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बेटी बचाओ: क्या महिलाओं को दी जाए फांसी की सज़ा? जानिए क्या है तर्क

भारत में अभी तक किसी महिला को फांसी की सज़ा नहीं हुई है हालांकि आज़ाद भारत के 72 में पहली बार फांसी की सज़ा पाने वाली दो महिलाएं होंगी रेणुका शिंदे और सीमा गावित।

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Shivani Bansal
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बेटी बचाओ: क्या महिलाओं को दी जाए फांसी की सज़ा? जानिए क्या है तर्क

बेटी बचाओ: क्या महिलाओं को दी जाएं फांसी की सज़ा? जानिए क्या है तर्क (सांकेतिक फोटो)

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महिलाओं को फांसी की सज़ा मिलनी चाहिए या नहीं, यह एक ज्वलंत सवाल है। भारत में अभी तक किसी महिला को फांसी की सज़ा नहीं हुई है हालांकि आज़ाद भारत के 72 में पहली बार फांसी की सज़ा पाने वाली दो महिलाएं होंगी रेणुका शिंदे और सीमा गावित। 

कौन हैं रेणुका शिंदे और सीमा गावित?  

रेणुका शिंदे और सीमा गावित बहनें हैं और इन दोनों ही सीरियल किलर महिलाओं पर कई बच्चों के अपहरण और हत्याओं की दोषी है। इन दोनों बहनों को पुलिस ने साल 1996 में मासूम बच्चों के अपहरण और उनकी हत्याओं के आरोप में गिरफ्तार किया था। 

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इसके बाद सेशन कोर्ट ने 13 बच्चों के अपहरण और 6 की मौत में दोषी करार दिया। रेणुका शिंदे और सीमा गावित के निर्मम तरीके से बच्चों की हत्या करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सज़ा सुनाई और उनकी दया याचिका को साल 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने खारिज कर दी थी। 

खैर, यह तो एक महज़ जानकारी थी लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या महिलाओं को फांसी की सज़ा दी जानी चाहिए या नहीं। हालांकि भारत में आज़ादी के बाद से अबतक कुल 5 ही लोगों को फांसी की सज़ा दी गई है। 

बावजूद इसके मौजूदा समय में फांसी की सज़ा के मुद्दे पर ख़ासी बहस हो रही है और इस मुद्दे पर विभिन्न तर्क सामने आ रहे हैं। चलिए इन तर्कों पर एक नज़र डालते हैं। 

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फांसी के विरोध में तर्क
1- पहला तर्क यह कहता है कि क्योंकि महिलाएं के अपराधों की गिनती पुरुषों की तुलना में कम है। 
2- इसके अलावा महिलाएं अपराध की दुनिया में पाई भी जाएं तो भी उनके अपराध पुरुषों की तुलना में जघन्य और घिनौने अपराधों में लिप्त नहीं पाईं जाती। 
3- ज़्यादातर महिलाओं द्वारा किए गए अपराध ज़्यादातर समाज के लिए बड़ा ख़तरा माने जाने वाले अपराधों की श्रेणी में नहीं आते। 
4- महिलाओं द्वारा अपराध ज़्यादातर किसी भावनावश प्रेरित या दबाव में किए गए देखे जाते हैं। 

पक्ष में तर्क 
1- फांसी के पक्ष में यह दलील दी जाती है कि क्योंकि हम अभी भी उदारवादी समाज में हैं जहां महिलाओं के अलग दृष्टि से (कमज़ोर और अबला) माना जाता है और पुरुषों का दायित्व उन्हें बचाने का होता है। ऐसे में महिलाएं इस मानसिकता का फायदा उठाती है। 
2- महिलाओं द्वारा किए गए जघन्य अपराधों का पूरे समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसी महिलाओं को कानून की दृष्टि में नरमी दिखाई जाए तो दूसरी महिलाओं को बल मिलता है। 
3- महिलाओं की फांसी की सज़ा में नरमी को समानता के अधिकार के विपरीत माना जाता है। 

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यहां ध्यान रखने वाली बात यह है कि फांसी की सज़ा के प्रावधान पर सुप्रीम कोर्ट में जिरह चल रही है। 

कोर्ट सज़ा-ए-मौत के लिए फांसी के अलावा अन्य वैज्ञानिक विकल्पों पर अपनाने की याचिका पर सुनवाई कर रहा है ताकि दोषी को सुकून और अधिक मानवीय तरीके से मृत्युदंड दिया जा सके। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से उनका पक्ष भी मांगा है। 

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Source : News Nation Bureau

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