अंततः देश में लंबे समय से राजनीति का केंद्र रहे अयोध्या मसले को लेकर जो फैसला सुनाया है, उससे अयोध्या की अब तक विवादित रही जमीन हिंदू पक्षकारों को दे दी है. इस तरह से अगर देखा जाए तो अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ हो गया है. हालांकि इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत ने मुस्लिम पक्ष को भी अयोध्या में ही महत्वपूर्ण स्थान पर 5 एकड़ जमीन मस्जिद के लिए देने का भी निर्देश दे दिया.
हिंदू अंग्रेजों के जमाने से पहले करते आ रहे थे पूजा
इसके पहले सुबह फैसला सुनाते हुए सर्वोच्च अदालत ने यह भी माना कि इस बात के सबूत मिले हैं कि हिंदू बाहर पूजा-अर्चना करते थे, तो मुस्लिम भी अंदर नमाज अदा करते थे. इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया कि 1857 से पहले ही पूजा होती थी. हालांकि सर्वोच्च अदालत ने यह भी माना कि 1949 को मूर्ति रखना और ढांचे को गिराया जाना कानूनन सही नहीं था. संभवतः इसीलिए सर्वोच्च अदालत ने मुसलमानों के लिए वैकल्पिक जमीन दिए जाने की व्यवस्था भी की है.
राम के अस्तित्व को स्वीकारा
राम में आस्था रखने वालों के विश्वास और आस्था की पुष्टि भी सुप्रीम कोर्ट ने की है. सुप्रीम कोर्ट ने रामलला विराजमान को कानूनी वैधता प्रदान कर एक तरह से यह भी स्वीकार किया कि अयोध्या ही श्री राम की जन्मस्थली है. राम लला विराजमान खुद अयोध्या विवाद मामले में पक्षकार हैं. राम जन्मभूमि पर ही राम अवतरित हुए थे. इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने राम चबूतरे और सीता रसोई के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए माना कि अंग्रेजों के जमाने से पहले भी हिंदू वहां पूजा करते रहे हैं. हालांकि अदालत ने यह जरूर कहा कि रामजन्मस्थान को लेकर दावा कानूनी वैधता को स्वीकार नहीं किया. एक लिहाज से अदालत ने हिंदू धर्म में स्थान को पवित्र मानकर पूजा और देवता का कोई विशेष आकार को गैर जरूरी ही माना. संभवतः इसी आधार परकानूनी तौर पर जन्म स्थान को भी कानूनी पक्षकार नहीं माना.
एएसआई की रिपोर्ट को भी स्वीकारा
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज नहीं किया. इससे साबित होता है कि मस्जिद को मंदिर के अवशेषों पर बनाया गया था. इसका सीधा अर्थ यह है कि मस्जिद के नीचे मिला ढांचा गैर इस्लामिक है. एएसआई ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि नीचे मिले ढांचे का इस्तेमाल मस्जिद में भी किया गया. रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया था कि खुदाई में जो अवशेष मिले हैं वहां एक विशाल निर्माण था. कई स्तंभ हैं, जो ईसा पूर्व 200 साल पुराने हैं. पिलर पर भगवान की तस्वीर हैं. मूर्ति भी दिखीं. शिला पट्ट पर संस्कृत की लेखनी है जो 12 वीं सदी की हैं. इसमें राजा गोविंद चंद्र का जिक्र है, जिन्होंने साकेत मंडल पर शासन किया था और उसकी राजधानी अयोध्या थी. इससे साबित होता है कि वहां मस्जिद नहीं थी. जमीन का नक्शा और फोटो कोर्ट ने माने.
Source : News Nation Bureau