दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तीन दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला के आखिरी दिन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण, राम मंदिर, अंतरजातीय विवाह, गोरक्षा, एस/एसटी एक्ट, एलजीबीटीक्यू समुदाय और अंग्रेज़ी का प्रभुत्व जैसे कई मुद्दों को लेकर अपना विचार रखा. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि आरएसएस ने हमेशा आरक्षण व्यवस्था का समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि आरक्षण कोई समस्या नहीं है, लेकिन आरक्षण की राजनीति समस्या है.
आरक्षण पर राजनीति समस्या
उन्होंने कहा, "समाजिक कलंक को मिटाने के लिए संविधान में प्रदत्त आरक्षण का आरएसएस पूरी तरह समर्थन करता है. आरक्षण कबतक दिया जाना चाहिए, यह निर्णय वही लोग करें, जिनके लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है. जब उन्हें लगे कि यह जरूरी नहीं है, तो वे इसका निर्णय लें."
भागवत ने अपनी तीन दिवसीय व्याख्यान श्रंखला के समापन दिन कहा, "तबतक यह जारी रहना चाहिए. इस व्यवस्था के प्रारंभ से आरएसएस का यही विचार है और यही विचार रहेगा."
उन्होंने कहा, "आरक्षण कोई समस्या नहीं है, समस्या आरक्षण की राजनीति से है. समाज का एक अंग पीछे छूट गया है, यह हमारे कर्मो का परिणाम है. इस 1000 साल पुरानी बीमारी को ठीक करने के लिए हमें 100-150 साल पीछे जाना होगा, और मैं नहीं समझता कि यह कोई महंगा सौदा है."
भागवत का यह ताजा रुख उनके 2015 के रुख से अलग है, जब उन्होंने सार्वजनिक तौर पर आरक्षण नीतियों की समीक्षा की मांग की थी.
राम मन्दिर का निर्माण यथाशीघ्र
वहीं राम मन्दिर के मुद्दे पर उन्होंने कहा, 'राम मन्दिर का निर्माण यथाशीघ्र होना चाहिए.' उन्होंने इस मुद्दे पर वार्ता का समर्थन किया. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अंतिम निर्णय राम मन्दिर समिति को करना है जो राम मन्दिर के निर्माण के लिए अभियान की अगुवाई कर रही है.
संघ प्रमुख ने कहा कि उन्हें यह नहीं मालूम कि राम मंदिर के लिए अध्यादेश जारी किया जा सकता है क्योंकि वह सरकार के अंग नहीं हैं. उन्होंने कहा कि क्या अध्यादेश जारी किया जा सकता है और इसे कानूनी चुनौती मिल सकती है..ऐसे मुद्दों पर विचार किया जाना चाहिए.
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एससी/एसटी अत्याचार निवारक अधिनियम को ठीक से लागू करने की आवश्यकता
एससी/एसटी अत्याचार निवारक अधिनियम को कमजोर करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी से इंकार करते हुए भागवत ने कानून के प्रभावी क्रियान्वयन की जरूरत पर जोर दिया.
भागवत ने कहा कि अत्याचार रोकने के लिए अकेले कानून पर्याप्त नहीं है, बल्कि इसके लिए सामाजिक सौहाद्र्र की जरूरत है. उन्होंने कहा, "(दलितों पर) अत्याचार होते हैं. इसीलिए यह कानून बनाया गया. लेकिन कानून को ठीक से लागू किया जाना चाहिए और इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए. यह सच्चाई है कि कानून को सही से लागू नहीं किया गया और इसका दुरुपयोग भी हुआ है."
अनुचित तरीके से धर्मांतरण गलत
वहीं धर्मांतरण मुद्दे को लेकर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि अवैध और अनुचित तरीके से धर्मांतरण गलत है.
संघ संविधान के अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35-ए को स्वीकार नहीं करता
तीन दिवसीय सम्मेलन के आखिरी दिन सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संविधान के अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35-ए को स्वीकार नहीं करता है. ये अनुच्छेद जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देते हैं. उन्होंने राज्य के अधिक विकास की वकालत की. यह राज्य के लोगों को मुख्यधारा में लाने के लिये जरूरी है.
