हिजाब को लेकर चल रहे विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर केंद्र और राज्यों को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि वे समानता, गरिमा सुनिश्चित करने और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए पंजीकृत और राज्य मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों में एक 'कॉमन ड्रेस कोड' लागू करें. गाजियाबाद निवासी निखिल उपाध्याय द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि सभी को समान अवसर के प्रावधानों के माध्यम से लोकतंत्र के सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करने के लिए सार्वभौमिक शिक्षा की भूमिका को हमारे गणतंत्र की स्थापना के बाद से स्वीकार किया गया है. इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को हिजाब मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया.
कॉमन ड्रेस कोड खत्म करेगा तमाम असमानताएं और विवाद
अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, 'इस प्रकार, एक समान ड्रेस कोड न केवल समानता, सामाजिक न्याय, लोकतंत्र के मूल्यों को बढ़ाने और एक न्यायपूर्ण और मानवीय समाज बनाने के लिए आवश्यक है, बल्कि जातिवाद, सांप्रदायिकता, वर्गवाद, कट्टरवाद, अलगाववाद और कट्टरवाद के सबसे बड़े खतरे को कम करने के लिए भी आवश्यक है.' दलील में तर्क दिया गया कि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, सिंगापुर और चीन में, सभी स्कूल और कॉलेज ड्रेस दिशा-निर्देशों की संवैधानिकता के लिए लगातार चुनौतियों के बावजूद एक समान ड्रेस कोड का पालन करते हैं.
यह भी पढ़ेंः पश्चिम बंगाल के स्कूल में हिजाब को लेकर बवाल, पुलिस बल पर पथराव
कई देशों के ड्रेस कोड के आधार पर याचिका
इसमें आगे कहा गया है कि अधिकांश अदालती फैसले आम ड्रेस कोड का समर्थन करते हैं, क्योंकि आम ड्रेस कोड के इस्तेमाल से कई फायदे होते हैं. कक्षा में यूनिफॉर्म के प्रभाव को देखने के लिए टेक्सास में 1,000 से अधिक स्कूलों का अध्ययन किया गया और शोधकर्ताओं ने नोट किया कि पूरे समुदाय में यूनिफार्म नहीं पहनने की तुलना में काफी अधिक सकारात्मक धारणाएं थीं. याचिका के अनुसार, 'एक ड्रेस कोड अनुशासन लाता है और अनुशासन आदेश, शांति और नेतृत्व की भावना लाता है. ड्रेस कोड एकरूपता लाता है जो आदेश और शांति से जुड़ा हुआ है.'
HIGHLIGHTS
- सुप्रीम कोर्ट में गाजियाबाद के वकील ने दायर की याचिका
- केंद्र-राज्य सरकारों को समान ड्रेस का निर्देश देने की मांग
- इसके पहले सुप्रीम कोर्ट तत्काली सुनवाई से कर चुका इंकार