Bhima Koregaon Case: पुणे सेशन कोर्ट ने बुधवार को भीमा कोरेगांव केस ( Koregaon Bhima Case) के 6 आरोपियों की जमानत अर्जी खारिज कर दी है. इन आरोपियों में रोना विल्सन (Rona Wilson), शोमा सेन (Shoma Sen) , सुरेंद्र गडलिंग (Surendra Gadling), महेश राउत (Mahesh Raut), वरवारा राव (Varvara Rao) और सुधीर धवले (Sudhir Dhavle) शामिल हैं. वहीं सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा की जमानत याचिका बॉम्बे हाई कोर्ट ने पहले खारिज कर दी थी. इससे पहले भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी साहित्यकार गौतम नवलखा को गिरफ्तारी से राहत मिल चुकी है.
सुप्रीम कोर्ट ने नवलखा को गिरफ्तारी से चार और हफ्ते की अंतरिम सुरक्षा दी है. हालांकि इस दौरान उन्हें अग्रिम जमानत याचिका दायर करनी होगी. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से गौतम नवलखा के खिलाफ सुबूत देने को कहा था और उन्हें 15 अक्टूबर तक गिरफ्तारी से राहत दी थी.
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गौतम नवलखा पर पुणे के कोरेगांव भीमा गांव में जातीय हिंसा भड़काने में संलिप्त होने का आरोप है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की एक और पीठ ने बीते तीन अक्टूबर को नवलखा की याचिका पर सुनवाई करने से खुद को अलग कर लिया था. उन्होंने अदालत में पुणे पुलिस के जरिए अपने खिलाफ दर्ज एफआइआर को रद करने के लिए याचिका दाखिल की हुई है.
Bhima Koregaon Case: Pune Sessions Court today rejected bail application of 6 accused namely Rona Wilson, Shoma Sen, Surendra Gadling, Mahesh Raut, Varvara Rao&Sudhir Dhavle. Bail plea of Sudha Bhardwaj,Vernon Gonsalves&Arun Ferreira was rejected by Bombay HC earlier. https://t.co/W8UNQLFGc1
— ANI (@ANI) November 6, 2019
बता दें कि नक्सलियों के कनेक्शन के मामले में वरवर राव, सुधा मल्होत्रा सहित अन्य पांच को गिरफ्तार किया गया था. जिसके बाद पुलिस ने पूछताछ के लिए इन्हें रिमांड पर लेने की कोर्ट में गुहार लगाई थी. इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बिना असहमत आवाजों के लोकतंत्र नहीं चल सकता.
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इस दौरान पुलिस की मांग को खारिज करते हुए कोर्ट ने उन्हें रिमांड के बदले चार हफ्ते का हाउस अरेस्ट दिया था. इतिहासकार रोमिला थापर और चार अन्य कार्यकर्ताओं ने वरवर राव, अरुण फरेरा, गौतम नवलखा, वर्णन गोंजाल्विस और सुधा भारद्वाज की गिरफ्तारियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी.
क्या है भीमा कोरेगांव केस
महाराष्ट्र के पुणे जिले स्थित भीम-कोरेगांव जैसे छोटे से गांव में 200 साल पहले यानी 1 जनवरी, 1818 को ईस्ट इंडिया कपंनी की सेना ने पेशवा की बड़ी सेना को हरा दिया था. पेशवा की सेना का नेतृत्व बाजीराव द्वितीय कर रहे थे. दलित इस लड़ाई को राष्ट्रवाद बनाम साम्राज्यवाद की लड़ाई नहीं कहते हैं. उनके मुताबिक, इस लड़ाई में दलितों के खिलाफ अत्याचार करने वाले पेशवा की हार हुई थी. इसके उलक्ष्य में हर साल जब 1 जनवरी को दुनिया भर में नए साल का जश्न मनाया जाता है उस वक्त दलित समुदाय के लोग भीमा कोरेगांव में जमा होते है. वो यहां 'विजय स्तम्भ' के सामने अपना सम्मान प्रकट करते हैं.
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2018 इस युद्ध का 200वां साल था. इस दिन यहां भारी संख्या में दलित समुदाय के लोग जमा हुए थे. जश्न के दौरान दलित और मराठा समुदाय के बीच हुई हिंसक झड़प में एक की मौत हो गई जबकि कई लोग घायल हो गए थे. इस बार यहां दलित और बहुजन समुदाय के लोगों ने एल्गार परिषद के नाम से शनिवार वाड़ा में कई जनसभाएं की. इसमें कई बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाषण भी दिए थे और इसी दौरान अचानक हिंसा भड़क उठी.