अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले में गुरुनानक देव जी की अयोध्या यात्रा और श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर के दर्शन का जिक्र है. एक जज जिन्होंने 116 पेज में अलग से अपनी राय दर्ज कराई है, उन्होंने पेज नंबर 63 पर एक गवाह ( राजेन्द्र सिंह) के बयान का हवाला दिया है- जिसके मुताबिक गुरुनानक देव जी ने अयोध्या जाकर 1510-11के बीच श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर के दर्शन किये थे. अहम बात ये ये समय बाबर के भारत में आक्रमण से (1526) से बहुत पहले का है.. गवाह राजेन्द्र सिंह ने कई "जन्मसाखी" का भी हवाला दिया है जिसमें गुरुनानक देव जी के अयोध्या आगमन और श्रीरामजन्ममन्दिर के दर्शन का जिक्र है. कहा गया है कि बाद में नौंवे गुरु तेगबहादुर जी और दसवें गुरु, गुरु गोबिंदसिंहजी ने भी श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर के दर्शन किये थे.
आपको बता दे कि राजेन्द्र सिंह इलाहाबाद HC में चली सुनवाई में सूट नंबर 4 यानि सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से दायर केस में प्रतिवादी नंबर 2 के गवाह के रूप में पेश हुए थे. उन्होंने ये साबित करने की कोशिश की कि 1528 में बाबरी मस्जिद के निर्माण होने से पहले से ही गुरुनानक देव जी समेत तमाम तीर्थयात्री अयोध्या आकर रामजन्मभूमि के दर्शन करते रहे है. इलाहाबाद HC के जज सुधीर अग्रवाल ने अपने फैसले में इसका जिक्र किया था.
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विवादित ढांचे के अंदर सबसे पहले निहंग सिख ने एंट्री की
इसके अलावा एक और अहम वाकया सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले में दर्ज है. 161 साल पहले विवादित ढांचे के अंदर सबसे पहले घुसकर एंट्री करने वाल भी एक निहंग सिख ही था. कोर्ट के फैसले में पेज नंबर 64 और 799 पर थानेदार शीतल सिंह की ओर से 28 नवंबर 1958 को दर्ज एक शिकायत का हवाला दिया . शिकायत में कहा गया- इस दिन एक निहंग सिख फकीर सिंह खालसा ने विवादित ढांचे के अंदर घुसकर पूजा का आयोजन किया और अंदर श्री भगवान का प्रतीक चिन्ह भी स्थापित किया.उनके साथ 25 और सिख भी मौजूद थे. बाद में बमुश्किल उन्हें हटाया गया.
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जब सिखों ने साधुओं के साथ मिलकर मुगल फौज से लोहा लिया
इतिहास में इस बात का ज़िक्र है कि अयोध्या में गुरु गोबिंद सिंह जी का आगमन बाल्य काल में हुआ था. अयोध्या में मौजूद गुरुद्वारा बृह्मकुण्ड में गुरुगोबिंद सिंह जी के अयोध्या आगमन से जुड़ी तमाम यादे है. इतिहास में इस बात का उल्लेख है कि श्रीरामजन्मभूमि की रक्षा के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी के निहंग सिखों ने चिमटाधारी साधुओं के मिलकर लोहा लिया था . दरअसल मुगलों की सेना के हमले की खबर जैसे ही चिमटाधारी साधु बाबा वैष्णवदास को लगी तो उन्होंने गुरु गोविंद सिंह जी से मदद मांगी. गुरु जी ने तुरंत अपने सिखों को वहाँ भेजा .गुरुद्वारे में वे हथियार आज भी मौजूद हैं जिनसे मुगल सेना को धूल चटा दी गई थी. मुगलों से लड़ने के लिये सिखों की सेना ने सबसे पहले ब्रह्मकुंड गुरुद्वारे में ही अपना डेरा जमाया था.