क्या प्रियंका गांधी अपनी दादी इंदिरा गांधी की राह पर चल पड़ी हैं. आपातकाल के बाद मिली बड़ी हार से टूटी इंदिरा गांधी को जिस तरह बिहार में बेलछी नरसंहार का मुद्दा मिल गया था, ठीक उसी तरह प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश के सोनभद्र हिंसा का मुद्दा मिल गया है और प्रियंका गांधी इसे भुनाने में कतई पीछे नहीं रहना चाहतीं. यूपी सरकार द्वारा रोके जाने के बाद प्रियंका ने मीडिया का ध्यान खींचा है और पिछले 24 घंटे से वे लगातार टीवी पर छाई हुई हैं.
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आपातकाल के बाद हुए चुनाव 1977 में कांग्रेस को देशभर में बुरी तरह मात मिली थी. इंदिरा गांधी चुनाव परिणाम से निराश हो चुकी थीं और उस समय के जानकारों का तो यह भी कहना है कि वे राजनीति छोड़ने के बारे में सोच रही थीं. इस बीच बिहार के बिहारशरीफ के बेलछी गांव में एक बड़ा नरसंहार हो गया. बेलछी में 11 दलितों को मार गिराया गया था. बेलछी कांड ने तब कांग्रेस और इंदिरा गांधी की राजनीति को जैसे आक्सीजन दे दिया. इंदिरा गांधी दिल्ली से प्लेन से पटना पहुंचीं और वहां से सड़क के रास्ते बिहारशरीफ पहुंचीं. बाढ़ के चलते बेलछी गांव चारों तरफ से पानी से घिरा था. बेलछी गांव पहुंचने के लिए इंदिरा गांधी हाथी पर चढ़कर गईं. पीड़ित परिवारों से मिलीं और संवेदना जताईं. इस कांड के बाद से ही इंदिरा गांधी ने पूरे देश में एक बार फिर से वापसी की थी.
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उस समय टाइम्स ऑफ इंडिया के रिपोर्टर रहे हेमेंद्र नारायण झा ने लिखा था- हवाई जहाज से इंदिरा गांधी एक गुलाबी रंग का रेनकोट पहन कर नीचे उतरीं. उनके साथ के लोग न चाहते हुए भी भीग रहे थे. उन्हें बेलची जाना था. एयरपोर्ट पर उन्होंने घोषणा की- "मैं यहां मृत लोगों के परिजनों से संवेदना व्यक्त करने आई हूं. सभी रुकावटों के बावजूद वह बेलची जाने पर अडिग रहीं." इंदिरा गांधी पहले जीप से निकलीं, लेकिन कीचड़ में जीप फंस गई. जीप को ट्रैक्टर से खींचकर निकालने की जुगत की गई, लेकिन काम नहीं आया. वह पैदल ही चल पड़ीं. उनके साथ बिहार कांग्रेस के कई सारे नेता भी नंगे पांव चल रहे थे और जैसा कि होना ही था ज्यादा देर नहीं चल सके. फिर तय हुआ कि हाथी के अलावा कोई और साधन नहीं हो सकता था. मोहाने नदी से पहले नारायणपुर गांव में इंदिरा गांधी हाथी 'मोती' पर चढ़ीं. बाकी लोग एक नाव से पार हुए.
हेमेंद्र नारायण की रिपोर्ट के अनुसार, इंदिरा गांधी ने वह जगह देखने की बात कही, जहां नरसंहार हुआ था. वह जगह गांव के किनारे मक्के के खेतों के बीच थी. वहां उस समय तक मृतकों की अधजली हड्डियां पड़ी थीं. छापामारों ने उनकी हत्या से पहले वहां चिताएं तैयार कीं और फिर दलितों को लाइन में खड़ा कर गोली मार दी थी.
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प्रियंका गांधी शायद इंदिरा गांधी की ही रात पर चल पड़ी हैं. हाल ही में लोकसभा चुनाव में करारी हार मिली है, जैसा कि आपातकाल के बाद कांग्रेस को मिला था. उस समय लोकसभा चुनाव के बाद बेलछी नरसंहार हुआ था और अब लोकसभा चुनाव के ठीक बाद सोनभद्र नरसंहार हुआ है. तब इंदिरा गांधी को मौका मिला था और अब प्रियंका गांधी सोनभद्र को भुनाने की कोशिश कर रही हैं. इंदिरा गांधी ने तो उसके बाद राजनीति की आबोहवा बदलकर रख दी थी. अब देखना यह है कि अपनी दादी की तरह प्रियंका गांधी वह चमत्कार दोहरा पाती हैं या नहीं. उनके लिए मौका भी है, दस्तूर भी है, लेकिन कांग्रेस में वो जान नहीं है.