देश के विधि विशेषज्ञों का मानना है कि न्यायपालिका को त्वरित न्याय प्रदान करने में सक्षम बनाने के लिए न्यायिक सेवा के पदों पर नियुक्ति, स्थानांतरण आदि पर विचार करने के साथ-साथ विधिक शिक्षा में भी व्यापक सुधार लाने की जरूरत है।
देश के कानून में जनता का विश्वास बनाए रखने के मकसद से न्यायिक प्रक्रिया के मौजूदा हालात पर परिचर्चा करने के लिए बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया (बीएआई) की ओर से यहां आयोजित तीन दिवसीय सम्मेलन 'रूल ऑफ लॉ कन्वेंसन-2018 ऑन ज्यूडिशियल रिफॉर्म्स' के दूसरे दिन शनिवार को विधि विशेषज्ञों ने लोगों को जल्द इंसाफ दिलाने में आ रही दिक्कतों पर चर्चा की।
बीएआई के संयुक्त महासचिव रोशनलाल जैन ने समय पर इंसाफ नहीं होने पर चिंता जताई और कहा कि 'जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड' अर्थात देर से जो इंसाफ मिलता है उसे इंसाफ नहीं मिलना कहते हैं।
इससे पहले वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने कुछ मुकदमों का जिक्र करते हुए कानून की विसंगतियों का उल्लेख किया और न्यायिक अनुशासन की आवश्यकता पर बल दिया।
कुछ वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने न्यायपालिका पर मुकदमों का बोझ कम करने के लिए मध्यस्थता को प्रोत्साहन देने की बात कही तो कुछ विधि विशेषज्ञों न्यायपालिका की कार्यप्रणाली में सुधार लाने की वकालत की।
सर्वोच्च न्यान्यालय के अधिवक्ता अमन एम. हिंगोरानी ने आईएएनएस से कहा, 'आज जो लोग लॉ कॉलेज व यूनिवर्सिटी से डिग्रियां लेकर आ रहे हैं, उनको अगर पहले से ही पेशागत प्रशिक्षण दिया जाए तो विधिक प्रणाली की कार्यपद्धति में सुधार होगा।' हिंगोरानी ने त्वरित न्याय के विषय पर चर्चा में शामिल विधि विशेषज्ञों को विधिक शिक्षा में सुधार लाने की दिशा में काम करने का सुझाव दिया।
इससे पहले शुक्रवार को यहां चर्चा में हिस्सा लेते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने देश में न्यायाधीशों की कमी पर चिंता जाहिर की थी। उन्होंने कहा था, 'हम उम्मीद करते हैं कि हमारी सरकार देश के लोगों को इंसाफ दिलाने के लिए न्यायपालिका की बुनियादी सुविधाओं व जरूरी प्रशिक्षणों पर ध्यान देगी।'
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Source : IANS