भीमा कोरेगांव मामले में एक्टिविस्ट की गिरफ्तारी को लेकर महाराष्ट्र पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया। महाराष्ट्र पुलिस ने सफाई देते हुए कहा कि सरकार से असहमति के चलते उनकी गिरफ्तारी हुई, ऐसा कहना ग़लत होगा। हमारे पास इनके खिलाफ पुख्ता सबूत है जिनसे साबित होता है कि इनका सबंध प्रतिबंधित माओवादी संगठन से है।
पुलिस ने कहा कि गिरफ्तार किए गए एक्टिविस्ट समाज में बड़े पैमाने पर हिंसा, अराजकता फैलाने में शामिल थे। महाराष्ट्र पुलिस ने कोर्ट को बताया कि इन एक्टिविस्ट के पास से बरामद कम्प्यूटर, लैपटॉप, पेनड्राइव से पता चलता है कि उनका संबंध न केवल CPI( माओवादी) संगठन से था, बल्कि ये समाज में अस्थिरता और अराजकता फैलाने में लगे थे।
महाराष्ट्र पुलिस ने याचिका दायर करने के इतिहासकार रोमिला थापर और अन्य के अधिकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि इनका हिंसा मामले से कोई संबंध नहीं है।
वहीं उनकी गिरफ्तारी को लेकर पुलिस ने कहा, कार्यकर्ताओं को उनकी असहमति वाली राय के लिए गिरफ्तार नहीं किया गया, इस धारणा को दूर करने के लिए पर्याप्त सामग्री है।
राज्य पुलिस ने आरोप लगाया कि ये कार्यकर्ता देश और सुरक्षा बलों के खिलाफ घात लगाकर हमला करने और हिंसा की योजना तैयार कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले में गुरुवार को सुनवाई करेगा।
गौरतलब है कि पिछले हफ़्ते भीमा कोरे गांव हिंसा मामले में कई वामपंथी विचारकों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था। जिनमें से वरवर राव, अरुण फरेरा, गौतम नवलखा, वर्णन गोंजाल्विस और सुधा भारद्वाज की गिरफ्तारी के ख़िलाफ़ प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर और कार्यकर्ता माजा दारुवाला ने याचिका दाखिल की थी।
जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तार 5 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को 6 सितंबर तक घर में नजरबंद रखने का आदेश दिया था। इसके साथ ही कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस को 5 सितंबर तक हलफनामा दायर करने को कहा था। इतना ही नहीं कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि असहमति लोकतंत्र का 'सेफ्टी वाल्व' है।
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प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने भीमा-कोरेगांव घटना के करीब 9 महीने बाद इन व्यक्तियों को गिरफ्तार करने पर महाराष्ट्र पुलिस से सवाल भी किए थे।
Source : News Nation Bureau