हिंदुत्व की स्वीकार्यता दुनियाभर में
एक सवाल के जवाब में भागवत ने कहा कि हिंदुत्व के खिलाफ कोई गुस्सा नहीं है और इसकी स्वीकार्यता दुनियाभर में बढ़ रही है.
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पुरुषों को महिलाओं का सम्मान करना सीखना होगा
महिलाओं की सुरक्षा और बलात्कार की बढ़ती घटनाओं से जुड़े सवाल पर उन्होंने कहा कि हमें ऐसा माहौल बनाना होगा जहां महिलाएं सुरक्षित महसूस करें. उन्होंने कहा कि पुरुषों को महिलाओं का सम्मान करना सीखना होगा.
एलजीबीटीक्यू समुदाय समाज का हिस्सा
उन्होंने यह भी कहा कि एलजीबीटीक्यू समुदाय को अलग-थलग नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि वे समाज का हिस्सा हैं. साथ ही समलैंगिकों के अधिकार ही एकमात्र ज्वलंत मुद्दा नहीं है जिसपर चर्चा की जानी चाहिये.
भागवत ने कहा कि समय बदल रहा है और समाज को ऐसे मुद्दों पर फैसला करना चाहिये.
संघ के लोगों ने सबसे ज्यादा अंतर्जातीय विवाह किए
अंतरजातीय विवाह को लेकर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि संघ के लोगों ने सबसे ज्यादा अंतर्जातीय विवाह किए हैं. कुरीतियों को खत्म करने के लिए समाज को बिना भेद-भाव वाली नजरों से देखना जरूरी है. अन्तर्जातीय विवाह से हिंदू समाज एकजुट रहेगा, इसलिए हम सभी हिंदुओं को संगठित करने का प्रयास कर रहे हैं, जिसमें अन्तर्जातीय विवाह एक बहुत ही निर्णायक होगा.
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अंग्रेजी सहित किसी भी भाषा का विरोधी नहीं
वहीं अंग्रेजी के विरोध करने को लेकर भागवत ने कहा कि संघ अंग्रेजी सहित किसी भी भाषा का विरोधी नहीं है लेकिन इसे उचित जगह दी जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि यह किसी भारतीय भाषा का स्थान नहीं ले सकती. भागवत ने कहा, 'आपको अंग्रेजी समेत किसी भी भाषा का विरोधी नहीं होना चाहिए और इसे हटाया नहीं जाना चाहिए.'
उन्होंने भी कहा, 'हमारी अंग्रेजी के साथ कोई शत्रुता नहीं है. हमें कुशल अंग्रेजी वक्ताओं की ज़रूरत है.'
गोरक्षा के नाम पर कानून हाथ में लेना ग़लत
गोरक्षा के सवाल पर भागवत ने कहा, 'किसी भी मामले को लेकर कानून हाथ में लेना ग़लत है, गुनाह है. इसके लिए कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए. लेकिन गाय एक आस्था का मुद्दा है. गोरक्षा तो होनी चाहिए. संविधान का भी मार्गदर्शक तत्व है तो उसका पालन करना चाहिए. लेकिन ये गोरक्षा केवल कानून से नहीं होती है. गोरक्षा करने वाले देश के नागरिक गाय को पहले रखें. गाय को रखें नहीं और खुला छोड़ देंगे तो उपद्रव होगा, तो गोरक्षा के बारे में आस्था पर प्रश्न लगता है. कई लोग इस पर काम कर रहे हैं कि कैसे तकनीक के जरिए गायों के उपयोग को सभी के प्रतिदिन के जीवन में शामिल किया जाए. वो गायों की रक्षा की बात करते हैं, वो मॉब लिंचिंग में शामिल नहीं हैं. वे समाज की भलाई के लिए काम करते हैं. वो केवल संघ से जुड़े नहीं हैं.
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पूरा जैन समुदाय इसके लिए कार्यरत है. कई मुस्लिम भी हैं तो बहुत अच्छे से गोशाला चला रहे हैं. उन्हें लिंचिंग से नहीं जोड़ा जाना चाहिए, उनको प्रोत्साहित करना चाहिए.'
Source : News Nation Bureau