि हदिया का ब्रेनवॉश किया गया है. चंद्रचूड़ ने कहा था कि एक बालिग़ का उसकी शादी या धर्म को लेकर लिया जाने वाला फैसला उसके निजी अधिकारों के तहत आता है.
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4. जस्टिस अशोक भूषण
यूपी से आने वाले जस्टिस अशोक भूषण का जन्म जौनपुर में हुआ था. वह साल 1979 में यूपी बार काउंसिल का हिस्सा बने. इसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस की. उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट में कई पदों पर काम किया और 2001 में बतौर जज नियुक्त हुए. 2014 में वह केरल हाई कोर्ट के जज नियुक्त हुए और 2015 में चीफ जस्टिस बने. 13 मई 2016 को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में कार्यभार संभाला.
महत्वपूर्ण फैसले
2017 में इनकी मौजूदगी वाली डिविजन बेंच ने एक पेटीशन को खारिज किया, जिसमें सिविल सर्विसेज एग्जाम में शारीरिक रूप से अक्षम कैंडिडेट्स के लिए कोशिशों की संख्या सात से बढ़ाकर दस करने की मांग की गई थी. जस्टिस भूषण ने कहा था कि फिजिकली हैंडीकैप्ड अपने आप में एक कैटेगरी है.
न्यायाधीश भूषण आधार कार्ड को पैन कार्ड से लिंक करने की अनिवार्यता पर आंशिक रोक लगाने का आदेश देने वाली बेंच का हिस्सा थे. इस बेंच में न्यायाधीश अर्जुन सीकरी भी शामिल थे.
2015 में इनकी मौजूदगी वाली केरल हाई कोर्ट की डिविजन बेंच ने आदेश दिया कि पुलिस को FIR की कॉपी लगानी होगी. अगर उसकी मांग RTI में की जाती है तो. इसमें छूट तभी मिलेगी अगर संबंधित अथॉरिटी ये निर्णय ले कि FIR को RTI एक्ट से छूट मिली हुई है.
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5. जस्टिस अब्दुल नजीर
अयोध्या मामले की बेंच में शामिल जस्टिस अब्दुल नज़ीर ने 1983 में वकालत की शुरुआत की. उन्होंने कर्नाटक हाई कोर्ट में प्रैक्टिस की, बाद में वहां बतौर एडिशनल जज और परमानेंट जज कार्य किया. 17 फरवरी, 2017 को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में बतौर जज कार्यभार संभाला.
महत्वपूर्ण फैसले
अयोध्या मामले की सुनवाई में न्यायाधीश नज़ीर ने ही कहा था कि इस मामले की सुनवाई एक बड़ी बेंच को करनी चाहिए.
ट्रिपल तलाक मामले में इनकी बेंच ने ट्रिपल तलाक (तलाक-ऐ-बिद्दत) को गैरकानूनी घोषित करने का फैसला दिया. पांच जजों की इस बेंच में दो जजों ने ट्रिपल तलाक को बनाए रखने के पक्ष में निर्णय दिया, और तीन ने विपक्ष में. नज़ीर ने फैसला दिया था कि तीन तलाक बनाए रखना चाहिए.
दिसंबर 2017- ये उन 9 जजों की बेंच का हिस्सा थे जिस बेंच ने कहा था कि निजता का अधिकार यानी Right to privacy नागरिक का एक मौलिक अधिकार है.
Source : News Nation Bureau